अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा: काये सुनीता

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10 min readAug 7, 2018

सुनीता अपने भरेपूरे परिवार के साथ मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर स्थित एक ग्राम में निवास करती है। सुनीता के पिता कृषक हैं। परिवार के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा फल, दवाइयां और कभी-कभी मेले ठेले का खर्च भी आराम से उठा लेते हैं। पिताजी बच्चे पैदा करने में मास्टर हैं और आज घर में टी.वी. होते हुए भी ऐसा लगता है कि उनके पास मनोरंजन के साधनों का अभाव है। बच्चों को ईश्वर का उपहार समझते हैं और इसी समझ के कारण ईश्वर के दिए सात उपहार घर में धमाचौकड़ी मचाते नज़र आते हैं, दो-चार उपहार ईश्वर के कोरियर सेवा के कारिंदे रिबन-विबन लगाकर गिफ्ट पैक करते रहते हैं और एक उपहार हमेशा “ऑन द वे” रहता आया है। वो दीगर बात है कि अगर हर गिफ्ट पैकेट में लड़कियां न निकलती होतीं तो मनोरंजन के दूसरे साधनों पर भी दृष्टि डाली जा सकती थी ।पुत्र सबसे आख़िरी उपहार के रूप में डिलीवर किया गया इस कारण भी सात संतानें इस आँगन को प्राप्त हुईं ।

सुनीता बारह वर्ष की है और उससे छोटे छह भाई-बहनों की संख्या देखते हुए सुनीता का माता की प्रसूति का औसत लगभग दो वर्ष से भी कम है। दो-तीन इशू ऐसे भी थे जो इशू बनते बनते रह गए। तो इस प्रकार सुनीता की माता का ज्यादातर समय जच्चा कहलाने में ही व्यतीत हो रहा है। मोहल्ले-पड़ोस की महिलाओं के लिए सुनीता की चिर-प्रसूता माता मुन्ने के होने के पहले मज़ाक का विषय थी पर अब घोर ईर्ष्या का कारण है।एक बार स्वास्थ्य विभाग वाले घर पर “ हम दो ,हमारे दो “ का फ्लेक्स टांग गए थे जो घर की छत पर बिछाकर बड़ी, पापड़ सुखाने के काम में आता है ।

वर्ष 1997

बारह वर्षीय कुमारी सुनीता अभी आठवीं कक्षा में पढ़ती है। वह पाँच छोटी बहनों पिंकी, गुड्डी, बिन्नी, शुभांगी,छुट्टन और एक नवजात भाई मुन्ना की सबसे बड़ी बहन है। सुनीता चार वर्ष की आयु से ही बच्चा एक्सपर्ट हो गयी और दस वर्ष तक पहुँचते-पहुँचते जच्चा एक्सपर्ट भी हो गयी। महतारी के सर पर कपड़ा बाँधने से लेकर जापे के लड्डू बनाना उसे भली प्रकार आता है। दस दिन के बच्चे को नहलाने से लेकर लंगोट बनियान बदलने, उसकी सरसों के तेल से मालिश करने और आँखों से लेकर कान के पीछे तक तानकर काजल लगाने में उसका कोई सानी नहीं। बच्चा जब दहाड़ मार-मार कर रोये तो सुनीता जानती है कि इस मोहल्ले में किस जलनखोर की नज़र उसे लगी है और राई-नमक लाकर कैसे उसकी नज़र उतारी जाती है। नींद में रोते-हँसते मुन्ने को देखकर वो सयानियों की तरह अपनी छोटी बहनों को बताती है, “बेमाता सपने में हँसाती-रुलाती है।”

उसका कौशल देख कई बार तो माताराम डर जाती है कि अगले जापे में कहीं ये नर्स को हटाकर खुद ही अपने भाई बहन को न निकाल ले ।

सुनीता की माता एक न एक बच्चे को सदा दूध पिलाती रहती है और खाट पर पड़े पड़े चिल्लाती है

“ काये सुनीता…! “

सुनीता घर के किसी कोने से दूसरे किसी बच्चे को खिलाती, पिलाती, हगाती, मुताती वहीं से जोर से चिल्लाती है, “का है मम्मी !”

