gaurav singh
Arz Kia Hai Guru
Published in
5 min readApr 18, 2018

--

जो कुछ पढ़ा और जज़्ब किया

ज़माना डिजिटल हो चला है और उसके साथ- साथ साहित्य भी। कथाएँ और कविताएँ भी अब इंटरनेट पर आ गयी हैं और कई लोग वीडियो में कविताओं के ‘पर्फोर्मन्स’ देखना ज़्यादा पसंद करते हैं। मगर इसी दौरान पुरानी और बेहतरीन नज़्में, ग़ज़लें और कविताएँ खोती जा रही हैं।

शायद यही वजह है कि आज हम बड़े फनकारों से दूर होते जा रहे हैं और साहित्य की गहराइयों में उतरने के बजाय किनारों के छिछले पानी तक ही सिमट कर रह गए हैं |

मेरी स्कूल के दिनों से ही पढ़ने में खासी रुचि रही। हिंदी और अंग्रेजी साहित्य से शुरुआत हुई और उम्र के बढ़ते- बढ़ते उर्दू साहित्य की तरफ भी झुकान होता चला गया।

हिंदी में मेरे पसंदीदा कवियों और कवयित्रियों में प्रमुख रहे बच्चन, दिनकर, महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद और दुष्यंत कुमार । यूँ तो मैंने और भी कवियों की रचनाएँ पढ़ी हैं मगर अधिकाधिक इन कवियों को पढ़ा है। इनकी प्रमुख रचनाओं में से मेरी पसंदीदा रचनाएँ हैं :

१ रश्मिरथी — दिनकर

२ कुरुक्षेत्र — दिनकर

३ व्याल विजय — दिनकर

४ हुंकार — दिनकर

५ मधुशाला — बच्चन

६ मधुबाला — बच्चन

७ निशा निमंत्रण — बच्चन

८ मधुकलश — बच्चन

९ नीरजा — महादेवी वर्मा

१० कामायनी — जयशंकर प्रसाद

११ चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य — जयशंकर प्रसाद

१२ साए में धूप — दुष्यंत कुमार

यहाँ दिनकर जी की कुछ एक पंक्तियाँ पेश करूँगा जो कि रश्मिरथी से ली गयी हैं,

“पीसा जाता जब इक्षुदंड,

बहती रास की धरा अखंड।

मेहंदी जब सहती है प्रहार,

बनती ललनाओं का श्रृंगार। “

Ramdhari Singh Dinkar

ये संघर्ष और उससे उत्पन्न होने वाले ओज को बखूबी दर्शाती हैं।

जहाँ दिनकर जी ने वीरता और संघर्ष को इतनी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया ,वहीँ दूसरी तरफ दुष्यंत कुमार ने सामाजिक न्याय से होते हुए खिलवाड़ को दर्शाते हुए कहा है,

“कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए,

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। “

वो संघर्ष और प्रेम को एक साथ लिए चलते थे,

“एक जंगल है तेरी आँखों में,

मैं जिसमें राह भूल जाता हूँ।

जब से कट गया है एक बाज़ू,

और भी ज़्यादा बोझ उठाता हूँ। “

वैसे ही जैसे कि महान कवि बच्चन जी ने कहा है ,

“नाश के भय से कभी, दबता नहीं निर्माण का सुख,

प्रलय की निश्तब्धता से सृष्टि का नवगान फिर- फिर “

Harivansh Rai Bachchan

इसी जीवन और विध्वंश के चक्र पर जयशंकर प्रसाद जी ने पूरी की पूरी कामायनी लिख दी है।

हिंदी साहित्य जितना वृहत है, उतना इसमें कवि और उनकी रचनाएँ एक- दूसरे से सम्बंधित।

इसी दौरान हिंदी के साथ- साथ अंग्रेजी का सफर भी बरक़रार रहा। अंग्रेजी में पद्य से ज़्यादा गद्य पढ़ा और इन दोनों में से चुनिंदा रचनाएँ हैं।

Prose: Novels/ Drama (Classics)

