रामचरित मानस यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची में
भारतीयों के लिए ये गौरव का क्षण है जब महाकवि तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ सूची में शामिल किया गया है।
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भारतीयों के लिए ये गौरव का क्षण है जब महाकवि तुलसीदास जी द्वारा १६वीं सदी में रचित प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस की पांडुलिपि को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में शामिल किया गया है।
ग्रंथ व इसके रचयिता के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि-
यह निर्णय मंगोलिया की राजधानी उलनबटोर में हुई एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए विश्व की स्मृति समिति (मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमिटि फॉर एशिया एंड द पैसिफिक) की बैठक में लिया गया है।
बैठक की मेजबानी मंगोलिया के संस्कृति मंत्रालय, यूनेस्को के लिए मंगोलियाई राष्ट्रीय आयोग और बैंकॉक में यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय ने की थी।
रामचरित मानस अवधी भाषा में लिखा गया है। इस महान कृति को ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। जिसे भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान प्राप्त है।
इसके अलावा पं. विष्णु शर्मा द्वारा रचित 15 वीं शताब्दी की पंचतंत्र दंतकथाएं एवं नौवीं शताब्दी में आचार्य आनंदवर्धन द्वारा लिखित ‘सहृदयालोक-लोचन’ की पांडुलिपियां भी यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रीजनल रजिस्टर में सम्मिलत की गई हैं।
‘रामचरितमानस’, ‘पञ्चतन्त्र’ और ‘सहृदयलोक-लोचन’ ये तीनों ऐसी कालजयी कृतियां हैं, जिससे भारतीय साहित्य व संस्कृति की छाप बड़ी गहराई से जनमानस पर पड़ी है। न सिर्फ भारत में बल्कि समूचे विश्व में इन कृतियों का असर पाठकों के दिलों दिमाग पर है।