सुनीता की माता के पास बीस से पच्चीस कार्यों की सूची है जिनमे से उपयुक्त कार्य उसे चिल्ला कर आवंटित कर दिया जाता है। यथा- ‘पापा को खाना परस दे’, ‘छोटी को बाहर घुमा ला’, ‘मुन्ने की लँगोटियाँ धोकर डाल दे’, ‘दो कप चाय बना ला’ , ‘मेरे सर पर बाम मल दे’, ‘बिन्नी की कॉपी पर कवर चढ़ा दे’, ‘दूध गैस पर चढ़ा दे’, ‘बगल की दुकान से चायपत्ती का पुड़ा ले आ’, ‘मुन्नी को दाल-चावल दे दे’ आदि-आदि

सुनीता, “ हओ मम्मी” कहकर अपने कार्य में लग जाती है। सुनीता भाई-बहनों को संभालते-संभालते आधी अम्मां बन बैठी है। कभी-कभी रोब भी गाँठ लेती है, छोटी बहनों की मरम्मत भी कर देती है और ब्लैकमेल तो अक्सर ही करा करती है।

पढ़ाई में सुनीता का मन कम ही रमता है। पिताजी की दिलचस्पी भी लड़की जात को पढ़ाने में इतनी भर है कि अनपढ़ न कहलायें और ठीक-ठाक घर में सेट हो जाए। इसलिए कम नंबर आने या कभी-कभार चेंज के लिए फेल हो जाने से परिवार में किसी के माथे पर शिकन नहीं आती। सुनीता के माता-पिता जानते हैं हैं कि कर्क और मकर रेखा की जानकारी होने से दाल-बाटी-चूरमा बनाना नहीं आएगा या पौधों में क्लोरोफिल का कार्य अगर नहीं जान पाए तो उससे अच्छी बहू और बीवी बनने में कोई बाधा नहीं आएगी इसलिए मौड़ियों की पढाई उतने भर काम की है कि जब लड़के वाले देखने आयें तो कह सकें, “हमाई मौड़ी हायर सेकंडरी पास है।“

सुनीता तीन साल पहले तक भाई-बहनों को पालने के सारे कार्य ख़ुशी-ख़ुशी करती थी। पर अब उसकी सहेलियाँ उसका मज़ाक उड़ाने लगी हैं। उसकी सहेलियां जब सड़क पर खेलती-कूदती हैं तब सुनीता मुन्ने को कैयाँ लटकाए रहती है। जब उसकी सहेलियाँ इतवार की सुबह ठंडी रेत पर घर बनातीं हैं तब सुनीता बिन्नी को दूध गरम करके दे रही होती है या शुभांगी को ‘ए बी सी डी’ लिखना सिखा रही होती है ।

अब सुनीता माँ को गच्चा दे कर भाग उठती है और दो घर छोड़ बबीता के घर जाकर खेलने लगती है। सुनीता के एक घंटे ही घर से बाहर जाने पर घर में कोहराम मच उठा है। सारे बच्चे मिलकर घर में ऐसी दौंदापेली मचाये हैं कि माँ को यकीन नहीं आ रहा है कि इस महा उत्पाती पलटन की निर्मात्री वह स्वयं है । छुट्टन को भूख लगी है और वह ऐसे पैर पटक रही है मानो इसी क्षण खाना न मिला तो धरती के दोफाड़ कर देगी , मुन्ने ने लैट्रिन कर रखी है और उसी अवस्था में बार बार बिस्तर पर खिलखिलाता हुआ लोटपोट हो रहा है।सूखी लंगोटियां कहाँ रखी हैं, यह सिर्फ सुनीता जानती है । शुभांगी ने सूखे कपड़ों पर एक जग पानी उलट दिया है जिससे अति आनंदित होकर वह अन्य सूखे कपड़ों की तलाश में अलमारी के हैंडल को खोलने की कोशिश में जी जान से भिड़ी है और बिन्नी रो-रो कर अपनी मम्मी के प्राण खा रही है क्योंकि ड्राइंग की कॉपी में उससे हाथी की सूँड़ सही से नहीं बन पा रही है।दो कमरों का घर भिन्डी बाज़ार में तब्दील हो चुका है।इस धमैये से परेशान माता सारे घर में सुनीता को न पा गले की पूरी नसें फुलाकर चिल्लाती है, “काये सुनीता,कहाँ मर गयी ?”

