नारी…..
नारी क्या हो तुम,
ओस की पहली बूंद, सूरज की पहली किरण,
मंदिर से आती ध्वनि या वन में विचरता हिरन,
कभी झरनों सी तुम चंचल हो, कभी झीलों सी तुम स्थिर हो,
कभी सब को समाये गगन सी और कभी खुद में ही मगन हो,
कभी आती हुई मौसम सी, कभी महकती हुई चन्दन सी,
कभी बादल सी गरजती हो, कभी चिड़ियों सी चहकती हो,
कभी दूसरों के सपनों को जीती हो, कभी दूसरों के गम पीती हो,
दूसरों को सहारा देती हो, खुद उनके दुःख ले लेती हो,
दूसरों के दुःख में उठता पहला कदम तुम्हारा है,
तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा हर एक का सहारा है.
पर ……….
पर इस सब के बीच, क्या तुमने कुछ ना खोया है,
अपने हिस्से की मिट्टी में, दूजे का पौधा बोया है.
जो बीत गया उससे निकलो, है धूप खिली तुम भी पिघलो,
बह निकलो बन कर तुम सरिता, ढ़ूढ़ लो अपने सागर का पता,
है आज सही वो दूर मगर, आयेगा एक दिन पास नजर,
हर पल को जियो, हर पल मे जियो,
है किया बहुत दूजो के लिये, अब थोड़ा सा खुद को भी जियो,
अब थोड़ा सा खुद को भी जियो……..