प्रतीकों का जगत

ज्ञानियों की महा-कला

Sri Guru
Bliss of Wisdom
5 min readSep 17, 2018

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Artwork dedicated by Parina Kamdar | © Shrimad Rajchandra Mission Delhi

मनुष्य के जीवन में धर्म की मौजूदगी जीवन का अभिन्न अंग है और धर्म के इस क्षेत्र में सभी उपदेश प्रतीकों के माध्यम से दिए गए हैं। यह प्रतीकवाद ज्ञानियों का महा-आयोजन है जिसमें मनुष्य को जीवन जीने के सभी उपदेश दिए हैं और साथ ही साथ मुक्ति के भी सभी साधन इन्हीं प्रतीकों में छिपे हुए हैं। मनुष्य अपने अज्ञान और मिथ्या-आग्रहों के कारण इन प्रतीकों के वास्तविक अर्थ नहीं समझता और प्रतीकों के आग्रह से नए-नए संप्रदायों का निर्माण करके जीवन और धर्म के परम उद्देश्य को गुमा देता है।

हिंदू धर्म भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्म माना जाता है और इसमें अनेकों देवी-देवता-भगवान आदि का वर्णन आता है जिससे सामान्य दृष्टि से देखने पर ऐसा लगता है कि हिंदू धर्म में इतने सारे भगवान है। परंतु नहीं, हिंदू विचारधारा का मूल ही यही है कि ‘ईश्वर एक ही है’। तो फिर इतने देव-देवी-भगवान की मूर्तियाँ क्यों? समाधान यही है कि ये सभी मूर्तियाँ उस ‘एक ईश्वर’ की अभिव्यक्ति के अलग अलग ढंग हैं। ये अभिव्यक्तियाँ मात्र आयोजन है ईश्वर के स्वरूप का वर्णन करने के लिए लेकिन इनकी यथार्थ समझ के अभाव में मनुष्य या तो अंध-विश्वास में उलझ जाता है या फिर अविश्वास में ही आश्वस्त रहता है।

इस आलेख के माध्यम से धर्म जगत में प्रचलित तीन मूलभूत प्रतीकों का उद्देश्य व उनमें रहे उपदेश को समझने की कोशिश करते हैं।

प्रतीकों की आवश्यकता

मनुष्य मन में विविध विविध प्रकार की सोच, विचार धारा और मान्यताओं का होना स्वाभाविक है। धर्म क्षेत्र में प्रतीकों का आयोजन बड़ी ही चतुराई और निपुणता से इन सभी प्रकार की विचारधारा और मान्यताओं से भरे मन को समाधान देने के लिए किया गया है। यहाँ हर व्यक्ति की जीवन चाह और जीवन का उद्देश्य अलग अलग है और उन सभी विभिन्नताओं को एक सम्यक् दिशा देने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रतीकों का निर्माण हुआ है। यहाँ मौजूद हर प्रतीक का अपना विशेष उद्देश्य है जो उस मनुष्य की सोच को जीवन के परम लक्ष्य से जोड़ने का ही कार्य करती है। परंतु प्रतीकों के इस विधान को नहीं समझने के कारण आज समाज में इतने मत भेद, तिरस्कार और द्वेष का माहौल है। प्रतीकवाद का यथार्थ स्वरूप यदि मनुष्य की समझ में आ जाए तो सभी भेद-भाव गिर जाए और एक सुवर्ण-युग का शुभारम्भ हो सके।

गणेश — विचक्षण बुद्धि का प्रतीक

गणेश की स्थापना हर धर्म को मान्य है। चाहे हिंदू हो चाहे जैन या कोई भी अन्य-धर्मी परंतु सभी एक मत से शुभ कार्य के आरम्भ से पूर्व गणेश जी की स्थापना अवश्य करते हैं। गणेश जी का सिर हाथी का है और शरीर मनुष्य का — क्यों? क्योंकि गणेश जी मनुष्य में रही उस दिव्यता का प्रतीक है जो विचक्षण बुद्धि से प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम है। पौराणिक कथाओं के माध्यम से गणेश जी को लेकर जो कुछ भी प्रचलित है वह आज के तार्किक और विचारशील व्यक्ति को कभी भी सम्मत नहीं होता। गणेश जी की वास्तविक प्रतीकात्मकता उन कथाओं में कहीं खो सी गयी है परंतु आध्यात्मिक अर्थों में गणेश जी एक ऐसे प्रतीक है जो मनुष्य जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य का चित्रण करते हैं और साथ ही साथ उस लक्ष्य तक पहुँचने के संपूर्ण मार्ग का भी स्पष्ट निरूपण करते हैं। गणेश जी के लम्बे कान- मनुष्य में श्रवण की विशेष योग्यता का चित्रण करते हैं तो छोटी आँखें मनुष्य बुद्धि में सूक्ष्म वैचारिक दृष्टि का प्रतीक है। गणेश जी की नाक हाथी की सूँड़ है जो प्रतीक है संतुलन का (हाथी की यह विशेषता है कि एक सुई से लेकर विशाल पेड़ तक सभी को उसकी सूँड़ एक-रूप से संतुलित कर सकती है। ध्यान जगत में भी लम्बी नाक गहरे व लम्बे श्वास का प्रतीक है। गणेश जी का वाहन मूषक से लेकर मोदक तक सभी कुछ प्रतीकात्मक है।