माता की दहाड़ दो घर की दीवारों को लाँघती हुई बबीता के घर पहुँचकर सुनीता के कानों में बम की तरह फूटती और सुनीता भी अपने घर की ओर फूट लेती।

सुनीता को कभी-कभी अपने भाई बहनों से बहुत चिढ़ होती है। खासकर जब पिंकी उसकी क्लास में धूल सनी और नाक पोंछती बिन्नी या शुभांगी को यह कहकर छोड़कर चली जाती है कि “मम्मी ने पहुंचाया है, इसे भी बिठा लो, घर में परेशान कर रही है।” सुनीता को स्कूल में भी चैन नहीं है ।सिर्फ वही जानती है कि वह स्कूल पढ़ने नहीं बल्कि इस सर्कस से कुछ घंटों के लिए निजात पाने आती है और यहाँ भी ये कमबख्त भाई बहन उसे चैन नहीं लेने देते ।मास्टरनी ने बस हाजिरी रजिस्टर में सुनीता की बहनों के नाम नहीं चढ़ाये हैं वरना वे भी उन बहनों को अपनी क्लास का एक खेलता खाता हिस्सा स्वीकार कर चुकी हैं। उन बहनों को मास्टरनी एक चॉक पकड़ा देती हैं और बिन्नी या शुभांगी उस से कमरे के एक ओर पत्थर के फर्श पर गोदागादी करा करती हैं ।सुनीता को बीच में एकाध बार उन्हें सूसू कराने जाना पड़ता है। दो या तीन भाई बहनों के छोटे परिवार वाली सखियाँ सुनीता का बहुत मज़ाक उड़ाती हैं । एक लड़की मंजुला तो यहाँ तक कहती है कि “ बिन्नी और शुभांगी पहले आठवीं पढ़ेंगी उसके बाद पहली क्लास में एडमिशन कराएंगी “ कुल मिलाकर सुनीता अपने इस कार्य को अत्यधिक नापसंद करती है ।

या जब-जब सुनीता की कोई सहेली घर पर आती है और दोनों छत पर बैठी गप्पें मार रही होती हैं तब मम्मी पिनपिनाते मुन्ने को उसकी गोद में जबरदस्ती पटक कर चली जाती हैं कि “ ले ! तू ही चुप करा, तुझसे ही चुप होगा। “ तब सुनीता को मुन्ने से बड़ा दुश्मन कोई नज़र नहीं आता ।

जब सुनीता इस बच्चा संभालने के काम से बुरी तरह चिढ़ जाती है तब गुस्से में आकर मुन्ने को नोंच लेती है और रोते चीखते मुन्ने को माँ के पास बिस्तर पर पटक जाती है। कभी गुस्से में छोटी बहनों को सूंत देती है। कभी मुन्ने की गन्दी लँगोट बिन्नी के सर पर फेंक कर भाग जाती है। सुनीता बदतमीज होती जा रही है ।

माँ सुनीता की हरकतें देखकर सुनीता की शिकायत पापा से करते हुए कहती है, “जे सुनीता जैसे-जैसे बड़ी हो रई, बैसे-बैसे ढीठ हो रई”

रोज-रोज की शिकायतों से तंग आकर पापा भी गुस्से में चिल्लाते हैं, “ काये सुनीता…!”

