सवादीका

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18 min readAug 13, 2018

सवादीका .. उसकी आवाज़ में जैसे किसी गीत का सुर है । हाथ जोड़े नमस्कार की मुद्रा । मैं कहती हूँ एक बार और कहो लेकिन ज़रा धीरे । वो हँसता है । उसने अपना नाम टॉमी बताया है , मुझे मालूम नहीं कि थाई लोगों के ऐसे नाम होते हैं या नहीं या सिर्फ सहूलियत के लिये अंग्रेज़ी नाम रख लेते हैं । आखिर फूकेत में सिर्फ फिरंगी ही आते हैं । उनके लिये ये नाम आसान होगा । जैसे चीन में भी मुझे मेई हुई मिली थी और सियाओ फेन जिनके अलग अंग्रेज़ी नाम थे इसलिये कि वो इतालवी कंपनी में काम करती थीं और उनके विदेशी सहकर्मियों की सहूलियत हो।

यहाँ लगभग पंचानबे प्रतिशत लोग बौद्ध थेरावाद का पालन करते हैं । बैगकॉक में स्लीपींग बुद्धा और गोल्डेन बुद्धा .. या जैसे डेविड कहता था बूदा .. और त्रिमूर्ती प्रतुनाम चौक पर जहाँ ब्रह्मा , विष्णु और शिव की मूर्ति थी .. मैंने कहा था हाँ हाँ हम जानते हैं । उसने कहा था लोग बहुत दूर से आते हैं , चीन तक से , अपने प्यार की मन्नत माँगने । और मैंने कहा था न, तुम जानते हो मैं गया में पैदा हुई हूँ और डेविड तुरत इम्प्रेस हो गया था । और मैं सोच रही थी ओ ब्रह्मा विष्णु महेश , इसी प्यार पर दुनिया चलती है । ताँडव करते नटराज और कमल पर आसीन ब्रह्मा , शेषनाग पर विष्णु । मंदिरों की सीढियों पर नाग की लहराती पूँछ सोने से जड़ी मढ़ी ।त्रिमूर्ति कोई थाई वर्ज़न के क्यूपिड कामदेव ? मुझे बात मज़ेदार लगी थी ।

फूकेत में फिरंगी ही फिरंगी । एकदम जवान जो जोड़ों में और फिर छोटे बच्चों के संग परिवार और फिर अकेले बुज़ुर्ग जो थाई लड़कियों की संगत में घूमते दिखे । बेहतरीन सीफूड और मसाज पारलर्स और बीचवीयर्स ।

बान रिम पा में स्क्विड , स्नैपर मछली , बड़े लॉबस्टर्स और क्रैब उबले चावल के साथ खाते मेरी नज़र उसपर पड़ी थी । कॉकेशियन मर्द था , पचास से साठ के बीच , अकेला । सिंघा बियर के घूँट भरता सिगार का स्वाद लेता , अपनी दुनिया में खोया । उसके चेहरे पर भीतर झाँक लेने वाली मुस्कान थी । उसे किसी की ज़रूरत नहीं थी । वो समूचा था अपने में । उसकी शकल कुछ कुछ रेने गोसिनी के एसटेरिक्स के सीज़र जैसी थी , वैसा ही दर्प भरा , हुक्ड नोज़ । मुझे उसे देख कर मज़ा मिल रहा था । वो मुझसे अनभिज्ञ था । सिगार का धूँआ उसके गिर्द था ।

फिर तीन दिन बाद दिखा था , इस बार उस लेबनानी रेस्तरां में । अकेला नहीं था । चार और मर्द थे उसके साथ और पाँच थाई लड़कियाँ । रेस्तरां में घुसते ही उसने मालिक को स्लाम आलेकुम किया था । वो सब मेरे सामने वाली टेबल पर बैठे थे । उसके साथ की लड़की देहाती सी मामूली सूरत वाली ज़रा घबराई सी थी । दूसरे साथी की संगिनी लड़की अपने भारी आवाज़ और धूँये सी हँसी के साथ हुक्का पी रही थी । सीज़र का ध्यान अपने संगी के बजाय उस पर था । पर जैसे बीचबीच में उसे ध्यान आता और पहलू में बैठी लड़की को खीरे का टुकड़ा खिला देता फिर ऊब कर बाहर देखता । लड़की को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी । वो तन्मयता से सूप से सब्जियाँ निकाल कर खा रही थी ।

