बरामदा और उसके आगे शेहर

कुछ दिनों से
एक अजीब
रंग छाया है
बरामदे मे
कमरे में भी
थके होठ
खामोश बाते
अंधेरो में लिपटी
उदास साँसे
और कुछ
आंसुओ की आहट
कागज़ को कलम का इंतज़ार
कलम को रौशनी का
कभी चांदनी युही
बरामदे में बैठी
हवाओ से बाते करती
अब ऊँचे मकानों
की गिरफ्त में हवा
और बादलो की
कैद में चाँद
मिल नहीं पाते
हाल ये है
मुझसे बस
दो गज़ दूर
हालाते शेहर
पूछने से
घबराता हु मै
please pardon spelling mistakes