आइये बाल दिवस मनाएँ..
सबसे पहले ज्ञानीजनों के मोटे-मोटे कोटेशन्स सोशल मीडिया पर चिपकाएँ! उसके बाद जिन्हें हम न शुद्ध हवा दे सकते हैं न पानी, न खुला आसमान, न हरियाली बल्कि कई बार तो ज़रा सा समय भी.. उनका भविष्य कचरे के ढेर पर बिठाएं और बाल दिवस मनाएँ! आसमान का असल रंग किसी पेंटिग में दिखाएँ और कहें हमारे जमाने में ऐसा होता था आसमान का रंग, किसी पुरानी फिल्म में दिखाएँ खेत, जंगल, बड़े-बड़े गार्डन और उसमें चलता पानी का फ़व्वारा ! पुरानी किसी किताब में (अगर मिल जाए तो) दिखाएँ कि ये है गौरैया पहले हर आँगन में आया करती थी, ये चील, ये गिद्ध और इस तरह के होते थे जुगनू जैसे दीवाली की चाइनीज़ झालरों की लड़ी होती है न लुपझुप-लुपझुप! ठीक वैसे ही ..
उन्हें लम्बी रेस का घोडा बनाने के चक्कर में भूल जाएँ उनका मनोविज्ञान और इतना प्रेशर बनाये रखें उनके ऊपर कि एक सोलह साल का बच्चा महज़ एक एग्जाम टालने के लिए कर दे एक छोटे बच्चे का खून!
उनकी कमी का पहाड़ इतना ऊँचा कर दें कि उनकी ख़ूबी उनके भीतर ही कहीं घुट के मर जाए और अंत में न वो बन सकें जो आपने उन पर थोपा और न ही वो जो वो ख़ुद होना चाहते थे/ हैं !
अगर सचमुच बाल-दिवस मनाने की कोई मंशा है तो एक बार बच्चों से खुल कर बतियाएं, अपनी केवल न सुनाएँ, उनकी भी सुनें समझें फिर समझाएं! अरे वो तो कच्ची माटी हैं आप जैसा बनायेंगे वैसा बनेंगे! अपनी आकांक्षाएँ उनपर न थोपें, उनके सपने उन्हें जीने दें.. सच करने का हौसला दें! आप उनपर शासन करने के लिए नहीं हैं, ये बात समझें ! ये बात ठीक वैसे ही है जैसे कि आपने एक पेड़ लगाया उसे उसकी ज़रूरत की हर चीज मुहैया करायी मसलन धूप, हवा, पानी, खाद और छुटपन में थोड़ी काट-छांट की मगर उसकी जड़ों को कभी कमज़ोर किया किया फिर देखिये बड़े होने पर जब उसकी शाखाएं फैलतीं हैं अपनी इच्छा से तो न सिर्फ वो ख़ुद में सुखी होती हैं बल्कि अपने आसपास सबको सुख देती हैं!