कहते हैं फूकेत पताया बैंगकॉक मर्द अकेले घूमने आते हैं । हफ्ते दस दिन किसी थाई लड़की की संगत में । बढ़िया मालिश और और स्टीमिंग सेक्स । सीज़र , मालूम नहीं क्यों मेरी निगाह से गिर गया । एक दोस्त ने कहा , अगर हेमिंगवे होते तो शायद वे भी यही करते । शायद ! मॉरल इशू नहीं लेकिन कुछ चीज़ें खरीदी जायें , आप ऐसी स्थिति में हो ये अपको कमतर करता है । थाईलैंड, सेक्स टूरिस्ट डेस्टिनेशन की ख्याति कुख्याति प्राप्त जगह है । कहते हैं चियांग माई और कोह समुई में ही बीस हज़ार से ज़्यादा वेश्यायें हैं और पूरे थाईलैंड में, दो हज़ार चार में चुलालॉंन्गकॉर्न विश्वविद्यालय के डॉक्टर नितेत तिन्नकुल द्वारा किये गये आकलन के अनुसार लगभग इक्कीस लाख।

कृतया अर्चावनित्कुल ,जो कि थाई मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं , ने इंटरनेशनल स्टडीज की यू सी बर्कले संस्थान द्वारा साक्षात्कार में कहा,
यह दुख की बात है कि थाई सामाजिक संरचना इस तरह दुरुपयोग को स्वीकार करता हैं, और न केवल स्वीकार करने देता है –बल्कि यहाँ ऐसे कानून है जिनकी वजह से इन सेक्स प्रतिष्ठानों के अस्तित्व का समर्थन होता है । दुरुपयोग का दूसरा कारण एक सांस्कृतिक कारक भी है.. मैं अन्य देशों के बारे में नहीं जानता , लेकिन थाईलैंड में थाई पुरुषों का यौन व्यवहार वेश्यावृत्ति को स्वीकार करता है । वे इसे एक समस्या के रूप में नहीं देखते हैं ।कई महिलाओं को वेश्यावृत्ति के लिए थाईलैंड में लाया जाता है ।वे जानते हैं कि कुछ के साथ क्रूर हिंसा का व्यवहार हो रहा है। लेकिन उन्हें लगता है कि यह एक भयानक तस्वीर है ही नहीं । उन्हें लगता है कि यह सिर्फ कुछ दुर्भाग्यशाली घटनायें हैं और चूँकि इसमें बहुत पैसा है , लाभ है, लोग इस भयानक समस्या की तरफ अन देखा कर रहे हैं “

पाटोंग बीच पर आरामकुर्सियों पर लोग धूप सेंक रहे हैं । बीच रोड पर सड़क किनारे स्ट्रीट फूड के स्टॉल्स । दास्ताने पहने , सफाई से , खुली आग पर भुनते भुट्टे , बीफ और चिकन , क्रैब और ऑक्टोपस स्लैबस । ज़्यादातर स्कूटी साईडकार पर स्टॉल्स । पैनकेक के पतले परत पर लेमन क्रीम और बनाना हनी । अजीबोगरीब शेप में सींक पर कबाब । मैं पूछती चलती हूँ . ये क्या है और ये , ये । उनकी अंग्रेज़ी बहुत समझ नहीं आती । जब कुछ ना में कहना हो तो बस दो शब्द ..कैन नॉट मदाम।

मैं भी उनकी तरह अंग्रेज़ी बोल रही हूँ , सेम सेम , कैन नॉट , बिना वर्ब के । हँसती हूँ । मैं पूछ रही हूँ स्टॉल वाले से .. ये क्या मीट है ? बगल से भोजपुरी उच्चारण में जवाब आता है , बीफ नहीं है । आप आराम से खाईये । मैं नहीं जानती बीफ से परहेज़ क्यों करना चाहिये , धर्म की कंडीशनिंग से ? या फिर सिर्फ इसलिये कि नहीं खाई है पहले ? या खाई है पहले ..होटलों में बुफे ब्रेकफास्ट में क्रिस्पी बेकन .. मैं मुड़ती हूँ , देखती हूँ , साँवले रंग के अधेड़ , कहते हैं मैं कुँवर सिंह , गोरखपुर का । खींचकर बगल में अपनी टेलरिंग की दुकान ले जाते हैं । दस साल पहले कमाने आये थे । बार बार कहते हैं अब कुछ हिन्दुस्तानी पर्यटक आते हैं , अच्छा लगता है हिंदी में बात करना । मैं कहती हूँ भोजपुरी बहुत बाकी है आप में । वो कहते हैं देखिये मैंने दुकान का नाम अपने बाबा के नाम पर रखा है ..जे सिंह ..जनार्दन सिंह , तो मेरी जड़ें तो रहेंगी मेरे भीतर ..

