आधी अधूरी कविताएं
डायरी में बंद,
कागजों पर उकेरी,
बच्चों से जिद्दी,
वो मेरी आधी अधूरी कविताएं,
गुस्से में आज भी घूरती है मुझको,
चाहती है वो पूरा होना,
दोनों जहान की सैर करना,
इठलाना चाहती हैं खुद पर,
मैं जानता हूं उनके बड़े होने की शर्त,
आसमान में उड़ने का उनका ख्वाब,
सुरभ में मदहोश होने की लत,
सब कुछ तो मैं जानता समझता हूं,
पर अब उनका पूरा होना मुमकिन नहीं
मुमकिन नहीं वह अंजाम तक पहुंच पाए,
मुमकिन नहीं उनका कोई सवेरा हो,
वो किसी के होंठों का तराना बन पाए,
मुमकिन नहीं उन्हें जमाने-शोहरतें हासिल हो,
ठीक वैसे ही जैसे मरे हुए जिस्म का,
जाग जाना मुमकिन नहीं,
ठीक वैसे ही जैसे खुदा का,
जमीन पर, इस जहां में आना मुमकिन नहीं,
इनका खुदा तुम ही तो हो
और अब इन्हें तुम हासिल नहीं,
ठीक वैसे ही जैसे तेरा,
मेरी जिंदगी में आना मुमकिन नहीं,
क्योंकि इनका वजूद तुम ही तो हो
इसीलिए आज भी डायरी में बंद,
कागजों पर उकेरी,
बच्चों से जिद्दी,
वो मेरी आधी अधूरी कविताएं,
गुस्से में आज भी घूरतीं है मुझको,
गुस्से में आज भी घूरतीं है मुझको।।