अनीसा मोहम्मद
ग़रीब परिवार की एक लड़की, मुसलमान पिता और हिन्दू माँ की संतान . उसे बचपन मे खाना बहुत अच्छा लगता था, लेकिन पका न सकती थी . अब भी उतना ही खाना बना पाती है, जितना जिंदा रहने के लिए आवश्यक हो . हाँ, अब उसे दालपूड़ी बनाना आता है, और उस में गोभी मिलाकर गोभी दालपूड़ी भी कभी कभी बना लेती है वह . २९ साल की है, माँ बाप शादी की चिंता में रहते हैं, जुड़वाँ बहन की शादी हो चुकी है, और यह लड़की कुछ ढंग का काम नहीं करती है . इस उम्र में भी खेलती ही रहती है . अब खेलने से पैसे भी कमा लेती है . अपने उम्र की किसी भी लड़की की तरह उसे शॉपिंग करना बहुत पसंद है, और वह अपने देश की सबसे मशहूर फैशन डिज़ाइनर से मिलने की मंशा भी रखती है. साधारण से सपने हैं उसके.
******
T20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे पहले १०० विकेट, T20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में आज तक के अधिकतर विकेट चटकाना, वेस्ट इंडीज की तरफ से T20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे पहले एक पारी में ५ विकेट लेना, और २ बार ५ विकेट T20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट ! यह सारे करतब क्रिकेट में करनेवाला पहला इंसान!
*******
पहले परिच्छेद में वर्णित भारत के किसी भी परिवार की आम हलकी सी विद्रोही युवती होगी, और दूसरे परिच्छेद को पढ़कर क्रिकेट प्रेमियों की नज़र के सामने नाम आते हैं, शाहिद आफ्रिदी और डैरेन सैमी के. इन दोनों परिच्छेदों में जिसका वर्णन है, वह इन दोनो में से कोई भी नही..वह हैं - अनीसा मोहम्मद, वेस्ट इंडीज की महिला क्रिकेट टीम की ऑफ स्पिन गेंदबाज़.
२०१६ में जब वेस्ट इंडीज की पुरुष और महिला टीमों ने T20 अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के वर्ल्ड कप जीते, तब पहली बार अनीसा के बारे पढ़ा और अनीसा के क्रिकेट में मेरी दिलचस्पी बढती गई.
त्रिनिदाद के पूर्वी हिस्से में, महाराज हिल नाम के एक छोटे से गाँव में अनीसा और अलिसा मोहम्मद का जन्म हुआ. उनके माता पिता क्लब क्रिकेट खेल चुके थे, और उन्हें देखकर ही इन दोनों जुड़वाँ बहनों के मन में क्रिकेट के प्रति गहरा आकर्षण पैदा हुआ. वे दोनो क्रिकेट खेलने लगीं. लेकिन घर की माली हालत साधारण से भी कुछ कमतर ही थी, माता पिता इन लड़कियों के क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए कुछ ख़ास कर नहीं पाए. कुछ ही सालों बाद एक और जुड़वाँ भाइयों की जोड़ी अश्मीद और अश्मीर का जन्म घर में हुआ, और घर के खर्चे और भी बढ़े, मगर आमदनी नहीं बढ़ पाई, फिर भी पढ़ाई जारी रही, और माँ बाप की आँखें बचाकर क्रिकेट खेलना भी. SWAHA हिन्दू स्कूल एंड कॉलेज में जब ११ साल की अनीसा लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने जाती तब अध्यापिकाएँ उससे कहा करतीं - “ अपनी क्लास में वापस जाओ ,अनीसा ! यह लड़कियों का खेल नहीं है. ”
लेकिन अनीसा नहीं मानी . लड़कों के साथ खेलने के बारे वह कहती है -
“ बचपन में, जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, सारे लड़के लडकियां घर से बाहर निकलकर सड़क पर फुटबॉल या क्रिकेट खेलते थे. मैं भी वही खेलने लगी, और क्रिकेट से मुझे प्यार हो गया. हम सॉफ्ट बॉल से क्रिकेट खेलते थे, और मुझे बड़ों की तरह हार्ड बॉल से खेलने की इच्छा होने लगी थी. जब मैंने और अलिसा ने अपने डैडी से जिद करके कहा कि मुझे हार्ड बॉल से खेलना है, तब
डैडी हमें घर के बगल वाली छोटी कंक्रीट की सड़क पर ले गए, और हाथ में बल्ला लेकर क्रिकेट बॉल हमारी तरफ तेज़ी से मारते रहे . वे कह रहे थे - हार्ड बॉल से खेलना ऐसा होता है, हाथ सूज जाएँगे तुम लड़कियों के !तुम लोगों को याद रहेगा यह दिन जब मैंने तुम्हारी तरफ इतनी तेज गेंदें मारी हैं..