मैं निकलना चाहती हूँ , कुछ देर बाद । रात के दस बजते हैं । उनकी बात अभी खत्म नहीं हुई है । बताते हैं बेटी दिल्ली में रहती है पति के साथ । बीबी का देहांत हुआ । डायबिटिज़ , फिर गैंग्रीन । घुटने तक पैर काटना पड़ा फिर भी कुछ महीने बाद खत्म हुई । उसके इलाज के लिये कमाने यहाँ आया , फिर उसकी मौत के बाद लौटने का मन नहीं हुआ । उनकी आवाज़ धीमी हो जाती है , स्त्री गई तो दुनिया खत्म हो गई लेकिन क्या करें , सब ऊपरवाले का किया । उनका साँवला चेचक से खुरदुरा चेहरा पत्थर की तरह है । शोले के किसी डकैत की तरह । मेरा मन करता है साँत्वना के कुछ शब्द कहूँ । लेकिन क्या कहूँ नहीं जानती । कहती हूँ कल फिर इस तरफ आती हूँ तो आपसे मिलती हूँ , आप अच्छे से रहिये । मेरे मुड़ कर निकल जाने पर पीछे से उनकी आवाज़ आती है , फी फी आईलैंड जाना हो तो बताईयेगा , मैं अच्छे एजेंट से मुनासिब दर तय करवाता हूँ ।

सुबह से बारिश हो रही है । डिप्रेशन है , ऐसा रिसेपशनिस्ट बताता है । फीफी आईलैंड जाना ही है । दोबारा जाने कब आऊँ या न आऊँ , कितनी और जगहें देखनी हैं , एक ही जगह फिर आऊँ ? लगता है समय सब कर लेने के लिये कम है , जैसे सब किताबें और सब फिल्में देख लेने के लिये , सब तरह का खाना खा लेने और सब क्रियेटिव चीज़ें कर लेने के लिये । कितनी किताबें तो बार बार पढ़ी हैं , पहले लेकिन तब ये अर्जेंसी नहीं लगती थी , अब लगती है , समझ और उम्र का असर होगा ।

बादल छाया है , हल्की झीसी है । स्पीडबोट नम्बर 29 बुसारिन , मेरा बोट है । मेरे शर्ट पर स्टिकर है 29 । मुझे ध्यान रखना है कि को फीफी डॉन और को फीफी ली और माया बे और मंकी बीच घूमते मैं बुसारिन को हमेशा नज़र में रखूँ , अगर छूट गई तो फीफी डॉन के अलावा और कहीं लोग बसते नहीं , फिर रॉबिनसन क्रूसो होना पड़ेगा । बाकी सिर्फ लाईमस्टोन रॉक्स के बीच रेतीले तट के समन्दर के बीच उठते पहाड़ हैं । अंडमान महासागर में बीच सागर के तल से उभरते पहाड़ों की श्रंखला देखकर ख्याल आता है कितना प्रचंड और हिंसात्मक रहा होगा प्रकृति का इस तरह विकसित होना , कैसे वॉल्कैनिक इर्रप्शंज़ से बने होंगे ये बेहद खूबसूरत , एकदम आदिम प्राकृतिक अनगढ़ पहाड़ , समन्दर की छाती को चीरते हुये । फुकेत से उड़ते हवाई जहाज से नीचे देखते उनका फैलाव और उनकी सुंदरता , उनका विस्तार , अन छुआ ..पानी पहाड़ ..जितना सुंदर उतना ही बीहड़ विकट ।

