Aug 5, 2017वो ज़ालिम चौराहा।हर रोज की तरह उस दिन भी लौट रहा था सूरज अपने घर को। इस कदर वो संध्या भी डूबी जा रही थी गाड़ियों की उड़ती धुल में। ना जाने ठंडी हवाएँ भी थी क्यों खुश इतनी उस दिन? कोई उत्तर की ओर, तो कोई दक्षिण, कोई पूरव तो कोई…Poetry1 min readPoetry1 min read
Aug 1, 2017वो भी क्या शाम थी।थी आँखों में नमी तुम्हारे। जुल्फ़े भी कहा कुछ कह रही थी मुरझाये फूल की तरह। रुंह भी ज़िन्दा हो गई थी मिली जब तुम्हारी रुंह से। उस सर्द शाम में बदन भी राजी कहां था थरराने को तुम्हारा। तरस जाता था उस वक़्त जब पलकें तुम्हारी झपका करती थी। जहन मेरा ना जाने क्या कह रहा था समाई जब तुम बाँहों में। हो गया था मजबूर, सहने को तेरे हिस्से की , ठंड, बदन तेरा ढककर।Poetry1 min readPoetry1 min read
Aug 1, 2017O Dream — E SoulO dream, what gave you birth? - E soul, a human hope of seeing heaven on earth. O dream, why do you overwhelm my mind? - E soul, I extend a helping hand to mankind. O dream, what do you pray for in eternity? …Poetry1 min readPoetry1 min read