1. Great Expectations- Charles Dickens

2. David Copperfield- Charles Dickens

3. Oliver Twist- Charles Dickens

4. A Tale of Two Cities- Charles Dickens

5. Julius Caesar- Shakespeare

6. The Tempest- Shakespeare

7. Macbeth- Shakespeare

8. Othello- Shakespeare

9. As you like it- Shakespeare

10. Merchant of Venice- Shakespeare

11. Hamlet- Shakespeare

Shakespeare writes as if a mystic. You can fish out a thousand meanings from his verses and yet a few more thousand remain unexplored. Minute phrases contain so much of hidden meaning and interpretations within them. Consider these for instance,

Fair is foul and foul is fair”

- Macbeth

“It is as easy counting atomies than to resolve the propositions of a lover”

- As you like it

“Honour and beauty in the owner’s arms are never well fortressed from the world of harms”

  • The rape of Lucrece
William Shakespeare

Poetry: I have loved the poetries of Keats, Shelley, Wordsworth, Shakespeare and Wilfred Owen

Keats describes romance like no one else has ever been able to. Consider this,

“I wandered in a forest thoughtlessly,

And, on the sudden, fainting with surprise,

Saw two fair creatures, couched side by side

In deepest grass, beneath the whisp’ring roof

Of leaves and trembled blossoms, where there ran

A brooklet, scarce espied:”

- Ode to Psyche

Shelley’s nature description is unparalleled. He describes a cloud as,

“Like a child from the womb, like a ghost from the tomb,
I arise and unbuild it again.”

- The Cloud

Short stories: Favourite authors include O’ Henry, Hector Hugh Munro, Mulk Raj Anand, Khushwant Singh and Ruskin Bond to mention a few.

O’Henry’s story “The Last Leaf” still remains my all time favourite after reading so many writers and their creations. Mulk Raj Anand’s “The Child” is so simple yet so deep. The way Khushwant Singh paints pictures of death and destruction in his tales about partition is heart wrenching and who can forget Bond’s “The Night Train to Deoli” !

William Somerset Maughan- O’Henry

उर्दू में रचनाओं के बारे में बात करने से बेहतर होगा फनकारों के बारे में बात करना। उर्दू के पसंदीदा शायरों में शुमार हैं सबके मेहबूब शायर मिर्ज़ा ग़ालिब, फैज़ अहमद फैज़, मीर-तक़ी-मीर , बशीर बद्र, अहमद फ़राज़, क़तील शफ़ई और असरार- उल -हक़- मजाज़ |

उर्दू ग़ज़ल की खूबसूरती का कोई सानी नहीं |

जहाँ ग़ालिब इश्क़ होने को कुछ यूं बयान करते हैं,

“दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,

दोनों को एक अदा में रज़ामंद कर गई। “

तो वहीँ फ़राज़ किसी के हुस्न की तारीफ़ में कहते हैं कि,

“सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है,

कि फूल अपनी क़बाएँ क़तर के देखते हैं। “

वही बद्र साहब रूहानी रिश्ते की तरफ इशारा करके कहते हैं,

“उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,

ना जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए। “

Bashir Badr

उर्दू का रिश्ता सिर्फ मोहब्बत से ही नहीं है, जैसा कि कई लोग समझते हैं।उर्दू में इन्कलाब भी है, फिर वो बिस्मिल हों या फैज़ |

जहाँ बिस्मिल जी ने लिखा ,
“बहे बहर-ए- फ़ना में जल्द या रब लाश बिस्मिल की,
के भूखी मछलियां हैं तैरती शमशीर कातिल की | “

Ram Prasad Bismil

वहीँ फैज़ लिखते हैं ,

“ जब ज़ुल्म-ओ — सितम के कोह-ए — गरा ,

रूई की तरह उड़ जाएँगे।

हम मह्कूमों के पाँव तले,

ये धरती धड़- धड़ धड़केगी। “

मैं जानता हूँ कि साहित्य बहुत वृहत है और ये सूचि बहुत छोटी, मगर ये तो शुरुआत है और आगे उम्र पड़ी है साहित्य के समुन्दर में गोंते लगाने के लिए |

--

--