हम बस अब एक कान से सुनते है

Ankit Chiplunkar
2 min readNov 16, 2016

हम बस अब एक कान से सुनते है प्रश्न करने की इच्छा और प्रवृत्ति जैसे समाप्त हो गई है

एक ही side से लड़ते है|
एक ही विचारधारा like, share और subscribe करते है|
आदमी वही खाता है, सोचता है, प्रोत्साहित करता है और सो जाता है |
निश्चय और दृढ़निश्चय बन जाता है|
कुछ दिनों बाद उसे फिर एक ही side का दिखता भी है |
एक कान का बहरा एक आँख का अंधा धीरे धीरे बन जाता है ||

सामने वाले का सुनाई ही नहीं देता|
नहीं देता या नहीं दिया जाता यह आप सोचिये|
अपने दल अपने नेता के काम को राष्ट्रहित, जनहित या समाजहित जैसे arguments में लपेट दिया जाता है|
खुद के दल की गलतियाँ दिखती ही नहीं|
सब मनुष्य ही तो है, गलती सब से होती है पर अपनी गलती को ना मानना या उसे opposition की conspiracy घोषित कर देना ही बोलचाल हो गया है|
Photoshop अब camera से ज्यादा शक्तिशाली हो गया है||

सामने वाले से बात करने जाओ तो अब वह आपसे बात नहीं करता चिल्लाता है|
कल मैंने अपने भाई से कुछ पूछा तो उसने चिल्ला के जवाब दिया|
ध्यान से देखा तो उसके कान में earphone लगे थे|
जिनको कम सुनाई देता है वह चिल्ला के ही बात करते है ||

मुझे नहीं पता इसका endgame क्या है?
यह शोर यह हल्ला क्या long -term में sustainable है ?
इसका decision मै नहीं दे सकता|
सभी ग्रन्थ यही सीखाते है की सामने वाले की सुन लेनी चाहिए|
आप भले ही नास्तिक हो पर time-tested wisdom में तो मान ही लेना चाहिए ||

मेरी तो अभी के लिए यही गुज़ारिश है की एक कान में फ़ंसा ignorance का कपास |निकालिये धीरे धीरे आपकी नज़र भी normal होने लगेगी ||

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