चौधरी अबदुल ग़फ़ूर ‘सुरूर’ के नाम

जनाब चौधरी साहब आप के तलत्तुफ़नामा के वरूद की मोसर्रत और पारसल के न पहुँचने की हैरत बाअस इस की हुई कि आप को फिर तकलीफ़ दूँ और बा अांकेह ख़त जवाब तलब न था जवाब लिखूँ बन्दा परवर मैंने पारसल की रसीद ले ली थी आप के ख़त को पढ़ कर कार पुरदाज़ान डाक के पास वह रसीद भिजवाई उन्होंने किताब देखकर मेरे आदमी से कह दिया कि सिकंदर रहराव की रसीद यह मौजूद है अब उस पारसल की जवाबदही वहाँ वालों के ज़िम्मा है यह सुन कर मैंने यूँ मुनासिब जाना कि वह रसीद आप के पास भेज दूँ आप सिकंदर रहराव के डाक ख़ाना मे भिजवा कर उनसे पारसल मंगवा लें और अब इस रसीद का मेरी तरफ़ राजे होना किसी सूरत में ज़रूर नहीं वस्सलाम

– ग़ालिब

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