औरत

हक़ीक़त और तुम

Kritika Mehta
Bhed aur Bhav

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गर मैं लड़का होती तो क्या होता?
क्या मेरा इरादा साफ़ होता?
जहां मोहल्ले के नुक्कड़ की पहचान छेड़ने वालों की टोली से होती है
क्या मेरी सीख में उस नुक्कड़ की पहचान को बदलने की ज़िम्मेदारी का भार होता?

मैं एक लड़की
सैकड़ों में एक कोई
ज़िंदा हूँ
विशेषाधिकार प्राप्त भी

क्योंकि मुझे सुकून उन बातों का है
जो मेरे जीवन का सच न बनीं
जैसे वो डॉक्टर
क्योंकि मैंने भी
अपने काम करने की जगह को सुरक्षित समझकर
रात-रात भर काम किया है|
जैसे निर्भया
क्योंकि मैंने भी रात को अकेले या किसी और के साथ
बस का सफ़र तय किया है|
जैसे 5 साल की वो बच्ची
क्योंकि उस उम्र में
मैंने सही-गलत का फर्क किए बिना
हर हँसते हुए चेहरे पर विश्वास किया है|

और जैसे मेरी उम्र के पैंतीस साल
जिनमें मेरे देश में लाखों से ऊपर लड़कियों का बलात्कार हुआ है
पर जैसे जानवर को औरत की उम्र से फर्क नहीं पड़ता
5 की हो या पचासी की

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Kritika Mehta
Bhed aur Bhav

Life's curveballs only strengthened my spirit. Today, I flourish as an author, artist, and connoisseur of life, imparting wisdom on the art of balance.