सम्मन केस से आप क्या समझते है इसके विचारण की प्रक्रिया को समझाइये CrPC

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3 min readJun 20, 2023

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प्रकृति एवं प्रक्रिया की दृष्टि से आपराधिक मामलों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है -

(क) समन केस (Summons Case)

(ख) वारन्ट केस (Warrant Case)

समन केस की परिभाषा Definition Summons Case -

समन केस की परिभाषा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (ब) में दी गई है। इसके अनुसार — “समन मामला से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से सम्बन्धित है तथा जो वारन्ट मामला नहीं है।”

वारंट मामलों के अंतर्गत मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास, या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय मामले आते है इस प्रकार वे मामले जो दो वर्ष तक की अवधि के कारावास अथवा अर्थदण्ड अथवा दोनों से दण्डनीय किसी अपराध से सम्बन्धित है समन केस के अधीन आते है।

इस आलेख में मुख्य जोर समन केस की प्रक्रिया (the process of trial of summons case) पर दिया गया है। समन मामले में प्रक्रिया के सामान्य चरण अन्य विचारण के समान होते है, लेकिन यह विचारण त्वरित उपचार के लिए कम औपचारिक होता है।

समन केस में विचारण की प्रक्रिया –

समन मामलों में विचारण की प्रक्रिया का उल्लेख संहिता की धारा 251 से 259 में किया गया है। इनके अनुसार समन मामलों में विचारण की प्रक्रिया इस प्रकार है -

(1) अभियोग का सारांश सुनाया जाना — दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 251 जब किसी समन मामले में अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष लाया जाता है या वह मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है तब सर्वप्रथम उसे उस अपराध की विशिष्टियाँ बताई जायेगी, जिसका उस पर अभियोग है और उससे यह पूछा जायेगा कि वह दोषी होने का अभिवाक् करता है अथवा प्रतिरक्षा करना चाहता है।

(2) दोषी होने के कथन पर दोषसिद्ध किया जाना — दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 252 के तहत अपराध की विशिष्टियाँ — सुनने के पश्चात् यदि अभियुक्त अपने दोषी होने का अभिवाक् अर्थात् कथन करता है। तो मजिस्ट्रेट द्वारा उसके कथनों को उसी के शब्दों में लेखबद्ध किया जायेगा और उसे स्वविवेकानुसार दोषसिद्ध किया जायेगा

(3) साक्ष्य लेखबद्ध किया जाना — जब अभियुक्त द्वारा अपने दोषी होने का कथन नहीं किया जाता है और वह विचारण चाहता है तब सर्वप्रथम अभियोजन की तथा तत्पश्चात् प्रतिरक्षा (defence) की साक्ष्य लेखबद्ध की जायेगी।

(4) दोषसिद्धि या दोषमुक्ति का निर्णय — अभियोजन एवं अभियुक्त की साक्ष्य लेने के पश्चात् यदि मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो उसे ‘दोषमुक्त’ (acquity) कर दिया जायेगा।

संहिता की धारा 255 के तहत यदि मजिस्ट्रेट यह पाता है कि अभियुक्त दोषो है तो उसे ‘दोषसिद्ध’ (convict) घोषित करते हुए दण्डादेश पारित कर सकेगा

(5) परिवादी के हाजिर नहीं होने का प्रभाव — संहिता की धारा 256 में यह उपबंध किया गया है कि यदि सुनवाई के लिए नियत किसी दिन परिवादी न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो मजिस्ट्रेट द्वारा उसका परिवाद खारिज करते हुए अभियुक्त को दोषमुक्त घोषित किया जा सकेगा, बशर्ते कि ऐसे मामले की सुनवाई को अन्य किसी दिन के लिए स्थगित किया जाना वह उचित नहीं समझे।

(6) परिवाद का वापस लिया जाना — दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 257 के अन्तर्गत परिवादी मामले में निर्णय सुनाये जाने से पूर्व कभी भी परिवाद को अभियुक्त के विरुद्ध और यदि एकाधिक अभियुक्त है तो उन सबके विरुद्ध या उनमें से किसी के विरुद्ध वापस ले सकेगा। परिवाद को ऐसे वापस लिये जाने का प्रभाव अभियुक्त को दोषमुक्ति होगा।

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