धागा — बटन

Teena Sharma "Madhavi"
4 min readFeb 14, 2023

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शायद मेरे हाथों से इस बटन का ‘टंकना’ नहीं था …। नचिकेत की आंखों से आंसू बहकर ज़मीन पर गिरने लगे …। धागा — बटन का प्यार हमेशा के लिए अधूरा रह गया…। और मैं हमेशा के लिए लौट आई …।

अलमारी की दराज़ में अब भी उसकी यादें बसती है। उसकी शर्ट का बटन, पेन का ढक्कन और वो ‘कागज़ के कुछ टुकड़े….।’ जो पुड़की बनाकर फेंके थे कभी उसने। अलमारी की साफ़ सफ़ाई में आज हाथ ज़रा दराज़ के भीतर चला गया…। मानो बटन ने खींच लिया हो जैसे…।

इक पल के लिए दिल धड़कना भूल गया। सांसे थम सी गई। बरसों बाद लगा उसका स्पर्श पा लिया हो जैसे…।
मन जो ‘तड़पना’, ‘तड़पाना’ भूल गया था…। वो आज फ़िर से तड़प उठा…। बैचेनी की हुक उठने लगी…जिस्म जैसे बिन बारिश के भीगने लगा…। कुछ देर तक अपनी हथेली पर बटन को रख उसे निहारती रही बस। उसे अपने क़रीब लाकर उसकी खुशबू को अपने भीतर खींचने लगी।

उस दिन भी तो ऐसा ही कुछ हुआ था। नचिकेत ने ब्ल्यू चेक्स की शर्ट पहनी हुई थी। वो तिलक मार्ग पर मेरा इंतजार कर रहा था…। मैं देरी से पहुंची थी। इस बात पर वो मुझसे बेहद ख़फा था। मैंने उसे लाख मनाने की कोशिश की, मगर वो मान जाने को तैयार न था। तभी मैंने उसे अपने गले से लगा लिया और उसे चुप रहने को कहा…।

नचिकेत धीरे — धीरे शांत होने लगा और मेरी बाहों में सिमट खोने लगा…। वो ही क्यूं…? मैं भी तो उसे इतना नज़दीक पाकर खो रही थी…। तभी मुझे आसपास का ख़याल आया और मैं खोने से पहले ही संभल गई।

मैंने धीरे से नचिकेत के कानों में कहा,
….तुम ठीक हो…?
हां मैं अब ठीक हूं…।
तुम भी कुछ मत कहो…।
एकदम शांत हो, इस पल में खो जाओ…।

ये सुन मैंने नचिकेत को हल्का सा झिंझौरा, और वो कुछ सामान्य हुआ। उसने मेरी आंखों में आंखें डाल, मुझसे पूछा तुम ठीक हो…?
हां..हां…मैं ठीक हूं…।
लोग देख रहे हैं, अब तुम मुझे छोड़ोंगे…प्लीज़?
ओह! मैं तो भूल ही गया कि हम, सड़क पर खड़े हैं…।
आई एम सॉरी ‘डियर इरा’…।

अब वो पूरी तरह से सामान्य हो गया था। तब मैंने ख़ुद को उसकी बाहों से अलग किया। तभी मेरे बाल उसकी शर्ट के ‘बटन’ में जा फंसे..और बुरी तरह से उलझ गए…। मैंने अपने बाल बटन से निकालने की बेहद कोशिश की, पर मेरे बाल औैर बुरी तरह से उसमें उलझ गए…। तब नचिकेत ने कोशिश की…। उसकी ये कोशिश भी नाकामयाब रही…।

तब मैंने ही बालों को ज़ोर से खींच लिया और उसी के साथ ‘बटन’ भी टूट कर नीचे गिर गया। मैंने बटन को उठाया और अपने ‘पर्स’ में रख लिया।
ये देख नचिकेत हंस पड़ा…।

