जो तुम आख़िरी मिलें हो
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1 min readJun 6, 2019
जो तुम आख़िरी बार कह के मिले हो
मन थोड़ा बैठा सा है
आखों में आँसू आने वाजिब से हैं
तुम उन्हें नज़रंदाज़ ही करना तो अच्छा है
बाँहों में तुम्हारे थोड़ी देर और ही रहना है
समेट लेने तो मुझे खूशबू तुम्हारे बदन की
तुम तो कुछ पल बाद नहीं रहोगे
शायद तुम्हारी खूशबू थोड़ी और देर ठहर जाए
आज लफ़्ज़ ही कम पड़ रहे हैं
आख़िर बोले भी तो क्या बोले
रोक तुम्हें हम सकते नहीं
जाते देखने का डर भी है
लग रहा है वक़्त की रफ़्तार तेज़ है आज
और तुम छूटे जा रहे हो
अलविदा यूँ मिल के कहने का इरादा ही शायद ग़लत था
जो तुम आख़िरी बार मिले हो
क्या बोलू की आख़िरी ना हो।।