कॉमन मैन- स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं

Teena Sharma "Madhavi"
3 min readNov 14, 2022

‘सचिन फौज़दार’

कॉमन मैन- स्ट्रीट आर्टिस्ट हूं भिखारी नहीं…। ये सुन मेरी तलाश उन गलियों में जा पहुंची जहां पर एक युवा हाथों में गिटार पकड़े हुए भीड़ के बीच फरमाइशी गानों की सरगम छेड़ रहा था…। बात मामूली न थी…। सुर का पक्का ये नौजवां…न सिर्फ जवान दिलों को धड़कानें में सफल रहा बल्कि बच्चे और बूढ़े भी इसकी अंगुलियों से छिड़ रहे तारों से बंध से गए…।

मेरी जिज्ञासा ने मुझे भी भीड़ के बीचों — बीच जा खड़ा किया…। इसकी आवाज़ में एक ठहराव था्, पर आंखों की नमी न जानें कौन — सा दर्द बयां कर रही थी…।

जब गाना — बजाना रुका तब मैंने बात कुछ यूं छेड़ी…। ‘बहुत अच्छा गा और बजा लेते हो…।’
पर यूं सड़क पर क्यूं…?
उसने हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया…।
थैंक्यू मैम…।
‘’ये करना मुझे अच्छा लगता हैं…।’’

सचिन फौज़दार

पर ये जवाब नाकाफी था। क्यूंकि शक्ल, सूरत और कपड़ों से ये अच्छे परिवार से और पढ़ा — लिखा सा नज़र आया। इसीलिए जिज्ञासा को एक सिरा और मिल गया, इसी के सहारे मैंने फिर एक सवाल किया, ‘’कौन हो भई तुम…?’’
पलटकर जवाब आया, ‘’मैं बुरे से बुरा वक़्त देखना चाहता हूं…।’’

जवाब बेहद अजीब था पर ये सुनने के बाद इससे आगे बात करना लाज़िमी ही था, आख़िर कोई क्यूं बुरे वक़्त को भी यूं हंसते — बजाते हुए देखने की ख़्वाहिश रख सकता हैं…? जब बात कुछ और आगे बढ़ी तब इस नौजवां ने इतना ही कहा, ‘’मैं लोगों को मुस्कुराते हुए देखना चाहता हूं…।’’ बस इत्ती सी बात हैं…और इसी ‘पंच लाइन’ से मेरी तलाश अपने ‘कॉमन मैन’ पर जा रुकी…। आज मेरी कहानी का ‘कॉमन मैन’ यही हैं…।
नाम हैं ‘सचिन फौज़दार’…।
उम्र — 25 वर्ष
काम — पिंकसिटी की सड़कों पर गिटार बजाना…।
मकसद एकदम साफ़ हैं, लोगों के चेहरों पर मुस्कान देखना…।

दरअसल, सचिन की कहानी उन फोन कॉल्स के साथ ही शुरु हो गई थी जो ‘रिकवरी’ के लिए लगाए जाते हैं…। सचिन ने बताया कि वो बीएड पास हैं और टिचिंग लाइन में अच्छी खासी जॉब कर रहा था…। लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि, मैं इसके लिए नहीं बना हूं….पर ये नहीं तो फिर क्या…? ये ही सवाल दिनरात सचिन के दिलों दिमाग़ में घुमने लगा…। इस वक़्त उसे एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में जॉब मिल गई….। उसने यहां भी मन लगाकर काम शुरु कर दिया…।

यहां पर उसका काम ‘रिकवर ऑन कॉल’ था…। वो रोज़ाना कस्टमर्स को फोन करता और उनसे पेमेंट भुगतान के लिए कहता…। इस दौरान कस्टमर उसे अपनी परेशानियां सुनाते…। कोई कहता ‘मां’ बीमार हैं तो कोई कहता बच्चे की फीस जमा नहीं हो रही…कोई अपनी गरीबी की व्यथा — कथा सुनाकर रोने लगता…। तो कोई पैसा चुकाने के लिए कुछ और दिन की मुहलत मांगता।

लोगों की परेशानियां…उनके दु:ख और तकलीफ़ सुनते — सुनते सचिन का मन काम से भटकने लगा…। वो सोच में पड़ गया।

पूरी कहानी पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें

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Teena Sharma "Madhavi"

मैं मूल रुप से एक ‘पत्रकार’ और ‘कहानीकार’ हूं। ‘कहानी का कोना’ नाम से मेरा ब्लॉग चलता हैं..। https://kahanikakona.com/