सो, यू आर फ्रॉम “हिंदी मीडियम” — हिंदी दिवस विशेष
अनेकता में एकता बोलकर हम कितना सुकून और गर्व महसूस करते हैं और हम में से बोहतों ने तो इस विषय पर हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में निबंध भी लिखे होंगें। मेरे लिए हिंदी दिवस हमेशा से कुछ ख़ास हुआ करता था, “आई मीन” कुछ डिफरेंट महसूस होता था इस दिन। आप भी कहेंगें कि हिंदी दिवस पे लेख लिख रहा हूँ और वो भी अशुद्ध, तो वैसा ही सही पर अपने तो अपने होते हैं ना? हिंदी भी अपनी है, अब चाहें हम इसे कैसे भी बोलें, कहीं भी बोलें और इसके लिए हमारा दोस्तों के बीच कितना ही मज़्ज़ाक़ क्यों न उड़ाया जाए।
हिंदी में कई विदेशी भाषाओँ से लिए हुए अनेकों ऐसे शब्द हैं जो आप रोज़ इस्तेमाल करते हैं मतलब जिस भी ध्वनि को हिंदी में लिखा और बोला जा सके वो हिंदी का ही हो जाता है “यू नो व्हाट आई मीन”। निर्णय वैसे आपको करना है कि जब आप किसी अपने को रेलवे स्टेशन छोड़ने जायेंगें तोह ट्रेन को ‘लौहपथगामिनी’ बोल पायेंगें, कहीं इतने में आपके रिश्तेदार की लौहपथगामिनी न छूट जाए। खैर, मुझे आपकी हिंदी के प्रति निष्ठा पर पूरा विश्वास है।
मैं बचपन से ही कान्वेंट में पढ़ा, ज़्यादातर माता — पिता ये जानते थे कि ये नया ज़माना है, उन्होंने बड़ी मशक्कत करके मुझे इंग्लिश मीडियम में पढ़ाया ताकि जिंदगी में पीछे न छूट जाऊं। बड़ा अटपटा लगता कि जब घर पर हिंदी बोलता हूँ तो स्कूल में सब इंग्लिश में क्यूँ? मन ही मन मैंने भी स्वीकार कर लिया कि स्कूल होता ही ऐसा है, दूर और दुर्गम। मैंने हिंदी में बोलने पर जुर्माना भी भरा और कभी-कभी दोस्ती यारी में भी हिंदी आ जाती फिर भी हिंदी ने अपना स्थान कायम रखा। हिंदी की क्लास का इंतज़ार करता फिर भी हिंदी की परीक्षा में सबसे काम अंक आते थे।
फिर इंजीनियरिंग करने एन.आई.टी आ गया। इस राष्ट्रीय संसथान में तो हिंदी को मैंने और झूझता पाया। जो दोस्त हिंदी मीडियम से आये थे उनकी बैक्स पर बैक्स लगा करतीं और वो बड़ी घुटन महसूस करते। कॉलेज में बहुत सारे क्लब्स में से एक क्लब राजभाषा समिति का भी था, जिसके बारे में शायद ही किसको पता होता था। जब किसी भी क्लब में मेरा चयन नहीं हुआ तो मुझे अपनी माँ ही याद आयी, मैं घर लौट आया और हिंदी के आँचल में मुझे वो सुकून एवं आज़ादी मिली और उतना ही प्यार होता चला गया। खूब जमके काम किया और जब राजभाषा की जिम्मेदारी हाथ में आयी तो जोरदार तरीके से हिंदी सप्ताह और दिवस मनाया। बेहतरीन लोगो डिज़ाइन किया, पूरे कैंपस में झालरें लटकाईं, ढोल पीट पीट के नुक्कड़ नाटक किये और शान से राजभाषा समिति की हूडि पहन कर घूमा करते। अगली दफा जब समिति का पुनर्घटन किया तो बहुत सारे छात्र जुड़े और टीम का विस्तार किया। अब हम कैंपस के बहार भी अपने गीत और किस्से सुनाने जाया करते और इनाम की राशि से नुक्कड़ पर चाय — समोसे की दावत उड़ाया करते और एक दफ़ा तो डिस्को भी बुक किया था।
हिंदी ने मुझे सब कुछ दिया, जैसे महात्मा गांधी ने कहा था “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है, हृदय की कोई भाषा नहीं है, हृदय-हृदय से बातचीत करता है और हिन्दी हृदय की भाषा है”,
हालाँकि भारतीय संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा के रूप में नहीं माना गया है। सरकार ने 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा के रूप में जगह दी है। जिसमें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार अपने जगह के अनुसार किसी भी भाषा को आधिकारिक भाषा के रूप में चुन सकती हैं। केन्द्र सरकार ने अपने कार्यों के लिए हिन्दी और अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक या राजभाषा भाषा के रूप में जगह दी है, भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विभिन्नताओं के लिए जाना जाता है। यहां हर राज्य की अपनी राजनैतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है। हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर 1949 को मिला था, हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
लेकिन आपको हिंदी से प्रेम करने के लिए इन सब तथ्यों की आव्यशकता कहाँ, सिंधु नदी के किनारे चलते चलते आप “हिंद के” या “हिंद का” हो गयें हैं, वो आपके अंदर है। आप फिर अपनी पहचान यूनानी में ‘इन्दिका’ बताएं या अंग्रेजी में ‘इंडिया’। हिंदी दिवस पर पूरे विश्व को शुभकामनाएं, क्यूंकि अब दौर हमारा है और हम कूल तो नहीं पर अलमस्त जरूर हैं। जय हिन्द !
इच्छा तोह थी कि ये लेख किसी अखबार में छपे पर कभी शब्द ज्यादा हो गए तो कभी ‘मार्केटिंग’ के लिहाज़ से सही नहीं बैठा। हमने वैसे भी कोनसा तीर मार लिया है, न हम कोई ‘बेस्ट-सेलर’ हैं, बस हृदय की बात बयान करनी थी, अब कोई सुने चांहे न सुने और फिर इस कश्मकश में अपने आँगन में ही श्याही उड़ेल दी…
हिंदी दिवस पर एक लेख लिखना चाहता हूं
ऐसा जो भले ना छपे अख़बार में
पर बीके न शब्दों के बाज़ार में
हृदय की बात हृदय ही सुनें समझे
और न दबे किसी के कबाड़ में
पुरखों की इस अमानत को सहेजना चाहता हूं
हिंदी दिवस पर एक लेख लिखना चाहता हूं
कुछ बाटना चाहें तोह दिल खोलकर साझा करें, हर बात और “हर ज़रूरी बात” अब अखबार में थोड़े ही छपती है..