यक्ष प्रश्न
3 min readOct 30, 2023

न्यायालय−एक सकारात्मक सोच

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“नयायालयों में दिनों-दिन बढ़ती मुकदमों की संख्या

न्यायालयों की समृद्धता का प्रतीक है”

यदि हम सकारात्मक सोच से देखें तो नयायालयों में दिनों-दिन बढ़ती मुकदमों की संख्या न्यायालयों की समृद्धता का प्रतीक है। वृद्धि ही तो प्रगति है, समृद्धता है। इसी प्रकार हम जनसंख्या वृद्धि को नकारात्मक सोच से ही क्यों देखते हैं? क्यों नहीं हम सकारात्मक सोच से यह सोचते हैं कि एक बच्चा पैदा होने से एक मुह बढ्ने के साथ-साथ दो हाथ दो पैर भी बढ़ते हैं जो देश के विकास में सहायक होंगे। यदि नयायालयों में वाद संख्या कम हो जाएगी तो माo न्यायालयों की महत्ता/आवश्यकता पर प्रश्न चिन्ह लग जायेगा।

इसलिए हमारे माo न्यायाधीश शीघ्र न्याय करने और वाद निस्तारण में विश्वास नहीं रखते हैं। उन्हें अगली तारीख देने का मामूली सा बहाना चाहिये और तुरन्त वाद में अगली तारीख लग जाती है। फिर चाहे वह वादी/प्रतिवादी की प्रार्थना हो या फिर न्याय प्रणाली (judicial procedure) की मांग या अन्य कोई कारण − कोरोना, हड़ताल आदि।

दैo जाo नयी दिल्ली 31.07.2022,अब भी बहुत कम लोग अदालतों तक पहुँच पाते हैं: सीजेआई” अभी भी हमारी आबादी का एक छोटा हिस्सा ही न्याय के लिए अदालतों तक पहुंच पाता है।” माननीय रमण जी − खुश होइए, सोचिए यदि आबादी का बड़ा हिस्सा न्यायालयों तक पहुंचता फिर क्या स्थिति होती आपकी अदालतों की, लंबित मामलों की? रमण जी खुशनसीब हैं वे जो अपने साथ हुए अन्याय को अपना नसीब मान कर न्यायालय नहीं जाते या फिर सक्षम होने पर अपना न्याय स्वयं कर लेते हैं।

न्यायालयों की समृद्धता के लिए, न्यायतंत्र को जीवित रखने के लिए, देश की आबादी के बड़े हिस्से को न्याय के लिए अदालत जाना नितांत आवश्यक है, ताकि वाद संख्या में बढ़ोतरी होती रहे। अन्यथा देश वैसे ही बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, एक और नई बेरोजगारी की समस्या पैदा हो जाएगी।

माo सीजेआई यूयू ललित ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों के शीघ्र निस्तारण के लिए मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए दिo 29.08.2022 को नई प्रणाली लागू की। फलस्वरूप दिo 15.09.2022 तक 16 दिनों में 3797 लंबित मामलों का निस्तारण हुआ। दैo जाo 17.09.2022, “मुकदमों को सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली पर जताई नाखुशी”, माo न्यायाधीश संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक आपराधिक मामले के आदेश में सीजेआई यूयू ललित के मामलों को सूचीबद्ध करने की नई प्रणाली पर नाखुशी जताई।

माo न्यायाधीश संजय किशन कौल की, माo सीजेआई की मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए लागू की गई नई प्रणाली पर, प्रतिक्रिया न्यायालयों की समृद्धि के मद्देनजर सराहनीय है।

किसी औद्योगिक इकाई के अनुरक्षण विभाग के कर्मचारी यदि खाली बैठे हैं, आराम कर रहे हैं तो सामान्यत: इसका अर्थ यह निकाला जाता है कि अनुरक्षण विभाग में या तो कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक है अथवा वे कामचोर हैं और अपने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहे हैं, यह एक नकारात्मक सोच है। परंतु ऐसा भी तो हो सकता है कि अनुरक्षण विभाग के कर्मचारी कुशल (efficient) हैं, दक्ष हैं, निष्ठावान हैं, अपने दायित्व के प्रति सजग हैं, वे प्लांट का प्रिवेंटिव मेंटेनेंस सुचारु रूप से समय पर कर रहे हैं, और प्लांट सुचारू रूप से चल रहा है, यह एक सकारात्मक सोच है।

अत: न्यायालयों में लंबित मामलों में हो रही वृद्धि हमें न्यायालयों की समृद्धि के दृष्टिकोण से सकारात्मक सोच से देखना चाहिए न की न्यायालयों की निष्फलता के रूप में नकारात्मक सोच से।

यक्ष प्रश्न − यदि न्यायालयों में मुकदमों की संख्या कम हो जाए तो न्यायतंत्र से जुड़े इतने न्यायाधीश, इतने अधिवक्ता और कितने अन्य कर्मचारी क्या करेंगे? विधि के प्रोफेसर, विधि महाविद्यालयों आदि का क्या होगा?

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यक्ष प्रश्न

कृष्ण मोहन अग्रवाल - BE (Hons) इलेक्ट्रिकल, बिट्स, पिलानी, स्वतंत्र टिप्पणीकार। सामाजिक/राजनैतिक विमर्श/सरोकार के विषय - न्यायतंत्र, रियेलिटी, शासन-प्रशासन आदि।