लौटा बचपन, मारा सितोलिया
लौटा बचपन, मारा सितोलिया…। कुछेक ने अपनी रचनाएं भी पढ़ी किंतु अंदाज़े — ए — बयां में मस्ती की झलक साफ नज़र आई। वे गंभीर भावों से अछूते ही रहे। इसी सादगी ने कार्यक्रम में मौसम के संग उन्मुक्तता के रंग भी भर दिए। और शब्दों के जादूगरों का कुछ यूं निकला बचपना ।
‘’जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह — ओ — शाम…। ‘’राजकवि इंद्रजीत सिंह तुलसी का लिखा हुआ ये गीत जवाहर कला केंद्र में उस वक़्त साकार हो उठा, जब एक साथ एक ही स्वर में शब्दों के जादूगरों ने ये गीत गाया। अवसर था जवाहर कला केंद्र में, अजमेर पोएट्री क्लब की ओर से आयोजित एक अनौपचारिक कार्यक्रम का। जहां पर इस गीत का ‘शौर’ मचा, किंतु अपने बचपन की यादों के भावों संग..। ‘’शौर’ मचा पर ना कोई कवि था ना ही लेखक…गर इस वक़्त कोई था तो वो था इनका बचपना। जिसे आज अपने बेफिक्रे अंदाज़ में वे जी लेना चाहते थे।
बच्चे की मानिंद खेले और गाया
इस कार्यक्रम में लेखक, कवि और साहित्यकारों की मौजूदगी रही लेकिन वे ख़ुद एक बच्चे के मानिंद हंसी — ठिठौली और बिंदासपने में खोए नज़र आए। कभी अंताक्षरी खेलकर तो कभी सितोलिया फेंककर…।
पूरी ख़बरी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें —