सवाल-जबाव
हर कोई जब पूछता है
वहीं एक आम सवाल,
तो मै भी थमा देता हूँ
बच्चों के हाथ में झूनझूने जैसा,
वहीं रद्दी सा घिसा-पिटा जबाब,
पर आज आईने में खुद को देख
खुद सें ही पूछ लिया वहीं सवाल,
“कैसे हो जनाब ???”
फिर ना हो पाई,
हिम्मत खुद से वहीं \
रंगीन झूठ बोलने की,
और सच तो गुमशुदा था शायद
मेरे बचपन की गलियों में,
गाँव की कच्ची सीली दीवारों में,
माँ के शीतल आँचल की छाँव में,
पापा के बनावटी गुस्से और डाँट में,
मास्साब के पकाउ लेक्चर में,
स्कूल की बेक-बेंच के रोमांस में,
कच्चे आमों की चोरी में,
नयनमटकका संग छोरी में,
पैरो से चींटियों के मसलने में,
बहनों संग रोज झगड़ने में,
और ना जाने कहाँ कहाँ,
तब जबाव था,
मगर सवाल नदारत था,
आज सवाल है,
तो जबाव है लापता,
सब कुछ ना मिलना ही तो
है आखिर जिंदगानी,
अब शायद,
दहलीज-ए-मौत पर,
होगा मिलन दोनों से,
जब सवाल जबाव लिपटकर,
समा जायेंगे रूह में,
और कह देंगे इस जिस्म को
अलविदा मेरी जान
मेरी जान अलविदा
क्योकि फिर ना कोई होगा,
जो पूछेगा एक सवाल,
ना ही होगी
जरूरत किसी जबाव की।।