ओ तेरी…।
इस पर मैं कुछ बोलती तभी वो कह बैठा।
कोई बात नहीं इरा…।
दूसरा बटन लग जाएगा…।
उसे फेंक दो।
पर्स में क्यूं डाल लिया…?
वैसे भी वो सड़क पर गिर कर ख़राब हो गया हैं…।
फेंक दो उसे।

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मैंने भी उसे यूं ही कह दिया, पड़ा रहेगा ‘बेचारा’ पर्स में…। जब मुझे मौका मिलेगा, तब मैं ही तुम्हारी शर्ट में इसे ‘टांक’ दूंगी। यह सुनकर वो ज़ोरों से हंसने लगा…। मैं भी उसके साथ हंसने लगी…।

उसने मुझे फिर टोका, इरा फेंक दो उस बटन को…। अब वो ‘गंदा’ हो गया हैं…। मैं नहीं लगवाउंगा अब ये गंदा सा बटन….।

ठीक है…ठीक हैं…। मत लगवाना…। इसे मैं ही रख लेती हूं…।
ये सुन वो मुझे टकटकी लगाए देखने लगा…।

आज चार साल बीत गए। ना ही नचिकेत मिला और ना ही उसकी शर्ट में बटन टांकने का मौका…। तभी से इस ‘बटन’ को उसकी याद बनाकर संभाले हुए हूं।

याद आता हैं वो दिन भी, जब उसे पीएचडी रिसर्च के लिए दिल्ली जाना था। वो उस दिन बेहद परेशान था। मैं चुपचाप बैठकर उसे देखती रही और कॉफी पीती रही…। दो घंटे में तीन कप कॉफी पी चुकी थी और वो कागज़ पर कागज़ लिखे जा रहा था। कुछ ग़लती होने पर वो कागज़ की ‘पुड़की’ बनाकर फेंक देता…। मैं उसे बीच — बीच में टोंकती रही।

‘’मुझे तुमसे कुछ ज़रुरी बात करनी हैं…सुन लो प्लीज…।’’
लेकिन उसने कहा, एकदम चुप्प होकर बैठो। जब काम ख़त्म हो जाएगा तब हम बात करेंगे…।
ओके!
मैं इस वक़्त सोचने लगी, मैं नचिकेत को जो बताने वाली हूं, क्या वो उसे सुन पाएगा…?
कहीं ऐसा तो नहीं कि, वो अभी के अभी मुझसे शादी करने की बात कह बैठे…?
या फिर इस चिंता में डूब जाए कि, अब क्या होगा…?
या कहे कि, चलो भाग चलें…?
हे भगवान!
कैसे बताउंगी उसे कि……।

तभी ‘क्या मुझे कॉफी नहीं पिलाओगी…?’ नचिकेत ने ये कहते हुए एक गहरी लंबी सांस ली…। शाम होने को थी…और उसका काम भी लगभग पूरा हो गया था…।
ये सुन मैंने उसके लिए कॉफी ‘ऑर्डर’ कर दी।

‘’मुझे एक साल के लिए दिल्ली जाना पड़ेगा इरा…।’’ मेरा हाथ पकड़ते हुए नचिकेत मुझसे कहने लगा…।
ये सुनकर मैं घबरा गई। चेहरे का रंग उड़ गया। गले का पानी जैसे सुख गया…और सीधे आंखों में उतर आया…। मुझे एकदम से सुन्न देख नचिकेत बोला, अरे! अरे! इरा..।

तुम तो ऐसे घबरा गई, जैसे मैं लंबे समय के लिए जा रहा हूं। सिर्फ एक साल ही की तो बात हैं। इत्ती सी बात पर तुम्हारी तो आंखे भर आई। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मेरा सपना पूरा होने जा रहा हैं।
रिसर्च पूरी होते ही मैं लौट आऊंगा…। अच्छी नौकरी होगी…फिर हम फ़ोरन शादी कर लेंगे।

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धागा — बटन

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Teena Sharma "Madhavi"

मैं मूल रुप से एक ‘पत्रकार’ और ‘कहानीकार’ हूं। ‘कहानी का कोना’ नाम से मेरा ब्लॉग चलता हैं..। https://kahanikakona.com/