सुख-दुःख में इच्छा रहित — कहानी
दुःख में निराशा, और सुख में बढ़ती आशा, दोनो ही आनंद में बाधा है! समझते इस सूत्र को एक कहानी से।
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आज फिर उसने पूरा दिन कड़ी मेहनत की। कभी पत्थर ढोए तो कभी रेत मिट्टी के बोरे। परंतु इस मजदूरी के बाद भी उसे 100 रुपये से ज्यादा नहीं मिले। मोहन के साथ अक्सर ऐसा ही होता था। और कभी-कभी तो उसे इतने पैसे भी नहीं मिलते थे । इन्हीं पैसों में से वह अपने घर की गुज़र-बसर करता था और कभी-कभी ज़रूरतमंदों की मदद भी कर देता था। भले ही सब कठिनाई से होता था लेकिन उसकी मेहनत में कभी कोई कमी नहीं होती और वह इसी में ही संतुष्ट रहता था।
एक दिन गांव में एक अजनबी के आस-पास लोगों की भीड़ देखकर वह उत्सुकतापूर्वक उसके पास पहुंचा। उस व्यक्ति के हाथ में रंग-बिरंगे कागज़ के टुकड़े देखकर मोहन ने उसके बारे में उससे पूछा। वह व्यक्ति लॉटरी वाला था।
मोहन: तुम कौन हो भाई और तुम्हारे हाथ में यह क्या है?
लॉटरी वाला: यह लॉटरी का टिकट है बाबू! अगर तुम्हारा नंबर लग गया तो तुम्हें बड़ा ईनाम मिल सकता है।
ऐसा कहकर उस लॉटरी वाले ने मोहन को लॉटरी का टिकट खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया।
मोहन (सरलता पूर्वक): भैया! मैं तो एक साधारण सा मजदूर हूँ। मुझे इनाम से क्या लेना देना। मैं तो ऐसे ही ठीक हूँ।
लॉटरी वाला : एक खरीद कर तो देखो, क्या पता तुम्हारी किस्मत बदल जाए। अपने लिए नहीं तो अपने परिवार के लिए ही सही।
और इस प्रकार लॉटरी वाले के कहने पर मोहन ने एक लॉटरी का टिकट खरीद लिया और घर ले जाकर रख दिया। कुछ दिन बीत गये। एक दिन लॉटरी वाला मोहन के घर पहुंचा। मोहन घर पर नहीं था। लॉटरी वाले ने मोहन की पत्नी को अपना परिचय देते हुए कहा।
लॉटरी वाला : मैं मोहन के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी लाया हूँ।
मोहन की पत्नी (आश्चर्य से भर कर): हम जैसे गरीब लोगों के लिए ऐसी कौन सी खुशखबरी हो सकती है? आप मुझे ही बता दो मैं अपने पति को स्वयं बता दूंगी।
लॉटरी वाला : जरा दिल थाम कर सुनना। आपके पति की 5 लाख की लॉटरी लगी है।
मोहन की पत्नी की आंखें खुली की खुली रह गई। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। 5 लाख की बड़ी रकम के बारे में सोच कर भविष्य के लिए कितने ही सपने उसने पल भर में बुन डाले। उसके पति इस खबर को सुनकर कितने खुश होंगे यह सोचकर अभी वह मन ही मन रोमांचित हो रही थी कि अचानक उसे यह ख्याल आया कि जिसने कभी 500 रुपये भी इकट्ठे नहीं देखे, इतनी बड़ी खबर अचानक सुनकर कहीं उसके पति को कुछ हो ना जाए। कहीं वह इस खबर को बरदाश्त ही ना कर पाए। कुछ ऐसी युक्ति सोचनी होगी कि उन्हें यह खबर अचानक ना मिले। उसने सोचा यदि वह स्वयं यह खबर अपने पति को देगी तो उत्सुकतावश एक बार में ही सारा सच बोल देगी।
इसके लिए वह पास के मंदिर के पुजारी के पास पहुंची और उसे सारी बात बताई और कहा।
पत्नी (पुजारी से): आपको लॉटरी की यह खबर मेरे पति को धीरे-धीरे बतानी है। जैसे पहले कम रकम बताना और फिर मौका देख कर पूरी खबर देना।
इसके बदले में पुजारी को 50 रुपये देने का वादा उसने किया। 50 रुपये के लालच में पुजारी यह कार्य करने को तैयार हो गया और शाम को वह मोहन के घर जा पहुंचा।
मोहन (सादर पूर्वक): अरे! पुजारी जी आप यहाँ कैसे? सब कुशल मंगल तो है?
