Darpan Rupareliyaपुराने ज़ख्मों का मरहम नया इक ज़ख्म लगवाना — ग़ज़लपुराने ज़ख्मों का मरहम नया इक ज़ख्म लगवाना यूं ही कह दे मिला है कोई, और आसाँ¹ कर बिछड़ जानाApr 28Apr 28
Darpan Rupareliyaबर्फ़-सी थी वो, मैं उसपे चलता रहा — ग़ज़लबर्फ़-सी थी वो, मैं फिर भी चलता रहा वो पिघलती रही, मैं फिसलता रहाFeb 18Feb 18
Darpan Rupareliyaयार! हर दिन क्या बताएं, क्या नया होगाहाल कल का था वही हाल-ए-बयाँ होगाJan 1, 2023Jan 1, 2023
Darpan Rupareliyaदरारेंरात सिमटती गई राज़ खुलते गए दिल की दरारें भर चुकीं थीं सुबह हुई वो चले गए फिर से दरारें बन चुकीं थींJun 17, 2019Jun 17, 2019
Darpan Rupareliyaपहली ही नज़रपहली ही नज़र इज़हार लाए होंगे हमसे पहले कई लोग आए होंगेMay 27, 2019May 27, 2019
Darpan Rupareliyaदौर-ए-इश्क़ : ग़ज़लउनके नाम आया बेनाम ख़त वो हमें पढ़ा रहे थे नादान ! बादलों को बारीश दिखा रहे थेMar 5, 2019Mar 5, 2019
Darpan Rupareliyaइंकलाब ला दूंगाठंडे शांत तालाब में इंकलाब ला दूंगा ख़याल लब्ज़ बनने को बेताब ला दूंगाNov 28, 2018Nov 28, 2018
Darpan Rupareliyaबालमानसवो पर्वत की ऊंचाइयों के लिए एक वक्र काफ़ी था वो तेज़ सूरज का बयाँ करने एक चक्र काफ़ी थाApr 4, 2018Apr 4, 2018
Darpan Rupareliyaनीम्बू का अचारराह की रूकावट-सी सन्नाटे में कोई आहट-सी स्वादों के इंद्रधनुष में श्यामवर्णी है खटास जिंदगी में मेरी किसी उलझे लम्हे-सी है खटासFeb 24, 2018Feb 24, 2018