स्पीडबोट में लगभग तीस लोगों के बैठने की व्यवस्था है ..केबिन में बीस और बाहर दस । मैं बाहर् बैठी हूँ । खुश हूँ कि बाहर जगह मिली जबकि बोट पर चढ़ने वाली लगभग अंतिम रही हूँगी । मेरे सामने दो पोलिश लड़के और दो लड़कियाँ और तीन अमरीकी लड़के एक लड़की बैठी है । अंदर परिवार वाले लोग हैं , साथ चलती दो तीसेक साल की इजिप्शियन औरते हैं , पूरे शरीर पर अजगर, बाघ , फुँफकारते ड्रैगन वाले अजीबोगरीग गुदने और लम्बे घुँघराले बालों और लाल पके चेहरे वाला अमरीकी बुज़ुर्ग है , कोई अरब पति पत्नी हैं , पत्नी के सिर पर स्कार्फ है । स्पीडबोट चलते ही समझ आता है कि बाहर की सीट खाली क्यों थी । पता नहीं कितने नॉट स्पीड पर बोट चल रही है लेकिन समन्दर थोड़ा चॉपी है और हर लहर के बाद बोट एक धमक से नीचे गिरता है । पानी के फुहारे उड़ रहे हैं । हम सब जी जान से रेलिंग थामे हर गिरने पर चीखते अपने शरीर को ब्रेस कर रहे हैं । हमारे बाल हमारे चेहरों पर चाबुक जैसे बरस रहे हैं । हमारे सस्ते पचास बाट वाले पतले चिमचिमी वाले रेनकोट की इतनी औकात नहीं कि इस तेज़ तूफानी हवा और बरछे जैसी बारिश का सामना कर पाये । समन्दर का खारापान हमारे चेहरों पर चिपक रहा है । हम चीख चीख कर बातें कर रहे हैं , बोट की आवाज़ और हवा की आवाज़ और लहर की गर्जन से मुकाबला करते । हमारे शरीर का एक एक पंजर जैसे ढीला हो चला है ।लेकिन कुछ कुछ देर पर समन्दर की छाती से अचानक चीर कर निकले किसी जमीन के टुकड़े की अनगढ़ खूबसूरती हमें वहीं टिके रहने के मोह में बाँधे रखती है । अंदर केबिन में समुद्र की हिंसा इतनी गहरी नहीं है ।

हम समुद्र में काफी भीतर जा चुके हैं , लगभग घँटे भर से हम चल रहे हैं । मेरी बाँहों पर नील निशान पड़े हैं ये मैं अगले दिन खोज करती हूँ । बाँहों में वैसी माँसपेशियाँ भी हैं जो अपनी उपस्थिति इस घुमाई के बाद चीख चीख कर बता रही हैं । हमारा कप्तान अनुरक हमें बताता है , माया बे जहाँ “बीच “फिल्म की शूटिंग हुई थी । और सुनामी से फीफी डॉन कैसे तबाह हुआ था 2004 में । इस द्वीप का मुख्य गाँव तोन साई लाईमस्टोन की दो पहाड़ी के बीच के रेतीले टुकड़े पर बसा है । तोन साई के दोनों तरफ अर्धचंद्राकार खाड़ी है जिनपर सफेद बालू वाले सुंदर तट हैं और ज़मीन का ये टुकड़ा समुद्र तल से मात्र छह फीट ऊपर है । छब्बीस दिसम्बर की सुबह पानी दोनों खाड़ी से घटने लगा था और जब सुनामी आया तब पानी दोनों खाड़ी से बढ़ता इस इस्थमस के बीचोबीच लगभग दस फीट एक तरफ और अठारह फीट की ऊँचाई से दूसरी तरफ से भयंकर आवेग से उफनता आया । हज़ार लोग मरे और लगभग उतने ही लापता हुये । कितनी बरबादी जान माल की हुई ये आँकना बहुत मुश्किल था । 2005 में एक डच स्थानिक एमिल कोक ने हेल्प इंटरनैशनल फीफी का घठन किया फिर एक और संघठन फीफी डाईव कैम्प बनाया गया और जुलाई तक तेईस हज़ार टन मलबा साफ किया गया जिसमें काफी कुछ हाथों हाथ किया गया । हाई फीफी को टाईम मगज़ीन हीरोज़ ऑफ एशिया के लिये नॉमिनेट भी किया गया ।

