कैसे
एक तो नादान दिल है मेरा
इसे समझाऊं कैसे,
मैं तो खुद ही खुद से खफा,
खुद को अब मनाऊं कैसे।।
रोने की खुमार,
एक गंदी लत हमको,
मैं हंसी के तराने,
अब होठो पर लाऊं कैसे।।
फूलों सी नाजुक तुम,
कोमल सी कली,
मैं कटीले झाड़ सा,
तुम्हें गले लगाऊं कैसे।।
आंखों पर है बंधी,
इश्क वाली पट्टी
अब इसे कोई राह,
कोई शख्स दिखाऊं कैसे।।
आंखों से रिस-रिस के,
बना एक जलजला समंदर,
मैं तो फिर भी हूं प्यासा,
यह आग बुझाऊँ कैसे।।
ताक में रखते हैं हर वक्त,
खट-खटें दरवाजों की,
तुम नहीं आने वाले,
अब इन्हें बताऊं कैसे।।
लब खामोश हैं मेरे,
बंद है यह जुबान,
चीखती खामोशी को,
अब खामोश कराऊँ कैसे।।
एक तो नादान दिल है मेरा,
इसे समझाऊं कैसे,
मैं तो खुद ही खुद से खफा,
खुद को अब मनाऊं कैसे,
खुद को अब मनाऊं कैसे।।