लेकिन हम दो बहनों ने बॉल रोकना नहीं छोड़ा, और अब मैं यहाँ तक पहुंची हूँ. परिवार में क्रिकेट का प्रेम तो था ही, बस गरीबी के कारण संसाधन जुटाने में कठिनाई होती थी, और इसलिए डैडी हमें खेलने से दूर रखना चाहते है शायद.” अनीसा मुस्कुराकर यह बात ऐसे अंदाज़ में कहती है, जैसे यह बहुत ही साधारण सी बात हो. लेकिन उसकी लड़ाई इतनी आसान नहीं थी. जब अनीसा और अलिसा १३ साल की हुई, तब उनकी ममेरी बहन देविका सिंह, जो खुद भी त्रिनिदाद के लिए क्रिकेट खेलती थीं, उनके घर आई , और उसने इन बहनों को बताया, कि हार्ड बॉल कोचिंग देनेवाली एक टीम उनके गाँव में शुरू हुई है. जब ये दोनों बहनें वहां गईं, तो कोच डेविड मफेट ने उन्हें खेलने के लिए सॉफ्ट बॉल दे दिए. अनीसा और अलिसा को गुस्सा आया. अनीसा बोली, “कोच, हमें हार्ड बॉल से खेलना है. बिलकुल लड़कों की तरह.” मफेट आगे चलकर इन दोनों के लिए बड़े ही अच्छे गुरु साबित हुए. अनीसा ने हाथ में गेंद ली, और वह बॉलिंग करने लगी. बल्लेबाजों को उसका मुकाबला करने में खासी मुश्किलें पेश आ रही थीं, और यह बात मफेट की नज़रों ने नहीं छूटी. उन्होंने अनीसा से कहा, तुम अब से हार्ड बॉल क्रिकेट ही खेलोगी. वेस्ट इंडीज की विद्यमान कप्तान स्टेफ़नी टेलर और हरफनमौला दिएन्द्रा डॉटीन की कहानियाँ भी कुछ ऐसी ही हैं.
फिर अनीसा ने मुड़कर नहीं देखा. १३ साल की ही उम्र में वह त्रिनिदाद की टीम के लिए चुनी गई, और १५ की उम्र में वेस्ट इंडीज की टीम में. तब से डेढ़ दशक, वह वेस्ट इंडीज़ की टीम के लिए खेलती आ रही है. कई सारे कीर्तिमान उस ने रचे हैं, और अपनी कामयाबी की सीढियां लगातार चढ़ती ही जा रही है.
“ यही करना था मुझे जीवन में, नए कीर्तिमान बनाना और दुनिया की सबसे कामयाब गेंदबाज़ बनना ” - अनीसा कहती है. “ २००३ में, १५ साल की उम्र में मैंने जब वेस्ट इंडीज टीम में प्रवेश पाया, तब बाकी सारी प्लेयर्स २५ से ३५ के उम्र की थी. मैनेजर ऐन जॉन ब्राउन, कप्तान स्टेफ़नी पावर्स और बाकी सारी खिलाडियों का बर्ताव ऐसा था, जैसा किसी माँ का अपने बच्चे के प्रति होता है. कोई मुश्किल नहीं हुई टीम में घुलने में मुझे. लेकिन मैंने सारे बदलाव भी देखे है करीब से. मगर आज तक मैं यही कहती हूँ, कि क्रिकेट में ऐन मेरी माँ है. ” अनीसा को सारे बदलावों की ठीक से जानकारी है. अब वेस्ट इंडीज की महिला क्रिकेटरों को खेलने के पैसे भी मिलने लगे,(हालांकि अब भी महिला और पुरुष क्रिकेटरों के मुआवज़े में ज़मीन आसमान का अंतर है.- अनीसा कहती है). महिला क्रिकेट टीमें भी होती हैं, यह अनीसा को अपने उम्र के तेरह साल पार करने तक पता भी न था. वहां से विश्व की सबसे बेहतरीन महिला खिलाडियों की फेहरिस्त में शामिल होने तक का उसका सफ़र उसके सपनों की उड़ान और कड़ी मेहनत की कहानी है.
अपने क्रिकेट का सबसे बेहतरीन पल अनीसा बताती है, महिला और पुरुष दोनों वर्गों में अंतर्राष्ट्रीय T20 क्रिकेट में १०० विकेट लेनेवाली पहली खिलाड़ी बनना. जब वह इस मक़ाम पर पहुंची, तब करीब १५ रन प्रति विकेट की औसत से उसने ८३ मैचों में १०० विकेट चटकाए थे, और उसी वक़्त सर्वाधिक विकेट लेनेवाले शाहीद अफरीदी ने ९० मैचों में ९७ विकेट लिए थे, करीब २५ रन प्रति विक्केट की औसत से.
हर दृष्टि से अनीसा का प्रदर्शन अफरीदी से ज्यादा अच्छा था.
क्रिकेट खेलने के दिन ख़त्म होंगे, तो आगे अनीसा अपने आप को कोचिंग में काम करते हुए देखना चाहती है -
“ मेरे पास महिला क्रिकेटरों की आनेवाली पीढ़ियों को देने के लिए बहुत कुछ है, जो मैं दिल खोलकर दूँगी” — वह कहती है.
सचमुच, अनीसा के पास आनेवाली पीढ़ियों की महिला क्रिकेटरों, और बाकी महिलाओं को देने के लिए बहुत ज्यादा ज्ञान है. अपने अनुभवों से पाया हुआ !