ग़लती तो शायद मेरी ही थी

Shipra Gupta
शब्दों का जादू
2 min readNov 23, 2017

शायद मेरी ही ग़लती थी
हर बार तुम दिल तोड़ जाते थे
और हर बार मैं यूँही जोड़ लेती थी
वादे तोड़ जाना,
ये तो आदत थी तुम्हारी
फिर भी, विश्वास भी मैं तुम पर ही करती थी
पता नहीं क्यूँ काफ़ी उमीदें बँध जाती थी हर बार

तुम्हें तो याद नहीं होगा , पर मुझे याद है
उस दिन कैसे मैं
सज के सँवर के इतेज्जर में बैठी थी
तुम आओगे और मैं गलें से लगा लूँगी तुम्हें
होंठों की मुस्कान थमेगी नहीं उस पल
सबकुछ सोच लिया था मन ही मन
बस ये सोचना भूल गयी
की पिछले हर बार की तरह
तुम मना कर दोगे
कहोगे नहीं आ सकते
क्यूँकि काम बहुत है

सोचती हुँ मैं
क्या एक पल को भी तुम्हें मेरे दर्द का ऐहसास हुआ होगा
शायद नहीं,
क्यूँकि तुम्हारे साथ कभी ये भी तो नहीं हुआ
और मैंने मान लिया
ग़लती मेरी ही थी जो तुमने विश्वास किया

तुम्हें याद हैं एक अँधेरी सी आधी रात में
मुझे जाना था कहीं और तुमने कहा
अकेले जाना ठीक नहीं हैं
तुम भी साथ मैं आओगे
ख़ुश हो गयी मैं देख के ये
चलो फ़िक्र तो है तुम्हें मेरी
इतना ही काफ़ी है
और उस रात भी तुमने फिर से मजबूरी का नाम दे
फिर से दिल तोड़ा
रोयी थी मैं बहुत
तुम पे नहीं ख़ुद पे
पागल थी जो तुमने विश्वास किया
और हर बार उम्मीदों में जिया
ग़लती मेरी ही थी
हर बार मेरा उम्मीदें लगना और तुम्हारा ना निभना

ग़लती मेरी ही थी
जब तुमने कहाँ अगली बार ऐसा नहीं होगा
और मैंने मान लिया

ग़लती मेरी ही थी हज़ारों बार टूटे दिल को जोड़ा
दिल भी बोल चुका था
अब थम जा
और नहीं सहा जाता
वो उम्मीदों के लायक़ ही नहीं है

ग़लती मेरी ही थी
जो ख़ुद के दिल की बात को भी नज़रान्दाज किया
और तुम पे विश्वास किया

ग़लती तो शायद मेरी ही थी…

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