Ravikant Rautतज़ुर्बामाथे पर किसी के उभरती शिक़न देख कर…कभी किसी के चेहरे की बदलती रंगत देख कर कौन, कब.. उखड़ने वाला है हत्थे से पहले से भांप जाता हूं कि…Jul 31, 2018Jul 31, 2018
Ravikant Rautसामान्य ज्ञान और कविता का एक फ़्यूज़न प्रस्तुत कर रहा हूं, पसंद आये तो प्रतिक्रिया अवश्य देवें ."बरसना .....किसी बारिश की तरह" बरसना ... जैसे जी चाहे बरसनाJul 31, 2018Jul 31, 2018
Ravikant Rautगांव छोड़ा ही नहीं अपनाअपनी भूख से डरकर बचा कर आबरू अपनों की वहां के दबंगों से भाग आया था शहर मेंJul 31, 2018Jul 31, 2018
Ravikant Raut// परियां झूठ नहीं बोलती //यूं तो हर रोज़ वक़्त पर आ जाती थी , सुलाने मुझे , सुना कर कहानियां अपनी कितनी गहरा गयी है रात आज क्यूं इतनी देर लगाई उखड़ी सांसें , बदहवास…Apr 24, 2017Apr 24, 2017
Ravikant Rautमैं आंसू बटोर लाता हूंसैकड़ों आंसू …. , यूं ही नहीं …. खज़ाने में मेरे ,Mar 24, 2017Mar 24, 2017