और जब सुनीता सर झुकाए सामने आकर खड़ी हो जाती है तब पापा उसे फुसलाते हुए कहते हैं “ सुनीता ! तू तो समझदार है न। समझा कर थोड़ा। मम्मी थोड़े दिन बाद सब काम कर लेगी। थोड़े दिन और देख ले बस।”

सुनीता मन ही मन कहती है, “हे भगवान ! अब मेरी मम्मी को सारे मरे बच्चे देना” और सर हिलाते हुए वहाँ से चली जाती है।

वह अपनी सबसे पक्की सहेली राशि से एक दिन कहती है, “मुन्ने के बाद मेरा और कोई भाई-बहन हुआ तो क्या होगा राशि ?”

राशि उसे बड़ी बूढ़ियों की तरह समझाती हुई कहती है, “नहीं अब नहीं होगा। मुन्ना लड़का है ना ! सबको एक लड़का ही चाहिए होता है।”

सुनकर सुनीता कुछ राहत की साँस लेती है। मगर उसकी राहत की ऐसी-तैसी दो ही दिन बाद हो जाती है जब वह अपनी दादी को माँ से कहते सुनती है, “ अब एक बार और चांस ले लेना, दो लड़के हो जायेंगे तो अच्छा रहेगा।” सुनीता की मम्मी जिसकी अब बच्चे पैदा करना हॉबी बन चुकी है, लजाते हुए हाँ में सर हिलाती है।

सुनीता को उस दिन जीवन में पहली बार चक्कर आता है।

सुनीता वह रात जागते हुए बिताती है और निश्चय करती है कि वह कभी भी दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करेगी। दो सेकण्ड बाद ही वह और भी दृढ़ निश्चय करती है कि वह एक भी बच्चा पैदा नहीं करेगी। बचपन से ही छह बच्चे पाल-पाल कर उसे बच्चा पालन से ख़ासी नफरत हो गयी है ।

वर्ष 2002

अब सुनीता बड़ी होने लगी है। सत्रह साल की हो गयी है। मुन्ने के बाद माँ दो बार गर्भवती हुई मगर सुनीता की दुआ रंग लायी और दोनों बार उपहार बिना डिलीवर हुए वापस ऊपर चले गए। अब बाकी की बहनें भी थोड़ी बड़ी हो गयी हैं। सबसे छोटी बहन और मुन्ना को छोड़ सभी अपने काम स्वयं कर लेती हैं मगर अभी भी वे अपनी ज़रूरतों के लिए सुनीता का ही मुँह ताकती हैं, चाहे ड्रेस पर प्रेस करनी हो, चाहे स्कूल की फीस भरनी हो और चाहे खजूर चोटी करवानी हो।

माँ को भी अब मजबूरी में जच्चा सीट छोड़कर काम में लगना पड़ा है। माँ रसोई का काम देख लेती है मगर जब भी बच्चे संभालने की बारी आती है तो माँ चिल्लाती है, “काये सुनीता !”

और जवाब में सुनीता खीजकर कहती है, “ हओ मम्मी “

सुनीता ने दसवीं कर लिया है। गाँव का स्कूल बारहवीं तक है ।अभी वह दो साल और पढ़ सकती है, ऐसा पिताजी कहते हैं। इसके बाद वे लड़कियों को कॉलेज भेजने के पक्ष में नहीं हैं और सुनीता को तो सरकार से यही एक शिकायत है कि दसवीं तक ही स्कूल भला था, क्या ज़रुरत थी उसे बारहवीं तक बढाने की।कौन सा तीर मार लेना है दो क्लास और पढ़ के। सुनीता अब सजने सँवरने लगी है। मुहब्बत वाला हार्मोन भी सही समय पर सक्रिय हो गया है ।

वर्ष 2008

सुनीता के विवाह की बात ज़ोरों पर चल रही है। इन छः वर्षों में सुनीता अनचाहे ही मुन्ने और सबसे छोटी छुट्टन की माँ बन गयी है। पैदा करने और स्तनपान कराने के अलावा मुन्ने और छुट्टन की परवरिश उसी के हाथों हुई है। मगर अब भी उसे अपने बच्चे पैदा करने से सख्त चिढ़ है और वह इस निश्चय पर कायम है कि खुद के बच्चे पैदा नहीं करेगी। उसके पहले और दूसरे प्रेमी को उसके इस निश्चय और बच्चा पालन से नफरत के विषय में कुछ नहीं पता था और इसी अज्ञानता के चलते ही असमय ही उनका प्रेम काल कवलित हुआ।

