घने दरख़्त
Published in
Apr 12, 2021
एक एक करके जो
साथ छोड़ कर जा रहे हैं
एक दिन
इसी दरख़्त से पनाह माँगेंगे
जब गर्म रेत
गला देगा एड़ियाँ
तेज चढ़ता सूरज
सूखा देगा गला
आँखों में जब
प्यास दिखेगी बस छाँव की
एक एक करके जब
जुल्म सारे याद आएँगे
पंछियों की आदत होती है
एक पौधे से मन नहीं भरता
डाल डाल घूमना
फ़ितरत हो जाती है
ये पौधा है ना
अभी कुछ ज़्यादा दे नहीं सकता
और तुम्हें सब्र नहीं है
मगर याद रखना
बूढ़े होते हैं परिंदे
और पौधे बन जाते हैं
घने दरख़्त!