चौधरी अबदुल ग़फ़ूर ‘सुरूर’ के नाम

जनाब चौधरी साहब आपका इनायतनामा उस वक़त पहुँचा और यह वक़्त सुबह का है दिन बुध का रबीउल-सानी की चौबीसवीं और दिसम्बर की पहली किताब के पारसल की रसीद मालूम हुई हकीम अबदुल रहीम खाँ कोई नामी और नामावर आदमी नहीं हैं यहाँ के क़ाज़ीज़ादों में से एक शख़्स हैं अब तबाबत करने लगे हैं मेरे भी आशना हैं मगर सिर्फ़ सलाम अलैक ज़्यादा रब्त नहीं है सो उनका हाल मुझको कुछ मालूम नहीं कि वह कहाँ हैं और किस तरह हैं आगे हज़रत साहब की ख़िदमत में अर्ज़ किया था कि आप जो कुछ लिखें वह बक़लम चौधरी साहब लिखा जाए हज़रत ने न माना और फिर इबारत बदस्तख़त ख़ास लिखी वल्लाह बिल्लाह न मुझसे न और किसी से पढ़ी गई नाचार आप का ख़त फिर आपको भेजता हूँ हज़रत से कुछ न फ़रमाइएगा मगर उस इबारत को आपने हाथ से नक़ल कर के मुझको भिजवाइएगा ज़रूर और जल्द शफ़ीक़ मुकर्रम जनाब चौधरी साहब ग़ुलाम रसूल की ख़िदमत में सलाम पहुँचे

– ग़ालिब

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