शून्यालाप

Ankur Pandey
anantim
Published in
1 min readFeb 26, 2024

[जून 2014]

संडे रात चार बजे
मैं छज्जे से रोड को
और पाइथन के कोड को
देख कर सोच रहा कैसे डिबग करूँ?
तारकोल उढ़ेल कर, रूबी को रेल पर
लैपटॉप गोदी और हिंदुस्तान मोदी पर
डाल कर मैं हो गया हूँ पात-पात,
गात माहिं बात करामात,
इंस्टाग्राम व्हाट्सैप
यूपी में गैंगरेप
अर्थशास्त्र-राजनीति-तकनीक-संगीत-कला
शब्दों का सिलसिला
पीला-पीला, पिलपिला
कहीं कहीं लाल भी
रंगों में घिसट-घिसट
बीत गए मिनट-मिनट
घंटे-दिन, दिन-महीने,
साल भी
बालों की खाल भी

सत्य का आह्वान करो-
तो सत्य की सौतेली बहन उत्तर-आधुनिकता
जिसके कमाटीपुर में धुंआधार बिकती है
औने-पौने दाम में
छद्म-बौद्धिकता और इंस्टेंट कामुकता,
मैं बोर हो जाता हूँ पर अघा नहीं पाता
गला भर्राता नहीं
जिया घबराता है
के पन्ना अभी खाली है,
क़सम है मुझे इस उत्तर-आधुनिकता की
विज्ञान की और धर्म की
उस तथाकथित मर्म की
सीरिया की, ईराक़ की
ओबामा, अमर्त्य की
कटे-फटे, लुटे-पिटे, गिरे-पड़े सत्य की
और क़सम उस ख़ुदा की-
के पन्ना ये भरना है,
शब्दों का झरना है
या नाला या सीवर भी
समय का साइफन जाम ठीक कर देगा
मेरा जाम भर देगा
वरना क़सम खाकर शब्दों के झरने की
जाम और चखने की
और क़सम उस ख़ुदा की-
रामकथा बांचन को जामवंत स्वर देगा.

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