क्या सारा अस्तित्व भी गुरु हो सकता है ?
क्या गुरु बिना ज्ञान संभव है ?
अनेक बुद्ध पुरुष जैसे बुद्ध, महावीर, नानक आदि के गुरु क्यों नहीं हुए? उन्हें बिना गुरु के ज्ञान कैसे मिला?
एक सूफी फ़क़ीर हुआ, हसन |
मरते वक़्त किसीने पूछा की तेरे गुरु कौन थे ?
उसने कहा मत पूछो वो बात मत छेड़ो, तुम समझ न पाओगे और मेरे पास ज़्यादा समय भी नही है, मरने के करीब हूँ अब ज़्यादा समझा भी न सकूंगा |
लोगो नो कहा अब जा ही रहे हो तो ये उलझन मत छोड़ जाओ, वरना हम सदा पछतायेंगे |
ज़रा से में कह दो अभी तो कुछ सांस बाकी है |
उसने कहा बस इतना ही समझो की एक दिन नदी किनारे बैठा था, एक कुत्ता आया बड़ा प्यासा था, हांफ रहा था | नदी में झाँक के देखा वहां उसे दूसरा कुत्ता दिखाई दिया |
घबरा गया , भोंका तो दूसरा कुत्ता भोंका लेकिन प्यास बड़ी थी | प्यास ऐसी थी की भय के बावजूद भी उसे नदी में कूदना ही पड़ा |
वो हिम्मत करके कई बार रुका, काँपा पर कूद ही गया | कूदते ही नदी में जो वो दूसरा कुत्ता दिखाई पड़ता था वो गायब हो गया | वो था तो नहीं, वो तो केवल उसी की छाया थी |
नदी के किनारे बैठे मै उसे देख रहा था, मैंने उसे नमस्कार किया, वो मेरा पहला गुरु था |
उस दिन मैंने जान लिया की जीवन में जहां जहां भय है, वो अपनी ही छाया है और प्यास ऐसी होनी चाहिए की भय के बावजूद उतर जाओ |
कई बार लोग कहते है की कुछ करना है लेकिन भय लग रहा है|जब भय न लगेगा तब करेंगे |
फिर तो कभी न करेंगे, ऐसी घडी कभी आएगी जब भय नहीं लगेगा ?
भय के बावजूद करेंगे तभी कर पाएंगे |
तुम सोचते हो जिन्होंने किया उनको भय नहीं लगा होगा ? वो भी तुम जैसे ही थे |
भय उन्हें भी लगा था, लेकिन इतना ही फर्क है की उन्होंने कहा ठीक है, भय लगता रहे, लेकिन करेंगे, करके रहेंगे |
डर तो लगता है लेकिन प्यास इतनी गहरी है की करते क्या?
डरो या प्यास में मरो, दो में चुनाव करना है |
प्यास इतनी गहरी है की भय को एक तरफ रख देना पड़ता है और जो भय को एक तरफ रख देता है उसका ही भय मिटता है |
भय अनुभव से मिटेगा और तुम कहते हो अनुभव हम तभी लेंगे जब भय मिट जाए, तो तुमने एक ऐसी शर्त लगा दी जो की कभी पूरी न हो पाएगी |
बबलू तैरना सीखना चाहता था, तो किसी पडोसी ने कहा ये कोई बड़ी बात नहीं आओ मेरे साथ, मै सीखा देता हूँ | गए नदी के किनारे, सीढ़ी पर काई जम गयी थी, बबलू का पैर फिसल गया और वो धड़ाम से गिरा | गिरते ही उठा और भागा घर की तरफ |
वो जो सिखाने ले गया था जो उस्ताद, उसने कहा कहाँ भागे जा रहे हो ? सीखना नहीं है ?
बबलू ने कहा , “अब जब तैरना सिख लूंगा तभी नदी के पास आऊंगा |”
बबलू ने सोचा, कहीं पैर फिसल गया होता, चारो खाने चित्त हो गए होते और नदी में गिर जाते तो जान से हाथ धो बैठते | और इस उस्ताद का क्या भरोसा ?
वक़्त पे काम आये न आये |
अब आऊंगा नदी के पास लेकिन तैरना सीख के|
अब कोई तैरना गद्दे तकिये पे थोड़ी सीखता है, कितने हाथ पैर पटको अपने गद्दे तकिये पे, वहा सुविधा तो है, खतरा कोई भी नहीं है लेकिन जहां खतरा नहीं वहां सीख कहाँ ?
खतरे में ही सीख है, खतरे में ही अनुभव है| जितना बड़ा खतरा है, जितनी बड़ी चुनौती है, उतनी ही बड़ी सम्पदा छुपी है|
अब तुमने अगर ये कसम ले ली की जब तक तैरना न सीख लेंगे, नदी न आएंगे तब तुम तैरना कभी न सीखोगे|
तैरना सीखना हो तो बिना कुछ जाने नदी में उतरने की हिम्मत करनी पड़ती है और किसी पे भरोसा करना पड़ता है |
जो भी तुम्हे सिखाने जाएगा उसपे भरोसा करना पड़ेगा |
भरोसे का कोई कारण नहीं है, क्या पता जब तुम डूबने लगो तब ये आदमी बचाये की भाग जाए?
जब तुम डूबने लगो तब ये आदमी काम आये की न आये, ये तो जब तक तुम डुबो ना, पता कैसे चलेगा ?
हो सकता है दुसरो को इसने बचाया हो, लेकिन तुमको भी बचाएगा इसकी क्या गारंटी है ?
तो भय तो रहेगा ही|
हसन ने कहा की कुत्ते को देखके एक बात मै समझ गया की अगर परमात्मा मुझे नहीं मिल रहा है तो एक ही बात है, मेरी प्यास काफी नहीं है| मेरी प्यास अधूरी है |और जब कुत्ता भी हिम्मत कर गया तो हसन ने कहा , उठ हसन अब हिम्मत कर इस कुत्ते से कुछ सीख.
जिनमे इतना साहस है की सारे अस्तित्व को गुरु बना ले उनके लिए फिर किसी एक गुरु की ज़रुरत नहीं है |
साहस हो तो हर जगह से शिक्षण मिल जाता है, सिखने की कला आती हो तो हर मार्ग से मंज़िल जाती है, पर सीखना न आता हो, शिष्य होने की कला न आती हो, सिखने लायक मन मुक्त न हो, पक्षपात से घिरा हो, सिद्धांतो से दबा हो तो फिर तुम्हे कोई नहीं सीखा पायेगा.
इसलिए ये कहना की अनेक बुद्ध पुरुषों बुद्ध , महावीर ,नानक आदि के गुरु क्यों नहीं हुए, ठीक नही है |
इनके बारे में यही कहना उचित होगा की सारा अस्तित्व ही इनका गुरु था |
जिनकी हिम्मत नहीं है की वे अस्तित्व को गुरु बना सके, उनको फिर एकाध आदमी को तो गुरु बनाना ही होगा |
न सबको बना सको तो कम से कम एक को बनाओ|
शायद एक से ही झरोखा खुले फिर धीरे धीरे हिम्मत बढे, स्वाद लग जाए, साहस बढे तो तुम औरो को भी बना सको|
ऊपर से देखने में लगता है की बुद्ध पुरुषों का कोई गुरु नहीं है लेकिन अगर गहरे से देखोगे तो पता चलेगा की बुद्ध ने किसी को गुरु नहीं बनाया क्युकी अगर सारा अस्तित्व ही गुरु बन जाए तो किसी और गुरु की क्या ज़रुरत?