माया बे और वाईकिंग केव के बाद फीफी डॉन के तट के पहले हम समुद्र में उतरते हैं । स्नॉरकेलिंग मास्क और लाईफ जैकेट के साथ । मैं काफी देर तक बोट की सीढ़ी पकड़े रहती हूँ । डर लग रहा है कि ये लाईफलाईन छूट जाये तो इस पानी के संसार में , बिना पैर के नीचे किसी ज़मीन के , इतने सारे पानी में मेरा क्या हाल होगा ? पानी में बहुत कम लोग उतरे हैं । ज़्यादातर बोट की सुरक्षा में बैठे मज़े ले रहे हैं । गुदने वाला अमरीकी पानी में है । मुझे सुझाव देता है ..यू हैव टू स्विम अवे फ्रॉम द बोट । मैं सिर डुलाती हूँ , जानती हूँ ये लेकिन स्नॉरकेल मास्क़ से साँस लेने की करतब मुझे हरा देती है । फिर साँस भरकर , सीढ़ी पकड़े पानी में सर डालती हूँ । असंख्य रंगीन मछलियों का संसार । ओह कैसा अजूबा । दूसरी दुनिया का जादू । मैं भौंचक हूँ । इसी अचक्केपने में सीढ़ी छोड कर बोट से अलग तैरती हूँ । डर अचानक खतम होता है और आहलाद मेरे भीतर भर जाता है । साँस अब भी नहीं ले पा रही लेकिन जितनी देर साँस रोक सकती हूँ रोक कर भीतर तैरती हूँ , हाथ बढ़ाती हूँ , मछलियाँ किसी कौशल से मेरी उँगलियों के बीच से तैरती निकल जाती हैं । पीली धारियों वाली मछलियाँ , सफेद मछलियाँ , कत्थई किनारी वाली काली मछलियाँ । डिसकवरी चैनेल पर देखी दुनिया अब सचमुच दिख रही कितनी अलग कितना सुंदर अनुभव । थोड़ा सा पानी मेरे मुँह में जाता है । बहुत खारा । कंठ तक खारापन । पानी के बाहर चेहरा निकाल कर मैं चारो तरफ देखती हूँ । पानी की सतह पर डोलते उतराते चेहरे । अचानक मुझे टाईटैनिक का दृश्य याद आता है । मैं समन्दर के विस्तार की तरफ देखती हूँ और अचानक मुझे विश्वास नहीं होता कि इस तरह मैं बीच समन्दर में हूँ , इन मछ्लियों के संग , नीचे कोरल दिख रहा है । बारिश रुकी है और मेरा शरीर हल्का है लेकिन मेरी बाँहे थक गई हैं । वापस बोट पर चढ़ना आसान नहीं । कोई मदद के लिये हाथ बढ़ाता है ।

दोपहर का खाना फीफी डॉन पर है । फीफी की आबादी मूलत: मुस्लिम मछेरों की है । यहाँ के खाने में मलय , इंडोनिशियन और भारतीय खाने की छाप है । एक टेबल के गिर्द बैठे हम सब , दोनों इजिप्शियन औरतें , एक चीनी जोड़ा , एक यूरोपियन , उनकी भाषा से मैं पकड़ नहीं पाती कौन सा देश और एक अकेला अमरीकी । अमरीकी खाना खा नहीं पाता । चीनी जोड़ा खूब मन से खाता है । इजिप्शियन औरतें भी और मैं भी । सूप है , गीले चावल है , थाई चिपटे नूडल हैं, मछली है , चिकन है , फ्रिट्र्ज़ हैं । सब थोड़ा मीठा थोड़ा तीखा ,थोड़ा खट्टा.. लेमन ग्रास और गलंगल और फिश सॉस नाम प्ला का तेज़ स्वाद ।

मैं दोनों इजिप्शियन औरतों को देखती हूँ । एक ज़्यादा साँवली . चिपटे नक्श और हाई चीक बोन वाली सुडौल शरीर वाली औरत है । उसके शरीर में एक लय है एक गरिमा है । नेफरतिति ऐसी ही होगी शायद । खाने के बाद उसने सिगरेट सुलगाया । दूसरी औरत घुँघराले बालों वाली भरे शरीर की सुंदर औरत थी । उन्हें देखते ही नाईल नदी और पिरामिड , स्फिंकस और तुत अन खामेअन याद आने लगता है । ये भी मज़े की बात है कि कैसे चेहरे , जो वही आँख नाक होंठ बाल वाले चेहरे , किसी खास स्थान या प्रजाति का इतना सही सही भास देते हैं । कैसे हम तुरत लोगों को उनके भूगोल से , उनकी जाति से किसी खाने में बाँध लेते हैं । कई बार धोखा भी होता है । मुझे लोग बहुधा बँगाली समझते रहे हैं और बताने पर कि खाँटी बिहारी हूँ लोग अचक्के में हँस कर कहते रहे हैं , अच्छा पर लगती नहीं । मैं नहीं जानती बिहारी होना कैसा होना होता है । पर अभी इन औरतों को देखकर मैं जान जाती हूँ कि मिस्र की रेत का जादू इनके भीतर है । जैसे बार्तेक को देखकर किसी पूर्वी योरप की दुनिया का भास होता है । हिटलर के आर्यन लोगों की कल्पना में लोग ऐसे ही होते होंगे , लम्बे तड़ँगे , सुनहरे बाल और सुन्दर संतुलित नक्श वाले । मैं सोचती हूँ कि पहली दफा जब लोगों ने अपने से अलग नक्श रंग वाले लोगों को देख क्या सोचा होगा ? कि यही नाक नक्श सब एक है फिर भी कुछ भिन्न और ये अलग लोग हैं , हमसे अलग । बहुत सारे खेल तब इसी प्रिमाईस पर शुरु हुये होंगे कि ये अलग लोग हैं ।

