Twinkle Nanda
3 min readOct 18, 2022

How do take meal?

खाना बस रोजाना किया जाने वाला कोई सामान्य काम नहीं है। आपको इस पर बहुत ध्यान देना चाहिये। आज आपके शरीर को इतना खाना चाहिये तो आप उतना ही खाएं। कल, हो सकता है कि आपके शरीर को उतने की ज़रूरत न हो।

आनंद लेते हुए खाऐः

हमें खाना ज़रूर चाहिये पर कृतज्ञता के भाव के साथ खाना चाहिये कि ये हमें पोषण दे रहा है, उसके स्वाद का आनंद लेते हुए इस भाव के साथ खाना चाहिये कि इसका हमारे जीवन के लिये कितना महत्व है! इसका मतलब ये नहीं है कि हम खाने की खुशी या उसके सुख को छीन लें। खाने का सच्चा आनंद इसमें है कि आपको इस बारे में जागरूक होना चाहिये।

ज़मीन पर पालथी लगाकर बैठें और खायें :

योग संस्कृति में आपको बताया जाता है कि आपको हमेशा पालथी लगाकर बैठना चाहिये और किसी ऊर्जा आकार के सामने पैर फैलाकर नहीं बैठना चाहिए। ये इसलिये है कि आप कई तरीकों से आपकी तरफ आने वाली चीजों को प्राप्त कर सकते हैं। जब भी आपको कोई शक्तिशाली रूप दिखे तो अपने पैरों को क्रॉस करके (पालथी लगाकर) खाऐं। याद रखना बहुत यह जरूरी है कि जब खाना आपके सामने आए तो आप पालथी लगाकर बैठें।

अपने हाथो से खाऐंः

अगर आप भोजन को हाथों से छूते नहीं हैं तो आपको पता नहीं चलता कि वो कैसा। अगर खाना छूने के लिये अच्छा न हो तो मुझे नहीं मालूम कि ये खाने के लिये कितना अच्छा हो सकता है! एक चम्मच या कौंटा कितना साफ है, इसके बारे में आप कुछ नहीं कह सकते क्योंकि ये आपके हाथों में हो ये ज़रूरी नहीं। सबसे बढ़कर, जब आप कांटे का उपयोग करते हैं, तो आपको भोजन का अनुभव नहीं होता है। जब भोजन आपके सामने दिखाई दे, तो कुछ क्षण के लिए भोजन के ऊपर अपने हाथ रखकर यह महसूस करें कि भोजन कैसा है। अगर मेरी थाली में कुछ दिखाई देता है और मैं उसे महसूस करता हूँ, तो मुझे पता चल जाता है कि क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।

चबा चबा कर खाऐंः

योग में कहते हैं, “जब आप खाने का एक कौर लेते हैं तो इसे 24 बार चबायें”। इसके पीछे बहुत सा विज्ञान है, पर मूल रूप से, ऐसा करने से हमारा भोजन मुँह में ही ‘पचने के लिये तैयार’ अवस्था में आ जाता है और शारीरिक प्रणाली को सुस्त नहीं बनाता। इसे 24 बार चबाने से उस भोजन की जानकारी प्रणाली को समझ में आ जाती है और शरीर की हर कोशिका ये निर्णय लेने में सक्षम हो जाती है कि आपके लिये कया सही है और क्या नहीं — स्वाद की दृष्टि से नहीं बल्कि इस हिसाब से कि सारी प्रणाली के लिये क्या ठीक है — इसे कुछ देर तक करने से शरीर की हर कोशिका ये जान जायेगी कि उसे कया पसंद है और क्या नहीं।

खाते समय बातें न करें :

जब बच्चे खाते समय बातें करना चाहते हैं तो हम उन्हें कहते हैं, “शशश…, चुप, खाते समय बोलो मत”! इसकी वजह यही है कि बोलना अंदर से बाहर आता है और उसी समय खाना बाहर से अंदर जा रहा होता है — आप दोनों काम एक ही समय कैसे कर सकते हैं? जब मुझे बोलना है — तो मेरे मुँह में से कुछ तो बाहर आना है और जब खाना है तो कुछ तो बाहर से अंदर जाना है। अगर मैं ये दो काम एक ही साथ करूँ तो कुछ गड़बड़ हो सकती है।

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