मख़दूम मुकर्रम क़ाज़ी अब्दुल जमील के नाम

जनाब-ए-आली वह गज़ल जो कहार लाया था वहाँ पहुँची जहाँ मैं जाने वाला हूँ यानी आदम-ए-मुद्दआ यह कि गुम हो गया

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