खाने के बाद हम रेस्तरां के पीछे बज़ार में घूमते हैं ..कपड़े , हैट्स , स्कूबा डाईविंग , बियर बार , जर्मन और औस्ट्रेलियन स्टेक ज्यांटस , सस्ते रेनकोट्स , छतरियाँ , हवाई चप्पल , पौधे, बॉब मार्ली वाले जूट के छोटे झोले ..लोगबाग घूमते । एक दुकान में बेहद स्टाईलिश पैंटस दिखते हैं , पूछती हूँ क्या नाम है इस परिधान का । समुराई मॉंन्ट ..लड़की बताती है । मॉंन्क ? मैं पूछती हूँ । वो हँस कर कहती है एम ओ एन टी । मुझे अब भी शक है कि समुराई मॉंन्क होगा । साढ़े छ सौ बाट का । मैं गणित करती हूँ लगभग हज़ार रुपये । नहीं खरीदती कि शायद बैंगकॉक में सस्ता मिले । बाद में बेहद अफसोस होता है ले लेना चाहिये था , बैगकॉक में ऐसे पैंट्स नहीं दिखते कहीं ।

बोट में सामने बैठा पोलिश लड़का बार्तेक मेरा कैमरा लेकर मेरे फोटो खींचता है । उसकी शकल किसी बिहार के गाँव के किसान जैसी है । खासकर तब जब वो तेज़ हवा से बचने के लिये तौलिये को सर पर गमछे की तरह बाँध लेता है । सस्ते रेनकोट और सर पर बँधे तौलिये में और भी किसान लगता है । बस उसकी गोरी त्वचा , उसके भूरे बाल और उसकी सेहत उसे फर्क बनाते हैं । बताता है कि पोलैन्ड में अभी ठंड पड़ रही है और सर्दियों में बीस डिग्री माईनस तक तापमान गिरता है । भीगे हुये तेज़ हवा में मुझे कुछ ठंड लग रही है । वो हँसता है , कहता है मेरे लिये ये फिर भी गुनगुना है । उसके साथ की लड़की सफेद हैट , सफेद गंजी , भूरे स्कर्ट , मकई के बाल के रंग की एक चोटी कँधे पर गिरी हुई , एक एड़ी में सुनहरा धागा बाँधे मुस्कुराती है ।

फीफी ली में हम चाय पीते हैं । रेत पर बैठने की कुर्सियों का इस्तेमाल करना हो तो डेढ़ सौ बाट । मैं रेत पर बैठती हूँ फिर हल्की झीसी में सब किनारे की चट्टानों के बीच स्नोर्केलिंग करते हैं । एक मोटी अधेड़ अमरीकी औरत बाहर निकलते मुझसे कहती है , अमेज़िंग गोल्डेन फिशेज़ , अमेज़िंग । मैं एक बार फिर मास्क लगा कर पानी में घुसती हूँ । पानी गुनगुना है और तल के चट्टान खुरदुरे नुकीले और फिर अनगिनत मछलियाँ हैं । हम सब पानी में लेटे तैरते हैं मछलियों के बीच बहुत देर तक। ऐसे जैसे और कोई दुनिया बची नहीं है हमारे लिये अब ।

शाम तक बेहद थकान है । फूट मसाज कराने जाती हूँ । पार्लर वाली लड़की बताती है , फूट मसाज में पैर और कँधों और गर्दन की मालिश करेगी । मैं हँसती हूँ और दोबारा पूछती हूँ गर्दन भी, कँधे भी ? वो मेरी हँसी नहीं समझती है , संजीदगी से कहती है , यस मदाम । एक घँटे मैं आँख बन्द किये सुख लेती हूँ । लड़की अपनी टूटी अँग्रेज़ी में मुझे बताती है चौदह पन्द्रह घँटे काम करना रोज की कहानी है । कमीशन मिलता है कस्टमर पर । अच्छा तभी हर पार्लर के बाहर लड़कियों का झुँड ग्राहकों को आकर्षित करता दिखता है । आज मैं बहुत बात के मूड में नहीं हूँ । समुद्र का खारापन अब भी कंठ में भरा है ।

