माँ का भाग्य

मोदी जी ने कहा था कि “जो अपने बाप का न हो पाया वह किसी का नहीं हो सकता। “
मैं माँ बाप दोनों को इस में सम्मलित करूँगा। क्यों कि जननी माँ हमें धरती है तथा अबोध शिशु अवस्था में हमें अपना दूध पिला कर पोषित करती है। माँ की हम जितनी भी सेवा करें कम है , धारिति का ऋण हम कभी नहीं चूका सकते हैं।

मगर में अवाक् निरुत्तर हो जाता हूँ, जब विलासिता भोकते पुत्र कि माता, सरकारी अस्पताल में अपना अंतिम सांसे गिनती है।
आसिम अली अहमद , एक जिम्मेदार औधे पर खाड़ी देश के शेक की ग्वालशाला में नियुक्त है। उसकी असीम कर मुक्त आय है। पर क्या वो समझदार भी है ?

खाड़ी से चार लाख खर्च कर बिज़नेस क्लास में आता है , पांच सितारा होटल में रहता है। अपने साली के निक़ाह पर पांच लाख का ज़ेवर तथा और न जाने कितने ही रकम पूरे मोहल्ले को दावत देने में खर्चता है।

पर उसके माँ कि किस्मत देखिये कि वह एक सरकारी अस्पताल में दम तोड़ रही है।

इसको भाग्य समझूँ या कर्म ?

PS: I have blogged the backstory here.

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