घने दरख़्त

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एक एक करके जो
साथ छोड़ कर जा रहे हैं
एक दिन
इसी दरख़्त से पनाह माँगेंगे

जब गर्म रेत
गला देगा एड़ियाँ
तेज चढ़ता सूरज
सूखा देगा गला
आँखों में जब
प्यास दिखेगी बस छाँव की
एक एक करके जब
जुल्म सारे याद आएँगे
पंछियों की आदत होती है
एक पौधे से मन नहीं भरता
डाल डाल घूमना
फ़ितरत हो जाती है

ये पौधा है ना
अभी कुछ ज़्यादा दे नहीं सकता
और तुम्हें सब्र नहीं है
मगर याद रखना
बूढ़े होते हैं परिंदे
और पौधे बन जाते हैं
घने दरख़्त!

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