पुजारी: हाँ मोहन, मैं तो मजे में हूँ। तुम्हें एक खबर देने आया हूँ।
मोहन : ऐसी कौन सी खबर है जो आपको यहां आना पड़ा?
पुजारी: मोहन तुम्हारे लिए एक खुशख़बरी है। तुम्हारी एक लाख की लॉटरी लगी है।
यह खबर देने के बाद पुजारी और मोहन की पत्नी की निगाहें मोहन की प्रतिक्रिया पर टिकी हुई थीं। लेकिन मोहन ने सरलता और शांति पूर्वक पुजारी से कहा।
मोहन: अच्छा! एक लाख की लॉटरी निकली है। ठीक है। इन एक लाख में से पचास हज़ार रुपये मैं आपके मंदिर में दान करता हूँ।
यह सुनकर पुजारी अवाक रह गया। जिसको मंदिर में दान में कभी 50 रुपये भी ना मिले हों अचानक पचास हज़ार की बड़ी रकम की खबर को वह बर्दाश्त नहीं कर पाया और खुशी के मारे उसको दिल का दौरा पड़ गया और उसकी मृत्यु हो गई।
कथा का आध्यात्मिक मूल्यांकन
जीवन में सुख व दुख आते हैं और चले जाते हैं। जो जगत के इस चले जाने के शाश्वत नियम को जानकर सुख व दुख को समभाव से लेता है उसका जीवन कामनाओं व बंधनों से मुक्त होने लगता है।
लेकिन हम जीवन में दुख आने पर दुखी हो जाते हैं और सुख आने पर सुखी हो जाते हैं अर्थात् जैसे वे आए वैसे ही हम हो जाते हैं। लेकिन इसमें हमारा योगदान क्या रहा? इस पर हमारा ध्यान नहीं होता। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने एक नई स्थिति हमें सौंपी। इस दुख व सुख से पार आनंद की स्थिति।यहाँ से हमारी भूमिका आरंभ होती है।
सुख और दुख दोनों स्थितियाँ हमारे मन से पैदा होती हैं। बाहर से तो केवल हालात आते हैं। जब हमारा मन उनसे जुड़ता है तो यदि तनाव जन्म लेता है तो हमें दुख का अनुभव होता है। और यही मन सुख की स्थिति में हमारा अहंकार उछाल देता है। दोनों ही स्थितियों में यदि हम स्वयं को संसार से अलग करके भीतर स्वयं के शाश्वत आनंद स्वरूप से जुड़ें तो लगने लगेगा की सुख आए या दुख दोनों को हम अलग खड़ा हो कर देख रहे हैं। जिसके फलस्वरूप सुख हो या दुख हम उपस्थित होते हैं लेकिन उनसे प्रभावित नहीं होते। यहीं से एक असीम संतुष्टि व शांति का अनुभव आरंभ हो जाता है।
प्रस्तुत कहानी में मोहन कुछ ऐसी ही स्थिति में रहा होगा। अपने जीवन में धन के अभाव में भी वह संतुष्ट था और धन के आने पर भी इच्छा रहित था। दुख और सुख की स्थिति का उसकी मनःस्थिति पर कोई प्रभाव नहीं था। इसी कारण लॉटरी की खबर का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह पूर्ण रूप से शांति और निष्कामता की स्थिति में रहा।
Written by Neelam Mondal
Derived from Sri Guru’s Satsang on Shri Bhagavad Gita (#14)