राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा

Teena Sharma "Madhavi"
4 min readJan 29, 2024

अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा हुई। ‘राम’ जो इस समय चर्चा का विषय बने हुए हैं। जिन्होंने अपना मंदिर महल त्याग कर वनवास को स्वीकारा और सालों तक पलायन का दर्द झेला, टेंट में रहे, उन्हें आज अपना निवास स्थान पुनः प्राप्त हुआ। यह न्याय की ही शक्ति है ।

एकता शर्मा, कहानीकार

‘’राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।
अंतकाल पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट।।’’

अक्सर हम धार्मिक पुस्तकों, पुराणों और अपने बुजुर्गों से इस कथन को पढ़ने सुनते आए हैं। आज भारत में चारों ओर राम नाम की गूंज है।

‘’भए प्रगट कृपाला दीन दयाला
कौशल्या हितकारी हर्षित महतारी
मुनी मन हारी अद्भुत रूप विचारी।

तुलसीदास रचित रामचरितमानस बालकांड से उदित यह पंक्ति भगवान राम के जन्म उत्सव की अद्भुत लीला का वर्णन करते हुए अवधपुरी में साज-सज्जा,रौनक और दीपोत्सव का अद्भुत, अकल्पनीय, अलौकिक वर्णन करती है जो, आज वर्तमान में भी दिखाई दे रहा है।

किंतु प्रश्न उठता है, क्या सचमुच कोई राम बनना भी चाहता है?इ स भव्यता में प्रेम पूर्ण भाव भी है या सिर्फ माया? मनुष्य मृत्यु से कितना घबराता है यह किसी से नहीं छुपा, राम का शाब्दिक विपरीत ‘मरा’ भी कोई मन से भज ले तो भवसागर से पार हो जाता है। विचारणीय प्रश्न यह है।

इस साधारण से दिखाई देने वाले राम की महिमा असाधारण, अपरिमित ,असीमित और अद्भुत कैसे हुई होगी? वास्तव में राम की कथा सफलता के लिए संघर्ष का मूल मंत्र देती है। राम का असाधारण से साधारण बनना ही असाधारण हो जाना है।

किसे नहीं पता था राम साधारण पुरुष नहीं, वे तो अवतार के रूप में है। लेकिन यही तो महान पुरुष की पहचान होती है। असाधारण परिस्थितियों में साधारण और सामान्य हो जाना कोई छोटी बात नहीं, मानव के महामानव बनने की यही प्रक्रिया पुरुष को पुरुषोत्तम बनाती है।

जहां मर्यादा का समावेश हो तब वह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के रूप में प्रकट होता है।

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा :

सच्चा प्रागट्य है श्री राम —

‘’प्राण जाए पर वचन न जाए’’, आज भी जब कोई अपने वचनों पर कायम रहता है,तब वह इन्हीं शब्दों को दोहराता है। वचन का हमारे समाज में क्या महत्व है यह अगर सीखना है तो राम से, राम के चरित्र से सीखें।

मनुष्य रूपी तलवार की धार उसका चरित्र है। इस धार में जितनी तीक्ष्णता होगी मनुष्य में उतना ही ओजस्व होगा। वही वीर्यवान वीर कहलाता है। यदि किसी का चरित्र नष्ट हो जाए तो वह मनुष्य मुर्दा से भी बद्तर होता है।

मुर्दा तो फिर भी किसी का बुरा नहीं करता किंतु चरित्रहीन मनुष्य, पशु तुल्य है जो स्वयं के साथ-साथ अपनों की भी अवनति और अवसान कर देता है।

वास्तव में पुरुष कहलाने का वास्तविक अधिकार उसी का है जो विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य धारण कर, मर्यादा बनाए रखें। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम से आज के युवाओं को शिक्षा लेनी चाहिए यही वास्तविक ‘रामराज्य’ होगा।

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा :

प्रकृति पर्यावरण प्रेमी —

राजमहलों में जन्म लेने वाले, लाड प्यार से सुख भोगने वाले श्री राम पर्यावरण, प्रकृति और पशु प्रेमी भी है, जिसका साक्षात उदाहरण दंडकारण्य के जंगल और रामसेतु के निर्माण में दिखाई देता है।

साहस और सामर्थ के पर्याय राम अपनी संघर्ष पूर्ण यात्रा में त्रिलोक विजयरधारी रावण के विरुद्ध भालू, बंदर, जटायु, रीछ जैसे जानवरों को युद्ध में शामिल करते है।

इतना ही नहीं गिलहरी जैसे नन्हे प्राणी को भी रामसेतु निर्माण में सम्मान दिया, यह उनका प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान दर्शाता है। प्रकृति के प्रति आदर ,सम्मान, सह अस्तित्व और सौहाद्र भावना का जीता जागता उदाहरण है श्री राम।

‘’काऺटेहि पइ कदरी फरई कोटि जतन कोइ सीचऺ
विनय न मान खगेस सुनु डोहहि पइ नव नव नीच।।’’

काकमुसंडी जी कहते हैं। हे गरुड़ जी सुनिए चाहे कोई करोड़ उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है ।
अर्थात् नीच विनय नहीं मानता वह तो काटने पर ही सुधरता है। इसी प्रकार क्या रावण ने राम का प्रस्ताव स्वीकार किया? यदि वह इसे स्वीकार कर लेता तो महासंग्राम क्यों होता?

रामलला

अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जिन्होंने अनेक बार असहयोग आंदोलन ,सविनय अवज्ञा आंदोलन, भूख हड़ताल, हिजरत नाना प्रकार के जतन किए, किंतु क्या अंग्रेजों के सर पर जूऺ रेगी? अंत में उन्हें करो या मरो का नारा देना ही पड़ा।

अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति निक्सन का भी कथन है, ‘’बिना क्रांति शांति संभव नहीं’’, सहनशीलता का अत्यधिक बढ़ जाना कायरता होता है, बात जब मनुष्य की मनुष्यता, स्वाभिमान, नैतिक गुण की आती है, तब वह समझौते की बजाय संघर्ष ,शौर्य, साहस, युद्ध का रास्ता चुनता है, ऐसे में मर्यादा के रथ पर सवार होकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम रावण से युद्ध करने निकले।

उनके दृढ़ संकल्प, सहनशीलता, और सत्त्व गुण ने ही उन्हें विजय दिलाई। तभी वे संघर्ष, संकल्प सहनशीलता की मूर्ति राम वास्तव में एक आदर्श पुरुष कहलाए।

जिनका सब कुछ बिखर गया फिर भी वे संघर्ष के पथ पर अटल, अडिग, अविचलित रहे। द्वंद्व की स्थिति में भी निर्द्वन्द्व, निर्मल निश्चल सौम्य स्वभाव वाले श्री राम ने विवेक और बुद्धि नहीं खोई यही इश्र्वाकु वंशी राम ‘सूर्यवंशी’ कहलाए।

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Teena Sharma "Madhavi"

मैं मूल रुप से एक ‘पत्रकार’ और ‘कहानीकार’ हूं। ‘कहानी का कोना’ नाम से मेरा ब्लॉग चलता हैं..। https://kahanikakona.com/