“मैं मृत्यु शैय्या पर भी होउंगी तो तुम्हारे आदेश पर हंस सकती हूँ।”
- सुधा ( गुनाहों का देवता )
चन्दर के प्रेम ने सुधा को पवित्रता की ऊंचाइयां दी। चन्दर को त्यागकर सुधा को समाज में ऊँचा स्थान तो मिला लेकिन इसके साथ ही सुधा को मृत्यु भी प्राप्त हो गई। चन्दर के नज़रिये से सुधा किसी और से शादी करके खुश रहेगी और कोई भी सुधा के चरित्र पे ऊँगली न उठा पायेगा। पर चन्दर ने ये नहीं सोचा की सुधा के लिए चंदर उसकी ज़िन्दगी है और चन्दर के लिए सुधा उसकी प्रेरणा। वो दोनो बचपन से साथ थे पर उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ की वो एक दूसरे से कितना प्यार करते हैं। जब चन्दर और सुधा अलग हुए तो सुधा ने तो खुद को बर्बाद कर लिया और चन्दर की भी ज़िन्दगी तबाह होती गई। वो सुधा जो इतनी चंचल, खूबसूरत और नाज़ुक थी जिसमें बचपना था वो अचानक से बदल सी गई। वो सुधा सिर्फ एक पीला पत्ता बनकर रह गई जिसे ज़िन्दगी का तूफ़ान जहाँ ले गया वो बस खुद को बर्बाद करते हुए चलती गई।
सुधा चन्दर को अपना देवता मानती थी जिसके चरणों में उसने खुद को अर्पित कर दिया बस चन्दर की एक आवाज़ और चन्दर के लिए सुधा कुछ भी कर दे। चन्दर के कहने पर ही सुधा ने शादी के लिए हामी भरी पर चन्दर ने सुधा को समझने में भूल करदी उसकी आँखों में समाज की पट्टी बंध गई। और चन्दर की आँखों में सुधा का चरित्र कुछ और ही हो गया। चन्दर ने जब सुधा के प्रेम की पवित्रता समझी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पर मेरे ख़याल से सुधा को अपना देवता तब मिला जब वो अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी और आखिर सुधा ने अपनी सांसे अपने देवता चन्दर की गोद में तोड़ी।
चन्दर के फैसले से कई जिंदगियां जुड़ी थी कुछ जिंदगियां सम्भली और कुछ जिंदगियां बिल्कुल बिखर गई। बिल्कुल सुधा के नज़रिये से चन्दर उसका देवता था, पर सुधा की पूरी ज़िंदगी में चन्दर के नज़रिये से वो देवता तो था पर “ गुनाहों का देवता ” था। एक बहुत खूबसूरत और अधूरी प्रेम कथा का उपन्यास है “ गुनाहों का देवता ”।
धर्मवीर भारती जी ने अपनी कलम के ज़रिये अपनी भावनाएं, अपना दिल उतार दिया है इस उपन्यास में। उपन्यास का नायक चन्दर एक सुलझा हुआ समझदार युवक है जो अपना घर त्याग के पढाई करने आया है और सुधा उसके आश्रयदाता शिक्षक की पुत्री है जिसकी माँ नहीं थी दोनो ने एक दूसरे को संभाला। उनके प्यार में वो पवित्रता थी कि उन्हें अपने प्रेम का एहसास ही तब हुआ जब वो एक दूजे से अलग हुए। सुधा और चन्दर का प्रेम आत्मिक था शारीरिक नहीं। चन्दर और सुधा का ये संवाद सब कुछ स्पष्ट करता है —
मैं तुम्हारे मन को समझता हूँ , सुधा ! तुम्हारे मन ने जो तुमसे नहीं कहा, वह मुझसे कह दिया था — लेकिन सुधा, हम दोनों एक दूसरे कि ज़िन्दगी में क्या इसलिए आये कि एक दूसरे को कमज़ोर बना दे या हम लोगों ने स्वर्ग की ऊंचाइयो पर साथ बैठकर आत्मा का संगीत सुना सिर्फ इसलिए कि उसे अपने ब्याह की शेहनाई में बदल दें ?
चन्दर और सुधा ने अपने प्रेम को अपनी कमज़ोरी नहीं बनाई पर अपने प्रेम के कारण वो दोनों कमज़ोर हो गए। धर्मवीर भारती जी की ये उपन्यास मैंने रेलवे स्टेशन में ख़त्म की और हर एक शब्द हर एक वाक्य में जो भावनाये थी वो महसूस हुई और दिल को छूकर आँखों से आंसू बनकर बिखर गई। धर्मवीर भारती जी ने इस उपन्यास में प्राण फूँक दिए है। आज भी इस उपन्यास के सारे चरित्र और सुधा-चन्दर मेरे ज़हन में बस चुके हैं।इस उपन्यास के हर वाक्य ने मुझे मजबूर कर दिया, इस उपन्यास को जीने के लिए।
Written by: Prachi Sahu
Edited by: Karsh