बचपन

वो बचपन कितना प्यारा था, कितने स्वप्न सुहाने थे,

चंदा, सूरज, सारे तारे, सब हमको अपनाने थे,

दूरी का अंदाजा न था, रास्तों से अनजाने थे,

ना जाने कितने ही मतलब दुनिया को समझाने थे,

गम का मतलब न था जाना, आंसू से बेगाने थे,

चारों ओर, हाँ चारों ओर बस खुशियों के ही बहाने थे,

अब रस्तों को पहचाना है, दूरी का मतलब जाना है,

गम को तो न पहचाना पर उलझन का मतलब जाना है,

पर न जाना रुकना हमने और न जाना थक जाना है,

अपनी हिम्मत का बूता तो दुनिया से मनवाना है,

करना पूरा है सपनों को, मंजिल को तो पाना है,

एक बार, एक बार सही पर आसमान पर छाना है.

पर आसमान पर छाना है

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