विंड चाइम्स
उसने मुझे एक चिट्ठी और एक गिफ्ट थमा दिया और “दिशा ने भिजवाया है, घर जाकर खोलना” ये कहकर वो लौट गई। मैंने वो गिफ्ट खोला उसमें विंड चाइम्स था। साथ में एक चिट्ठी भी थी। पढ़िए दिप्ती मिश्रा की लिखी कहानी ‘’विंड चाइम्स’’…
मेरा जन्मदिन आने में अभी दो महीने बाकी थे लेकिन पता नही क्यों उसे जल्दी थी मनाने की। सो किसी तरह से समय निकाल कर उसने मिलने का प्लान बनाया। तय तारीख, समय और जगह पर हम दोनों आमने सामने थे पहली बार।
मैंने उससे कहा भी कि,”ऐसी क्या आफत आ गई कि तुम्हे दो महीने पहले जन्मदिन मनाना है मेरा, उस दिन भी प्लान कर सकते थे हम लोग,”। वो हँस दी और बोली,” इतना सब्र नही है मुझमें और न ही टाइम।” वो फिर ज़ोर से हँस पड़ी।
हँसती बहुत थी वो, कभी कभी तो मैं झुंझला जाता था, “क्या हर बात पे खी खी करती हो, कभी तो
सीरियस हुआ करो” वो फिर झूठमूठ का गुस्सा हो जाती।
करीब एक साल से बात हो रही थी हमारी, आसपास के शहर में रहते हुए भी हम अभी तक मिले नही थे, उसने ज़िद करके अपने शहर बुलाया, मैं भी ये सोचकर चला गया कि थोड़ा चेंज ही हो जाएगा। आज हम आमने सामने थे । वो हक़ीक़त में भी उतनी ही सिंपल थी जितना कॉल पे बात करने में लगती थी।
खैर, जन्मदिन तो मनाना था पर केक नही था हमारे पास और जहां हम थे वहां आसपास कोई बेकरी भी नहीं थी, मैंने सवाल भरी नजरों से उसे देखा वो समझ गई और बोली,” केक लेके आती तो खराब हो जाता इतनी देर में और मुझे क्या पता था यहां नही मिलेगा”।
चारों तरफ नज़र दौड़ाई तो हलवाई की दुकान दिखी, वो दौड़ के गई और मिल्क केक के दो पीस ले आई कागज़ की प्लेट में, मोमबत्ती नही थी लेकिन उसे अपने पर्स में माचिस मिल गई और चाकू की जगह नेलकटर काम आया।
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