और दिन में पिया नारियल का पानी । मैं पकड़ नहीं पाती उसका स्वाद इतना अलग क्यों है । शायद कोई अलग जाति का नारियल होगा । मैं याद करती हूँ बचपन में पी हुई ताड़ी , सुबह की ताज़ी और उसका सफेद गुलगुला फल । ऐसा ही कुछ स्वाद है । पता चलता है बाद में कि नारियल को उसके खोपरे सहित आग में डाल दिया जाता है । उसकी ऊपरी खाल जल जाती है और अंदर का पानी और कोआ नशीला पका रस हो जाता है ।

लोगों ने बताया बाँगला रोड ज़रूर घूम लें । ऐयरपोर्ट पर कुछ ब्रोश्योर्स थमाये गये थे जिसमें सिमोन कैबरे के भी थे और बाँगला रोड के नाईट लाईफ के भी । पेरिस में शाँज़ेलीज़ी में लीडो देखने का मौका हुआ था , मूलां रूश भी । बाँगला रोड पर बहुत रौशनी है , लड़कियाँ सजी धजी , ऊँची एड़ी के जूतों और छोटे तंग कपड़ों में सिगरेट का धूँआ उड़ातीं खड़ी हैं । पूरी सड़क रौशनी और रात और नशीले मादकता का खेल है । फ्रेंच कैनकैन और पेन्टर आनरी द तूलूज़ लूतेरेक ने मूलां रूश को यादगार बनाया । ईव्स मोंतां , एडिथ पियाफ और मौरिस शेवालिये और ज्याँ गबों के बाद फ्रैंक सिनात्रा , एल्ला फिट्ज़ेराल्द और लिज़ा मिनेली ने वहाँ शोज़ किये ।मूलाँ रूश के आलीशान शोज़ में पँख , बिल्लौरी पत्थर , सलमा सितारे , शानदार सेट , बेहतरीन संगीत और उनसबके ऊपर दुनिया की सबसे हसीन औरतें । सिमोन कैबरे उसके विपरीत ट्रानवेसटाईटस का शो है , ठाठदार सेट्स , चमकीले रंगीन परिधान और लोकप्रिय संगीत ।

अगले दिन बीच रोड पर टहलते थक कर चूर हुये । किसी स्टॉल के सामने एक कुर्सी देख बैठ गई । टायर्ड ? किसी ने पूछा । बीस इक्कीस साल का छोकरा था । मैं मुस्कुराई ..यस । फ़्रॉम इंडिया ? मैंने फिर कहा यस । उसने कहा सलमान खान ? प्रियंका चोपड़ा ? मैं हँसने लगी । वो बर्मीज़ लड़का था । परिवार नेपाल में और खुद वो फूकेत में रोजगार के चक्कर में । बाँस के बने मैट्ज़ , छोटे पर्स , सफेद मेटल के ब्रेसलेट , टाई और कफलिंक , लकड़ी के सामान , छोटे बुद्ध , सिल्क स्कार्फ , सूखे आम , डुरियन और कटहल के चिप्स ..जाने क्या क्या ।

होटल के आर्केड में हर रोज़ एक महाशय ईज़ेल पर पेंसिल स्केच बनाते दिखते । छोटी सी कोने की दुकान और उसमें ढेर सारे फ्रेम्स में जड़े चेहरे । टॉम क्रूज़ से लेकर एंजेलिना जोली और फिर कितने जाने अजाने चेहरे । सुबह कमरे से निकलती तो देखती उन्हें और शाम को लौटती तो देखती किसी दूसरे स्केच में लगे हैं । पेंसिल , चारकोल , ब्रश और इरेज़र का कमाल । इरेज़र से स्ट्रोक्स देते देखना बहुत रोचक होता । मेरे खड़े देखते रहने से न तो उनकी उँगली काँपती न उनकी तन्मयता छिन्न होती । और न उनके चेहरे पर मुस्कान आती । लगे रहते अपने काम में तल्लीनता से । दिल और दिमाग का कौन सा हिस्सा किसी को ऐसे हुनर से अता करता है , ये भी एक रहस्य है । शायद ऐसे सब जगहों पर ऐसे आर्टिस्ट दिखेंगे जहाँ पर्यटक ऐसे किसी सूवेनिर को लेना पसंद करेंगे । आईफिल टॉवर के पीछे वाली गली में भी सड़क पर ईज़ेल लगाये दाढ़ी वाले कलाकार भूरे ओवरऑल्स में दिखे थे । यहाँ गुड़गाँव के मॉल में भी ।

