विश्वास 

आशारत यह जीवन 

thebombaycrow
1 min readFeb 23, 2014

विश्वास कव्वे की तरह होता है….

यह श्मशान के आसपास रहकर पेट भरता है…

और

मृत आशंकाओं के इर्द-गिर्द भी अपनी अनिवार्य आशा को जीवित रखता है..

–अज्ञात

बावजूद इसके सियार और गीदड़ घने — अँधेरे जंगलों में ही मिलेंगे .

कहते हैं ‘जब गीदड़ की मौत आती है तो वो शहर की ओर भागता है….शायद इसलिए क्योंकि..

शहर जिंदा कब्रिस्तान हैं, जंगल धरती की कोख हैं/

विश्वास तब पनपता है जब नए विचार जन्मते हैं…

नए विचार ,

धूप सेंकते हुए / बालकनी में बारिश का मजा लेते हुए नहीं जनमते.

नए विचारों को जंगल की राख चाहिये ,

वो प्रसव पीड़ा ,

अंधियाला

और

वो सब कुछ जो सामान्य नहीं…

आविष्कारों ने हमें आरामतलबी मुहैय्या कराई है

पर

आरामतलबी आविष्कार नहीं कर सकती ….

हे प्रभु !विश्वास को भोजन मिले !

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