एक दोपहर .. तुम यकीन नहीं करोगे

Hindi Kavita
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2 min readOct 1, 2018

मैं जवाब में मुस्कुराती हूँ , तुम्हारी बात पर नहीं । इसलिये कि कोई शैतान मछली अभी मेरे कान को छूती कुतरती गई है । तितलियाँ भी उड़ती हैं कभी कभार । और कभी कभी खिड़कियों पर लटका परदा हवा में सरसराता है । हमारी कितनी बातें घुँघरुओं सी लटकी हैं उसके हेम से । मेज पर रखे तश्तरी और कटोरे में दाल और चावल के साथहमारी उँगलियों का स्वाद भी तो रह गया है ।

तुम यकीन नहीं करोगे । दीवार पर जो छाया पड़ती है , जब धूप अंदर आती है , उसके भी तो निशान जज़्ब हैं हवा में । सिगरेट का धूँआ , तुम्हारे उँगलियों से उठकर मेरे चेहरे तक आते आते परदों पर ठिठक जाता है । मैं कहाँ हूँ पैसिव स्मोकर ? न तुम्हें नैग करती हूँ , छोड़ दो पीना । सिगरेट का धूँआ मुझे अच्छा लगता है । मैं मुस्कुराती हूँ । तुमकहते हो , मेरी बात नहीं सुन रही ?

मैं सचमुच नहीं सुन रही तुम्हारी बात । मैं खुशी में उमग रही हूँ । मैं अपने से बात कर रही हूँ । परदे के पीछे रौशनी झाँकती सिमटती है । उसके इस खेल में रोज़ की बेसिक चीज़ें एक नया अर्थ खोज लेती हैं , जैसे यही चीज़ें ज़रा सी रौशनी बदल जाने से किसी और दुनिया का वक्त हो गई हैं । तुम सचमुच यकीन नहीं करोगे ।

लेकिन कई बार मेरी छाती पर कुछ भारी हावी हो जाता है जो मुझे सेमल सा हल्का कर देता है । तब छोटी छोटी तकलीफें अँधेरे में दुबक जाती हैं । मेरा मन ऐसा हो जाता है जैसे मैं आकाशगंगा की सैर कर लूँ , दुनिया के सब रहस्य बूझ लूँ , पानी के भीतर , रेगिस्तान के वीरान फैलाव के परे , चट नंगे पहाड़ों के शिखर पर ..जाने कहाँ कहाँअकेले खड़े किन्हीं आदिम मानवों की तरह प्राचीन रीति में सूर्य की तरफ चेहरा मोड़ कर उपासना कर लूँ ।

परदा हिलता है , रौशनी हँसती है , अँधेरा मुस्कुराता है । तुम कहते हो , मेरी बात नहीं सुन रही ?

तुम यकीन नहीं करोगे लेकिन अब मैं सचमुच तुम्हारी बात सुन रही हूँ ।

( प्रत्यक्षा सिन्हा)

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