बैगकॉक में टुक टुक पर चढ़ते बहुत आनंद आया था । टुकटुक हमारे औटो रिक्शा जैसे पर ज़्यादा बड़ा , ज़्यादा खुला , ज़्यादा साफ और सुंदर । टैक्सी में मजबूरी में ही बैठे । डेविड ने बताया था कि टुकटुक से सस्ता टैक्सी पड़ेगा , हमें सिर्फ ये देखना है कि ड्राईवर ज़्यादा अंग्रेज़ी बोलने वाला न हो । येस ओके जितना बोलने वाला हुआ मतलब ठीक टैक्सी मिला । डेविड समझा रहा था कि बस पता उसे दिखा दें और ज़्यादा न बोलें । टैक्सी वाला तेज़तर्रार अंग्रेज़ीदार हुआ तो ठगे जाओगे आप ..कहते वो ठठाकर हँस दिया । जिस टैक्सी को पकड़ा उसने सचमुच ओके के अलावा और कुछ न कहा और सियाम पैरागॉन से सिर्फ अस्सी बाट में सुखमवित में हमारे होटल पहुँचाया जबकि जाते समय टुकटुक वाले ने डेढ सौ बाट झटके थे । मुझे पेरिस में वो ड्राईवर याद आया जिसने हमें बीहाकीम से उन्नीस रूई विअला पहुँचाया था जो लगभग पाँच मिनट के पैदल दूरी पर था और जिसने न्यूनतम किराया लिया था और उतनी देर में अपने बैंगलोर प्रवास के बारे में बताया था और होटेल उतार कर नमस्ते कहा था जबकि वो हमें अच्छे से मूड़ सकता था। और लूज़र्न में वो वेट्रेस जिसने वाईन के दाम में यूरो और स्विस फ्रैंक के खेल में हेरफेर किया था ।

फूकेत में जंगसीलोन में भीमकाय छतरी के नीचे बैठे मैं चुपचाप लोगों को देखते , चॉंन्ग ड्रॉट की घूँट भरते अचानक नीचे देखती हूँ , स्टॉकहोम 320 डिग्रीज़ 8270 किमो मात्र । मेरा बदन सिहर जाता है । कोलम्बस जब 1492 में कास्तील से निकला होगा नई दुनिया की खोज करने और इसाबेल्ला ने उस पर भरोसा किया होगा , या फिर बार्थोलोमियो डियाज़ पुर्तगाल से चला होगा , कितनी हिम्मत और दिलेरी होगी उनमें , कितना जोश ।

कहते हैं कि पुर्तगाली और कास्तील के पंडित विद्वानों ने कहा था कि कोलम्बस का एशिया की दूरी का आकलन गलत है , उसने सोचा था 2400 मील और गलत तो था कि एशिया की बजाय अमरीका पहुँच गया लेकिन बावज़ूद कितना रूमान था , कितना जोखिम भरा साहसिक अभियान था । कैसी जिजिविषा होगी नई खोज की और कितना दिलेर रोमांस रहा होगा ।

या फिर थॉर हाईडेर्डाल की 1947 की क़ॉन टिकी अभियान जिसमें उन्होंने ये साबित करने की कोशिश की थी कि प्री कोलम्बियन समय में दक्षिण अफ्रीका से लोग पॉलिनेशिया गये होंगे । कॉन टिकी अभियान में उस लक्ष्य को दिखाने के लिए केवल उन सामग्री और उस समय में उन लोगों के लिए उपलब्ध तकनीकों का उपयोग किया गया था । तो बात इतनी कि मनुष्य जाहे जिस तकनीक को जानता हो , उसमें हमेशा एक भूख रही है अंवेषण की , खोज की । कैसा अदम्य साहस होगा , कैसी धुन और कैसी खतरों से जूझने की शक्ति , कैसा जुनून और कितना पागलपन ।

मैं फर्श पर उस गोलाई में लिखे स्टॉकहोम की दूरी की एक तस्वीर लेती हूँ , मेरे पैर दिखते हैं , छोटे से , नामालूम लेकिन मेरी आत्मा अचानक उन सब लोगों की आत्मा से जुड़ जाती है जो भटकते फिरे हैं शरीर से और कई बार सिर्फ मन से । बादलों के पार थोड़ी सी किरण छिटकती है । ऊपर देखती हूँ और मेरे शरीर से कुछ निकल कर उड़ जाता है .. कोई नन्ही चिड़िया ।

थाई एयरवेज़ में विमान परिचरिका उतरने के पहले एक बैंगनी ऑर्किड जैसे फूलों का ब्रूच थमाती है , कहती है मुस्कुरा कर ..सवादीका ..

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