A.I. किस्सागोई - 1
“ इंसान को बनाने के बाद जो अनुभूति भगवन को हुई होगी, वैसे ही आज इंसान को हो रही है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बनवाकर ! ” वो आस्तिक था और AI प्रेमी |
“ कृत्रिम नहीं, रचित बुद्धिमत्ता… ” ये भाईसाब Neural Netwrok के महारथी थे |
“… और भगवान नहीं, सृष्टि-रचेता ” पर आस्तिक तो पक्का नहीं थे |
“ जो भी हो, बात अनुभूति की है ”
“ तुम निर्मिती हो, और तुम्हारे निर्माता की अनुभूति की बात कर रहे हो | वैसे ही तुम जब निर्माता बन जाते हो, तो तुम्हारे अनुभूति की बात तुम खुद नहीं कर सकते बल्कि तुमने जो निर्माण किया है वह करेगा ”
“ … ”
“ वैसे भी हम बस हम जैसी ही बुद्धिमत्ता को रचने की कोशिश कर रहे है | मानव का निर्माता शायद किसी और स्तर की बुद्धिमत्ता रखता हो ”
“ किसी और स्तर मतलब भगवान जैसी ही ना ! ”, वो सच्चा आस्तिक था |
“ वैसी चमत्कारी नहीं | करोडो साल लिए सृष्टि ने हमें बनाने में…बल्कि अब भी हम निर्माण प्रक्रिया में ही है…बन ही रहे है ”
“ पर अब हम इतने काबिल तो हो गए है कि खुद से बुद्धिमत्ता का निर्माण करे…” आस्तिक अभिमानी भी था|
“ नव निर्माण करने की काबिलियत तो हम में जन्म से ही होती है ”
“ … हम सीखते रहते है, बिलकुल Machine Learning वाली बात ”
“ हम सीखते है या तुम्हरा भगवान हमे सिखाता है ? ”
“ वही … same thing ”
“ बुरी बाते भी तो सीखते है हम… भगवान ने हमें बुरी बाते सिखने की काबिलियत क्यूँ दी होगी ? ”
“ वो तो… शायद हम ने खुद ही कमाई है ”
“ वाह ! ये तो नया parameter है AI की काबिलियत टेस्ट करने के लिए !
AI गर आस्तिकों की तरह, अपने निर्माता को दोष नहीं, बल्कि बस श्रेय दे , तब ही वो सच्चा AI ! ”