शिवलिंग — ईश्वर के स्वरूप का प्रतीक

आज विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि एक महा-विस्फोट (Big-Bang) के पश्चात् समस्त ब्रह्माण्ड का अस्तित्व उजागर हुआ। उससे पूर्व सब कुछ अंधकारमयी ही था। इस महा-विस्फोट से ध्वनि व प्रकाश (sound & light) का आविर्भाव हुआ और तत-पश्चात् समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। ऊर्जा के इस महा-विस्फोट में उष्णता के कारण पहले गैस का विस्तार होता है और फिर धीरे धीरे इसमें संकुचन की प्रक्रिया होती है। शिवलिंग इसी ब्रह्माण्डिय विस्तार का प्रतीक है। इस समग्र विस्तार में स्त्रैण व पौरुष गुण रूपी ऊर्जा (feminine & masculine energies) समान रूप से व्याप्त है इसलिए शिवलिंग को आधार रूप देते हुए स्त्रैण-लिंग की स्थापना भी होती है। इसकी निष्पत्ति यही है की समस्त ब्रह्माण्ड का सृजन-संचलान-विलय की सम्पूर्ण लीला एक ऊर्जा के ही स्त्रैण व पौरुष विभागीकरण से हो रहा है।

वीतराग प्रतिमा — मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य

जैन मंदिरों में वीतराग प्रतिमा की प्रतिष्ठा होती है। भगवान चाहे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी हो या फिर महावीर स्वामी परंतु प्रतिमा एक जैसी ही होती है। यदि नीचे की ओर दिया तीर्थंकर का चिन्ह हटा दिया जाए तो सभी प्रतिमाएँ एक ही है। यह समान प्रतिमाओं का निर्माण जैन-ऋषियों का यही संकेत है कि सभी प्रतिमा प्रतीक है वीतरागता की और इस वीतरागता में भेद होते ही नहीं। वीतरागता उस अवस्था का नाम है जहाँ मनुष्य अपने भीतेर रही उस परम ईश्वरीय-ऊर्जा का अनुभव कर लेता है। भेद रहित और अखंड स्वरूप का अनुभव हो जाने के पश्चात् मनुष्य इसी प्रकार से ठहर जाता है जैसा ठहराव वीतराग प्रतिमा में झलकता है। जब उस ‘एक ईश्वर’ का अनुभव को जाता है तब वह मनुष्य हर प्रकार के शारीरिक, मानसिक और वस्तुगत परिग्रह से आज़ाद हो जाता है — यह दर्शन जिन-प्रतिमा में स्पष्ट रूप से होता है और यही मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

प्रतीकों से स्वरूप निर्णय

इस आलेख में तीन महत्वपूर्ण स्वरूप का आध्यात्मिक-आंकन किया है। धर्म-संप्रदाय की संकुचित मान्यताओं के आग्रह में किसी का भी कल्याण नहीं है। अध्यात्म धारा सभी प्रतीकों के अर्थ समझ कर मनुष्य जीवन के वास्तविक लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती है। जब तक मनुष्य में गणेश जैसी विचक्षण बुद्धि नहीं होगी तब तक वह जीव, जगत और जगदीश का वास्तविक स्वरूप ही नहीं समझ पाता और यथार्थ स्वरूप की समझ के बिना उठाया एक-एक क़दम मनुष्य को लक्ष्य तक पहुँचाने के बदले गुमराह ही करता है। स्वरूप के निर्णय के पश्चात् ही वास्तविक पुरुषार्थ होता है जिससे मनुष्य जीवन में रहते हुए भी वीतराग-दशा (राग-द्वेष रहित स्थिति) की ओर कदम उठते हैं।

उलझन या उत्थान — चुनाव स्वयं का

अध्यात्म पथ पर चलते सभी भक्तों को मेरा यह सुझाव है कि अलग-अलग प्रतिमाओं में न उलझते हुए इन तीन प्रतिमाओं के यथार्थ स्वरूप का निर्णय करके परम अनुभूति के मार्ग पर किसी सद्गुरू के सानिध्य और मार्गदर्शन में आगे बढ़ो। जिसे उलझना ही है उसके लिए कोई भी उपदेश समर्थ नहीं है समझाने के लिए परंतु जिसे इस मनुष्य जीवन से मुक्ति की ओर क़दम उठाना है उसे श्री गुरु के आश्रय में सम्पूर्ण मार्ग और अनुभव सहज ही मिल जाते हैं। अब यह निश्चय तुम्हारा है कि तुम जैसे सदा उलझन में रहे वैसे ही जीना चाहते हो या फिर किसी श्री गुरु के सानिध्य में उत्थान के मार्ग पर पहला क़दम उठाना चाहते हो..?

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Sri Guru
Bliss of Wisdom

Founder of Shrimad Rajchandra Mission, Delhi, She is a mystic, a yogi and a visionary Spiritual Master who is guiding seekers on their Spiritual Journeys…