Towards the Vaidic Science-19
Various religious ideologies and other types of discrimination are also particularly liable after this fear. I would like to know from the advocate of various communal discrimination-
1. Have you ever thought that the community, you trust, is based on full scientific truth? Here the scientific truth is not to be interpreted as the extinction of modern science.
2. Have you considered your beliefs, even though they are very old, with an active heart, a strong brain and logical thinking?
3. Have you ever thought that which Dharma, do the initiator of your sect followed? And which is the first religious ideology and scripture on this earth existed?
4. Do you believe that the divine knowledge (God’s book) in which you believe, have the entire divine knowledge exists in the world? Does that book behold the science of whole creation and knowledge of universal and eternal social behaviour in it?
5. Have you ever considered that the books in which there is a history of a person or a country, the history of the geography of a country, how can that scripture be divine?
6. Should not the creation of God’s book and God-originated religion be made with human’s creation? If a book, which had been written a few thousand years ago, should be considered as a divine book, then will not the injustice of God be with the human generations that existed for millions of years before the writing of that scripture? Then would any theist want to call his God or Goddesses unjust?
7. Will divine knowledge not speak of the interests of all human beings? If not, then that book can not be called divine.
8. If it is believed that God sends new prophet to give knowledge based on the time of situation, time and country, then do you believe that there was a lack of knowledge in the early conscience of God? Or he forgot something, to give that forgotten part he gave another knowledge. If this happened, then why should a little knower be considered God? Who forgets, how can he build and operate such a vast creation?
9. When any material of the universe is not dependent on our beliefs then how can God, the creator of those substances depends on our beliefs? Similarly, every substance of creation has its own scientific form and mechanism, then why will not the God have his own scientific form and mechanism?
Come on! My friends around the world! You must consider these questions once without any prejudice. I believe that your soul will surely be able to support the truth.
To be continued …….
वैदिक विज्ञान की ओर — 19
इस भय के पीछे नाना पन्थ, विचारधाराएं एवं नाना अन्य प्रकार के भेदभाव भी विशेष रूप से उत्तरदायी हैं। मैं नाना साम्प्रदायिक भेदभाव के पक्षधर महानुभावों से जानना चाहूँगा-
1. क्या आपने कभी सोचा है कि आप जिस सम्प्रदाय पर आस्था रखते हैं, क्या वह पूर्ण वैज्ञानिक सत्य पर आधारित है? यहाँ वैज्ञानिक सत्य का तात्पर्य वर्तमान विज्ञान का अन्धानुगमन कदापि न समझा जाए।
2 क्या आपने अपनी मान्यताओं, भले ही वे कितनी ही पुरानी हों, पर कभी षान्त हृदय व प्रखर मस्तिष्क से तार्किक चिन्तन किया है?
3 क्या आपने कभी विचारा है कि आपके सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक, पूर्वज किस सम्प्रदाय के मानने वाले थे और फिर सर्वप्रथम इस धरती पर कौन सी धार्मिक विचारधारा व धर्मग्रन्थ विद्यमान था?
4 क्या आप जिस ग्रन्थ को ईश्वरीय ग्रन्थ (धर्मग्रन्थ) मानते हैं, क्या उसमें सम्पूर्ण ईश्वरीय ज्ञान विद्यमान है? क्या उसमें सम्पूर्ण सृष्टि का विज्ञान तथा सार्वभौमिक व शाश्वत लोक व्यवहार का ज्ञान विद्यमान है?
5 क्या आपने कभी मनन किया है कि जिन ग्रन्थों में किसी व्यक्ति वा देश का इतिहास हो, किसी देश के भूगोल का इतिहास हो, वह ग्रन्थ कैसे ईश्वरीय हो सकता है?
6 क्या ईश्वरीय ग्रन्थ व ईश्वरप्रसूत धर्म की उत्पत्ति मानव सृष्टि के साथ ही नहीं होनी चाहिए। यदि कोई ग्रन्थ, जो अब से कुछ हजार वर्ष पूर्व ही लिखा गया हो, उसे ईश्वरीय ग्रन्थ मान लिया जाए, तब क्या उस ग्रन्थ की उत्पत्ति से पूर्व करोड़ों वर्षों तक चली आ रही मानव पीढ़ियों के साथ ईश्वर का अन्याय नहीं होगा? तब क्या कोई ईश्वरवादी ईश्वर को अन्यायी कहना चाहेगा?
7 क्या ईश्वरीय ज्ञान सम्पूर्ण मानव जाति के हित की ही बात नहीं करेगा? यदि ऐसा नहीं होवे, तब वह ग्रन्थ ईश्वरीय भी नहीं कहा जा सकेगा।
8 यदि यह माना जाये कि ईश्वर समय-2 पर देश, काल, परिस्थिति के अनुकूल ज्ञान देने हेतु नये-2 अवतार, पैगम्बर आदि को भेजता है, तब क्या आप यह मानते हैं कि ईश्वर के पूर्व ज्ञान में कोई कमी रह गयी थी, अथवा वह कुछ भूल गया था, जो उसे बताने के लिए दूसरा ज्ञान दिया। यदि ऐसा हुआ, तो किसी अल्पज्ञ को ईश्वर क्यों माना जाए? जो भूल करता है, वह इतनी विशाल सृष्टि का निर्माण, संचालन आदि कैसे कर सकता है?
9. जब सृष्टि का कोई भी पदार्थ हमारी आस्थाओं पर निर्भर नहीं है तब उन पदार्थों का निर्माता ईश्वर कैसे हमारी आस्थाओं पर निर्भर हो सकता है? इसी प्रकार सृष्टि के हर पदार्थ का अपना वैज्ञानिक स्वरूप एवं क्रियाविज्ञान है, तब ईश्वर का अपना वैज्ञानिक स्वरूप एवं क्रियाविज्ञान क्यों नहीं होगा?
आइये! मेरे संसार भर के मित्रो! आप इन प्रश्नों पर निष्पक्षता से एक बार अवश्य विचारें। मेरा विश्वास है कि आपका आत्मा अवश्य सत्य का समर्थन करने में समर्थ होगा।
क्रमशः …….
- आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक
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