हुआ यह कि जब सुनीता अठारह की हुई तब उसे धर्मेन्द्र से मुहब्बत हो गयी। धर्मेन्द्र भी सुनीता को दिल-ओ-जान से चाहता था। मुलाकातों के सिलसिले के दौरान एक दिन पार्क में धर्मेन्द्र दूसरे प्रेमियों की देखा-देखी बच्चों की तरह सुनीता की गोद में सर रखकर लड़ियाने लगा और तुतलाकर बात करने लगा। सुनीता ने जैसे ही इतने बड़े घोड़े के मुँह से सुना “मेली छुनीता…” वह उसका यह शिशु-रूप देख गुस्से से फुफकार उठी और फिर जो उसका सर अपनी गोद से लुढकाकर वहाँ से भागी कि फिर धर्मेन्द्र के लाख पौरुष दिखाने पर भी वापस नहीं लौटी। इस प्रकार उसी पार्क की बेंच पर बैठे बैठे ही धर्मेन्द्र की मुहब्बत की ठठरी बँध गयी ।

बीस वर्ष की उम्र में सुनीता को दूसरी बार चंद्रू से मुहब्बत हुई । चंद्रू हर लिहाज़ से अच्छा था और ठीक-ठाक कमाता भी था। सुनीता उसके साथ शादी कर घर बसाने के सपने देखने लगी थी पर वह निपट मूर्ख, अज्ञानी, अबोध… नहीं जानता था कि सुनीता के घर बसाने के सपने में बाल-गोपाल शामिल नहीं थे। एक दिन समय ने पलटा खाया और वह भावावेश में सुनीता से कह बैठा, “ सुनीता ! अपने ढेर सारे नन्हे-नन्हे बच्चे होंगे और उनकी किलकारियों से हमारा आँगन गूँज उठेगा”

एक तो बच्चे, ऊपर से ढेर सारे ! सुनते ही सुनीता का दिमाग सटक गया। उसके दिमाग में पिछले बीस साल की लंगोटियां, दूध की बोतलें, दिन-रात की काँय-काँय और बच्चों की मुतरांध से सनी अपनी फ्रॉकें ताज़ा हो गयीं। वह बिना कुछ कहे चंद्रू का हाथ छुडाकर जो सरपट भागी तो चंद्रू आज तक नहीं समझ पाया कि आखिर उससे क्या भूल हुई ?

फिर सुनीता को किसी से मुहब्बत नहीं हुई। वह शान्ति से घरबार और भाई-बहनों को संभालती अपने लिए योग्य-वर का इंतज़ार करने लगी। अब जैसा कि पहले बताया कि सुनीता के विवाह की चर्चा बहुत ज़ोर-शोर से घर में चल रही है।

वर्ष 2015

अब सुनीता तैंतीस वर्ष की हो गयी है। उसका विवाह हुए नौ वर्ष हो गए हैं। सुनीता अपने तीसरे बच्चे को लिए जच्चा-वार्ड से अभी-अभी घर लौटी है। घर पहुँचते ही बिस्तर पर सबसे छोटे बेटे को दूध पिलाते हुए उसने आवाज़ लगाई है

“ काये तपस्या … “

“ क्या है मम्मी …?” अपनी पतली सी आवाज़ में चिल्लाती हुई छह साल की तपस्या अपनी गोदी में दो वर्ष की चिंकी को लादे हुए सामने आकर खड़ी हो गयी है।

इधर सुनीता अपनी ननद से खुश होकर कह रही है, “मौड़ा हमेशा दूसरे या तीसरे नंबर पर ही होना चाहिए। पहली मौड़ी हो तो एकदम माँ की तरह बच्चे संभाल लेती है।”

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