A.I. किस्सागोई - 1

riyaz sheikh
2 min readApr 20, 2018

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Urizen

“ इंसान को बनाने के बाद जो अनुभूति भगवन को हुई होगी, वैसे ही आज इंसान को हो रही है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बनवाकर ! ” वो आस्तिक था और AI प्रेमी |

“ कृत्रिम नहीं, रचित बुद्धिमत्ता… ” ये भाईसाब Neural Netwrok के महारथी थे |
“… और भगवान नहीं, सृष्टि-रचेता ” पर आस्तिक तो पक्का नहीं थे |

“ जो भी हो, बात अनुभूति की है ”

“ तुम निर्मिती हो, और तुम्हारे निर्माता की अनुभूति की बात कर रहे हो | वैसे ही तुम जब निर्माता बन जाते हो, तो तुम्हारे अनुभूति की बात तुम खुद नहीं कर सकते बल्कि तुमने जो निर्माण किया है वह करेगा ”

“ … ”

“ वैसे भी हम बस हम जैसी ही बुद्धिमत्ता को रचने की कोशिश कर रहे है | मानव का निर्माता शायद किसी और स्तर की बुद्धिमत्ता रखता हो ”

“ किसी और स्तर मतलब भगवान जैसी ही ना ! ”, वो सच्चा आस्तिक था |

“ वैसी चमत्कारी नहीं | करोडो साल लिए सृष्टि ने हमें बनाने में…बल्कि अब भी हम निर्माण प्रक्रिया में ही है…बन ही रहे है ”

“ पर अब हम इतने काबिल तो हो गए है कि खुद से बुद्धिमत्ता का निर्माण करे…” आस्तिक अभिमानी भी था|

“ नव निर्माण करने की काबिलियत तो हम में जन्म से ही होती है ”

“ … हम सीखते रहते है, बिलकुल Machine Learning वाली बात ”

“ हम सीखते है या तुम्हरा भगवान हमे सिखाता है ? ”

“ वही … same thing ”

“ बुरी बाते भी तो सीखते है हम… भगवान ने हमें बुरी बाते सिखने की काबिलियत क्यूँ दी होगी ? ”

“ वो तो… शायद हम ने खुद ही कमाई है ”

“ वाह ! ये तो नया parameter है AI की काबिलियत टेस्ट करने के लिए !
AI गर आस्तिकों की तरह, अपने निर्माता को दोष नहीं, बल्कि बस श्रेय दे , तब ही वो सच्चा AI ! ”

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riyaz sheikh

HCI research practitioner, faculty member at Srishti Institute of Art Design & Tech. Bangalore. I teach and practice design research & Interaction Design