नीम्बू
मेरे अन्दर का रेशा रेशा
मुझमें जान डालता है,
वरना तो मैं नीरस छिलका हूँ |
वैसे तो,
मैं नमक अधिक पे काम करता हूँ,
अचार में नमक अधिक मुझपे |
उससे कहीं ज्यादा मैं खुद के तत्वों से गलता हूँ,
अपने ही प्यारों के सान्निध्य में कब
नीम्बू से अचार हो जाता हूँ,
न मैं जानता हूँ,
न तुम |
या तो हूँ मैं जिह्वा प्रेमी,
या गुलाम हूँ इच्छाओं का तुम्हारे |
आनंद ही आनंद है,
जब तक जिह्वा मेरी प्रेमिका है -
- मुझसे शुरू हो या तुमसे|
सितारे मेरी सतह पर जो हैं,
जाग उठते हैं स्वाद में तुम्हारे
मस्तिष्क के |
और मिचोलियों में तुम्हारे
चटकारे मैं लगाता हूँ |