न मैं चुप हूँ, न गाता हूँ- अटल जी — राजनेता और कवि

gaurav singh
Arz Kia Hai Guru
Published in
5 min readAug 16, 2018
Creative by: Ankit Singh. www.arzkiahai.com

“बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं |
टूटता तिलिस्म, आज सच से भय खाता हूँ |
गीत नहीं गाता हूँ |

लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर |
अपनों के मेले में, मीत नहीं पाता हूँ |
गीत नहीं गाता हूँ |

पीठ में छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फांद |
मुक्ति के क्षणों में बार- बार बंध जाता हूँ |
गीत नहीं गाता हूँ |”

Source: Deccan Chronicle

गीत नहीं गाता हूँ कहते हुए भी अत्यंत सुमधुर कविता और लेखनी के धनी स्व. श्री अटल बिहारी वाजपई एक सियासत्दार होने से पहले कवि और कवि होने से पहले अत्यन्त उच्च कोटि के मानव थे, जिनके ह्रदय में देश और देशवाशियों के लिए अपरिमेय स्नेह किसी कल- कल करती धारा की तरह बहता था |

“मुझे दूर का दिखाई देता है,
मैं दीवार पर लिखा पढ़ सकता हूँ,
मगर हाथ की रेखाएँ नहीं पढ़ पाता |

सीमा के पार भड़कते शोले
मुझे दिखाई देते हैं |

पर पाँवों के इर्द- गिर्द फैली गर्म राख
नज़र नहीं आती |
क्या मैं बूढा हो चला हूँ ?”

Source: Livemint

ये कविता अटल जी ने २५ दिसम्बर १९९३ को लिखी थी | २५ दिसम्बर का अटल जी के जीवन में विशेष महत्त्व है| २५ दिसम्बर १९२४ को ही ग्वालियर स्टेट में कृष्ण बिहारी वाजपई और कृष्णा देवी के घर में उनका जन्म हुआ था | उनका परिवार यों तो उत्तर प्रदेश के आगरा शहर स्थित बटेश्वर से था मगर उनके दादाजी पंडित श्याम लाल वाजपई मोरेना में आकर बस गए थे | अटल जी की प्रारम्भिक शिक्षा सरस्वती शिशु मन्दिर, ग्वालियर से हुई और उच्च शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज और कानपूर के डी ए वी कॉलेज से हुई |

“ऊंचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है |

जमती है सिर्फ बर्फ,
जो कफ़न की तरह सफ़ेद और
मौत की तरह ठंडी होती है |
खेलती, खिलखिलाती नदी,
जिसका रूप धारण कर
अपने भाग्य पर बूँद- बूँद रोती है |”

Source: Vishwa Samvada Kendra

अटल जी की कविता ‘ऊंचाई’ से उद्धृत ये चंद पंक्तियाँ उनके जीवन की दिशा और उनके सोच को बखूबी बयाँ करती हैं | कुछ ऐसी ही सोच, जो की ऊंचाईयों से धरती पर होने वाले ज़ुल्मों के विरुद्ध सतत संघर्ष का अनुष्ठान करना चाहती थी, के साथ उन्होंने सन १९३९ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ग्रहण की और स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आपातकाल के विरोध तक में सतत सक्रिय भूमिका निभाते रहे |

“कौरव कौन, कौन पाण्डव,
टेढ़ा सवाल है |
दोनों ओर सकुनी का फैला
कूटजाल है |
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है |

हर पंचायत में
पांचाली अपमानित है |
बिना कृष्ण के आज
महाभारत होना है ,
कोई राजा बने,
रैंक को तो रोना है |”

A film made on historic Operation Shakti (Pokhran-II) under Atal Bihari Vajpayee; the word “Shakti” (Devanagari: शक्ति) means “power” in Sanskrit. 11 May 1998.

पहले जनसंघ, और फिर भारतीय जनता पार्टी के संग उन्होंने देश और देशवाशियों के उत्थान के लिए सौ- सौ जतन किए | चाहे वो सर्व शिक्षण अभियान हो, या की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, या फिर परमाणु परिक्षण- अटल जी ने जो ख्वाब इस देश के लिए बुने थे, उनसे कभी भी समझौता नहीं किया | जब सारा विश्व भारत के विरुद्ध हो गया था तब भी सफलतापूर्वक परमाणु परिक्षण करने के बाद उन्होंने जो सन्देश देश के दुश्मन ताकतों को दिया वो कुछ यूँ है:

“एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते,
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा |
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता,
अश्रु, स्वेट, शोणित से सिंचित यह स्वतंत्रता |
त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता ,
प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता |

इसे मिटाने की साज़िश करने वालों से,
कह दो चिंगारी का खेल बुरा होता है |
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है |”

Atal Bihari’s instance during the historic speech of Indian politics which he delivered at his resignation after the fall of his 13 -day government in 1996.

मगर ये सारी कोशिशें और उनसे जन्मी सफलता इतनी आसानी से हासिल नहीं मिली थी | जब १९९६ में पहली बार वो सत्तासीन हुए तो मात्र तेरह दिनों के बाद ही सिंघासन छोड़ना पड़ा | मगर अटल जी के लिए आसन कभी सिंघासन था ही नहीं | ये स्पष्ट हुआ उन्ही १३ दिनों के दौरान दिए गए उनके भाषण से, जिसमे उन्होंने कहा था:

“सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएँगी, सरकारें जाएँगी, पार्टियाँ बनेंगी, पार्टियाँ बिगड़ेंगी, मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए |”

फिर जाकर १९९८ लोक सभा चुनाव के उपरांत वो स्थिर सरकार बनाने में सफल हुए और देश को कई वर्षों के बाद प्रगति की नव दिशा में लेकर बढे ही थे कि कारगिल संकट का सामना करना पड़ा | और उन्होंने इससे सामना भी बखूबी किया | जहाँ हमारे जवान सीमा पर निर्भीक लडे तो वहीँ अटल जी की कविताओं ने भी हौसला बंधाने का काम किया,

“हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता- मिटाता हूँ |
गीत नया गाता हूँ |”

भारत विजई हुआ, न की सिर्फ कारगिल में, बल्कि हर क्षेत्र में — चाहे वो सरहद पर हो या वैश्विक अर्थव्यवस्था के द्वार पर दस्तक देता नवस्फूर्ति से भरा भारत देश- ये सब अटल जी के नेत्रित्व का ही कमाल था |

राजनीति की दुनिया से अलग हटकर भी उनकी कुछ रुचियाँ थीं, जिनमे पठन- पाठन और लेखन सर्वोपरी थे | वो ताउम्र कविताएँ लिखते रहे और किसी कविता के अंतिम छंद की तरह ही सबको विचारशील छोडकर ख़ामोशी के साथ ताल मिलाते हुए प्रकाशपुंज में समाहित होने गतिमान हो गए |

Last moments of Atal Bihari Vajpayee. Source: Hindustan Times

“सवेरा है, मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल,
रूई से धुंधलके में, मील के पत्थर पड़े घायल,
ठिठके पाँव,
ओझल गाँव,
जड़ता है न गतिमयता,
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से मैं देख पाता हूँ |
न मैं चुप हूँ, न गाता हूँ |

समय की सर्द साँसों ने, चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती चुनौती एक द्रुम्माला,
बिखरे नीड़,
विहँसी चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर अकेला गुनगुनाता हूँ |
न मैं चुप हूँ, न गाता हूँ |”

Edited by: Karsh

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