बेटी : मंम्मी... यहां रसोई में 2 बरतनों में दूध रखा है, कौन से वाले से चाय बनानी है?
मंम्मी : बेटा छोटे वाले पतीले का दूध इस्तेमाल कर लो नहीं तो वो खराब हो जाएगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें छोटे वाले पतीले का दूध वो है जो दूधिया कल सुबह देके गया था। आज सुबह के दूध की सप्लाई बङे वाले पतीले में है। आज सुबह की चाय बेटी बना रही है तो दो बर्तनों में दूध देखकर समझ नहीं पाई के मामला क्या है।
रोज रात को सारे बच्चों को खाने के बाद मंम्मी एक एक गिलास दूध पिलाती हैं पर आज उनकी तबियत थोङी खराब है तो ये दूध पिलाने का जिम्मा आज बङे बेटे का है।
बेटा : मंम्मी... यहां रसोई में 2 बर्तनों में दूध रखा है, कौन से वाले से दूध लेना है?
बेटे का सवाल सुना सुना सा लग रहा होगा ना आपको? जवाब भी सुना सा ही लगेगा ...
मंम्मी : बेटा छोटे वाले पतीले का दूध ले लो और जो कम पङे वो बङे वाले पतीले से ले लेना।
प्रक्रिया यहीं खत्म नही हुई, आगे और सुनो....
मंम्मी : और बेटे बङे वाले पतीले का दूध छोटे वाले पतीले में पलट के बङा पतीला धोने के लिये रख दे।
ये पूरी क्रिया समझ तो नहीं आई बेटे को, पर मां ने जैसा कहा वैसा कर दिया। और समझना ही क्यों था, ये समझना ना तो कुछ दिलचस्प ही दिख रहा था और ना ही बहुत महत्वपूर्ण।
असल में बङा पतीला इसलिये खाली कराया गया क्योंकि उसमें कल सुबह दूधिये से दूध लेना है। चलिये इस कहानी का विश्लेषण करते हुए निष्कर्ष निकालने की कोशिश करते हैं....
चाय तो ताजी है पर दूध हमेशा बासी। हालांकि इस कहानी में रोज ताजा दूध तो आता है फिर भी रोज चाय में कल का बासी दूध ही डलता है। बात इतनी सी है कि आज का दूध तो कल इस्तेमाल होगा क्योंकि आज तो कल का दूध इस्तेमाल होगा। अरे छोङो ये आज और कल के चक्कर को, इसपर बाद में चर्चा करते हैं।
किसी को नहीं पता कि आखिर में ये सब टंटा क्यों पाल रखा है। आखिर जब रोज दूध आता है तो रोज के रोज ही ताजे दूध का सेवन करके उसे खतम करो ना भाई, बाकी प्रकिया को अनावश्यक क्यों ही करना ?
असल में सारी समस्या भूत और भविष्य की है, और इनके चक्कर में वर्तमान की ताजगी बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है। चलिये इन भूत और भविष्य के बारे में थोड़ा और बात करते हैं…
ना कल का दूध बचा होता और ना ही आज वो इस्तेमाल होता और ना ही आज का दूध कल के लिये बचता। कल के बचे हुए काम, रिश्ते, अनुभव और अनुभूतियों को लेकर ही तो हम आज में आ पाए हैं, इनको ऐसे ही ज्यों का त्यों भूत में छोङकर तो वर्तमान में नही घुसा जा सकता। तो मतलब ये तो तय है कि वर्तमान की नींव ही भूत है, कल का दूध बचेगा ही, पर कितना बचना चाहिए और उसे आज इस्तेमाल कैसे करना है इस पे चर्चा की जा सकती है ।
चलो एक वक्त के लिए मान लेते हैं कि उतना ही दूध लेना चाहिए जितना केवल आज भर के लिए काफी हो। पर असल में ये मात्रा पता लगाना असंभव है, आखिर भविष्य किसने ही देखा है। आज दिन में कितने ही बार चाय बनेगी और कौन कौन दूध नहीं पियेगा ये सब तो जब होना होगा तभी पता चलेगा। और शायद इसी समस्या का निजात मंम्मी का वो दो पतीलों वाला सिस्टम है ।
तो मतलब मंम्मी का दो पतीलों वाला सिस्टम वर्तमान में भविष्य की तैयारी है और हमारे वर्तमान के भूत से प्रभावित होने का एक कारण भी है। पर इस पतीले वाले सिस्टम के चक्कर में ही हमारे वर्तमान की ताजगी बहुत कम और अधिकांशतः खत्म ही हो जा रही है। तो आखिर इस सिस्टम को सही माना जाए या गलत?
आपके कल में क्या हुआ उसको बदला नहीं जा सकता। उसकी सकारात्मकता को लेकर आप निश्चित तौर पर वर्तमान में आगे बढना चाहोगे पर आपके कल की नकारात्मकता को पूरा ज्यों का त्यों भूत में छोङकर केवल उसके निष्कर्ष मात्र को ही वर्तमान में रखना है ये ध्यान रहे। ऐसा ना होने पर आप वर्तमान में रहते हुए भी भूत में जी रहें होंगे।
भूत की नींव से बने वर्तमान का कुछ हिस्सा हमें भविष्य में भी निवेश करना होगा पर इस निवेश को शेयर बाजार वाले निवेश से अलग ही रखिएगा क्योंकि दोनों के मूल अलग है। शेयर बाजार में निवेश भविष्य पर केंद्रित है, पर जीवन के वर्तमान का भविष्य में निवेश वर्तमान पे ही केंद्रित होना चाहिये। आज को हमें पूरा जीना ही है बस यही उद्देश्य है ।
भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों के बारे में हमने बात की, इनके बीच रिश्तों पे भी चर्चा की, परिचय अच्छा रहा पर एक सवाल और छूट रहा है... कि क्या असल में ये तीनों अलग अलग इकाईयां हैं? अगर हम आज में जी रहे हैं तो बस कल ही तो बच रहा है। इसका मतलब तीन नहीं दो ही हैं, आज और कल । कल क्या है? कल था और कल होगा; दोनो कल के ही तो हिस्से हैं। कल के हिस्से 'हैं' नहीं, हिस्से 'थे' और 'होंगे' । अरे छोङो इसे, बहुत ही पेचीदा है कभी और बात करेंगे इसपे। अभी के लिए बस इतना समझो कि जीवन के अगर वर्तमान, भूत और भविष्य नाम के तीन हिस्से किये जाऐं तो वर्तमान का हिस्सा एक तिहाई आता है। पर अगर उसी जीवन के आज और कल नाम के दो हिस्से हो जाऐं तो जीवन का आधा हिस्सा आज यानी वर्तमान का हो जाता है। साफ सी बात ये है कि तीन ना समझ के अगर दो समझे जाएं तो वर्तमान का हिस्सा बढ जाएगा। सोचने पर ही सब निर्भर है, आखिर सोचना ही तो अभिव्यक्ति का मूल है।
अगर आपको ये कहानी पसंद आयी तो कृपया मुझे फॉलो करके मीडियम पार्टनर प्रोग्राम में शामिल करने में मदद करे। फॉलो Shashank Awasthi
इस कहानी को अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें