दो यात्रायें - एक यात्रावृत्त
The Motorcycle Diaries — Ernesto “Che” Guevara de la Serna
२३ की उम्र में, एर्नेस्तो गव्हेरा’ जब ‘चे गव्हेरा’ नहीं बने थे, उन्होंने लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा आरम्भ की - ला पेद्रोसा II मोटरसाइकिल पर. उनके साथ थे उनके दोस्त, अल्बर्टो ग्रानादो, जिसकी यह मोटरसाइकिल थी. जब मोटरसाइकिल रास्ते में बुरी तरह खराब हुई और आगे चलने के काबिल नहीं रही, तब दोनों दोस्तों को अकिंचन घुमक्कड़ों की तरह अपनी यात्रा पूरी करनी पड़ी. नवम्बर १९५१ में आरम्भ हुई इस यात्रा का ब्योरा एर्नेस्तो ने कलमबद्ध किया जो कालांतर में “द मोटरसाइकिल डायरीज “ नाम से प्रकाशित हुआ.
पुस्तक बड़ी ही दिलचस्प है, और घटनाक्रम बड़ा ही गतिमान ! अगर एर्नेस्तो का “चे” वाला तेजोवलय हटाकर भी इसे पढ़ें, तब भी यह दो नवयुवकों के साहसी यायावरी की रोमांचक और गहन कथा है जो लोगों के जीवन की बड़ी करीबी खोज पड़ताल करती है, उनके सुख दुख और अस्थिर जीवन के जद्दोजहद को छू कर गुज़रती है और इस प्रक्रिया में बहुत ही समृद्ध होती जाती है.
२३ साल के गव्हेरा अपनी डॉक्टरी की डिग्री से महज एक साल दूर थे, और ग्रानादो, एर्नेस्तो के मेडिकल कॉलेज में कुष्ठरोग विभाग में बायोकेमिस्ट का काम करते थे. अर्जेंटीना के कोर्दोबा से शुरू हुई यह यात्रा प्रशांत महासागर के किनारे चिल्ली, पेरू, कुसको, अमेज़न, बोगोटा और अंत में काराकास पहुंची. यात्रा के साधन थे - मोटरसाइकिल, लोगों से लिफ्ट लेना, बस, स्टीमर, राफ्ट, और न जाने क्या क्या. मगर यात्रा का ब्यौरा बड़ा ही मनोरंजक है.
किताब के पहले ६०-७० पन्ने किसी भी यात्रावृत्त की तरह है, यात्रा के कई किस्से, जगहों का वर्णन, और यात्रा के दौरान आनेवाले दिक्कतों के बारे. लेकिन फिर जगह जगह के लोगों के जीवन में वे झांकने लगते है, और कई अच्छी टिप्पणियाँ सामाजिक स्थिति के बारे इस यात्रावृत्त में आती हैं.
जब वे मार्च १९५२ में, वाल्परासियो में एक मरणासन्न वृद्धा के सम्मुख होते है, तब उसकी स्थिति में उन्हें "दुनिया के सारे श्रमिकों की गहरी त्रासदी ." नज़र आती है. इस औरत के पास अपनी बीमारी का इलाज कराने के पैसे नहीं थे, और वह पैसों के लिए काम भी करने की स्थिति में न थी, जो उन्हें व्यस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाने को मज़बूर करता है “ जाति (और वर्ग)के बेतुके विचार के आधार पर यह वर्तमान क्रम कितनी देर चल पाएगा, इस का मुझे कोई अंदाजा नहीं है, लेकिन अब वक़्त आ गया है, कि शासक अपना समय और पैसा अपनी उपलब्धियों के इश्तेहार बनाने के बजाय, किसी समाजोपयोगी काम में लगाए.”
बाइक के ब्रेकडाउन होने के कारण, वाल्परासियो से ये दोनों सागर के किनारे अन्तोफागास्ता होते हुए, सान अंतोनियो जहाज पर सवार होते है. इस समुद्री सफ़र में, ‘चे’ के विचारों के का स्रोत एर्नेस्तो के लेखन में नज़र आने लगता है. वे लिखते हैं, “ तब मुझे पता चला, कि हमारी वृत्ति, हमारी असली वृत्ति है दुनिया के रास्तों और समुद्रों से गुजरते हुए यात्रा करते रहना. हमेशा जिज्ञासा से आँखों के सामने आनेवाले हर दृश्य को देखना, हर कोने में किसी जानवर से कुतूहल के साथ झांकना, कहीं अपनी जड़ें न गाड़ना, हर जगह उतनी ही देर रुकना जितना उस जगह के बारे पूरी तरह जानने के लिए रुकना पड़े, और आगे बढ़ जाना.”
पढ़कर मुझे लगा कि क्वेब्रादा देल यूरो में हुए ‘चे” के दर्दनाक अंत का उन्हें पहले ही से अंदेशा रहा होगा.
अन्तोफागास्ता के कुछ ही दिन बाद वे दोनों चुक़ुइकमता में ताम्बे के विशाल खदान पहुंचे. यहाँ गव्हेरा कम्युनिस्ट मजदूरों से मिले. वहां इस वक़्त कम्युनिस्ट पार्टी को ग़ैरकानूनी घोषित किया गया था. कम्युनिस्टों को जेल में बंद किया जाता था, और कुछ कम्युनिस्ट तो गायब ही हो जाते, जिनके बारे कहा जाता, कि वे समुद्रतल में कहीं होंगे.
एक मजदूर से मिलने के उपरान्त एर्नेस्तो लिखते है, “ लोगों का इस तरह से रौंदा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है. समूहवाद के अलावा, कम्युनिस्ट अपराधित्व एक (तथाकथित) सभ्य जीवन के लिए खतरे की तरह है. कम्युनिज्म इस सभ्य जीवन की कल्पना का खात्मा करना चाह रहा है, जो बस एक बेहतर ज़िन्दगी की आस का परिणाम है, और एक चिरस्थायी भूख पर काबू पाने की अनिवार्य इच्छा लोगों को इस के अपरिचित सिद्धांतों की तरफ आकर्षित कर रही है. इस (कम्युनिज्म) के मूल तत्वों से तो ये लोग अवगत नहीं है, मगर इन मूलतत्वों का सरल सार “ भूख के लिए रोटी” इन लोगों के समझ आया, और अधिक महत्वपूर्ण बात , उन के ह्रदय आशा से भर गए. “
ज़ाहिर है, चुक़ुइकमता के मजदूर बड़ी ही खराब हालत में जी रहे थे.
१९५२ में, जब एर्नेस्तो इस यात्रा पर निकले थे तब चिली में राष्ट्राध्यक्ष के चुनाव होने थे. मार्क्सवादी साल्वाडोर अल्लेंदे इस चुनाव में एक उम्मीदवार थे. चुनाव के विजेता कार्लोस इबानेज़ देल कैंपो ने कम्युनिस्ट पार्टी की अवैधता रद्द करने का आश्वासन दिया था, जो १९५८ में सच हुआ. अर्नेस्ट लिखते है, “ चिल्ली को सर्वाधिक ज़रुरत है, अपने असुखद यांकी मित्र (USA) का बोझा अपने पीठ से उतार फेंकने की, जो इस समय बड़ा ही मुश्किल काम लगता है, उन डॉलर्स के मद्देनज़र, जो USA ने चिली में निवेश किया है और जिसकी बदौलत वे चिली वासियों को अपनी उँगलियों पर नचा रहे हैं”.
एर्नेस्तो वल्दिविया (स्पेन के पहले आक्रामक जो चिली के पहले गवर्नर बने) के बारे भी कुछ दिलचस्प टिप्पणियाँ करते हैं, जो मुझे लगता है, “चे” बनने की दिशा में एर्नेस्तो के वैचारिक बदलाव की शुरुआत को इंगित करते हैं . वे लिखते है, “ वल्दिविया के इरादे मनुष्य के दुसरे मनुष्यों पर हुकुम चलाने की असीम तृष्णा के प्रतीक है. सीजर, का वक्तव्य , कि “रोम के सेकंड इन कमांड होने से उनको किसी ऐल्प्स के देहात का फर्स्ट इन कमांड होना ज्यादा ग़वारा है.”
“मैं अपने आप को देख रहा हूँ” वे लिखते है, “खालिस क्रांति में विलीन, समूहों की व्यक्तिगत इच्छाओं को संतुलित करने वाले के रूप में, और अपने पूर्व शासकों की भयंकर गलतियों को लोगों के सामने लाते हुए.”
चिली से ये दोनों पेरू जाते है, और स्थानीय लोगों के कारण उन्हें कई संकट झेलने पड़ते है. वहां से वे बोगोटा (कोलंबिया की राजधानी) जाते है, और कोलंबिया उन्हें दुनिया का सबसे जुल्मी शासन वाला देश दिखाई पड़ता है. वहां से वे कैरकस जाते है, एर्नेस्तो मियामी के लिए फ्लाइट लेते है, और ग्रानादो ब्यूनस आयर्स के विमान में बैठकर कोर्दोबा में अपने परिवार के पास चले जाते है. यात्रा के अंत में, एर्नेस्तो पूरी तरह से नहीं, लेकिन करीब करीब “चे” बन ही चुके थे. मगर उन में अब तक भविष्य को देख पाने की शक्ति नहीं विकसित हुई थी.
इस किताब के शब्दों में एक यात्रा नज़र आती है, वह यात्रा जो उच्च मध्यम वर्गीय सामान्य युवक को ‘ऐर्नेस्तो’ से ‘चे’ बनाती है, जो बाहर भी उतना ही घटती है जितना भीतर घटती है और इतिहास के ऐसे महानायक को जन्म देती है जो इस यात्रा के दौरान आर्थिक-सामाजिक निम्न स्तरीय वर्ग के लोगों के सम्मुख होता है, उन में घुलता मिलता है, और लैटिन अमेरिका के भयानक वास्तविकता को जानने लगता है. उसे आयमारा, कुएचा, यागुआ जैसे लैटिन अमेरिका के अंदरूनी जगहों पर रहनेवाले लोग मिलते है, और उनकी रोज़मर्रा वास्तविक लड़ाइयों से वह अवगत हो जाता है. कुष्ठरोगियों के बस्ती में उसे एक ओर उन लोगों का दुर्भाग्य व्यथित कर जाता है, तो दूसरी ओर उनकी जिजीविषा एर्नेस्तो को प्रभावित करती है. ये वास्तविकताएँ उसे व्यथित करती हैं, सोचने को बाध्य करती हैं और मार्क्सवाद की तरफ ले जाती हैं, जहाँ वह अपना जीवन क्रांति के लिए पूरी तरह समर्पित करने के रास्ते में एक ठोस कदम उठाने की तैयारी में नज़र आता है.
यह किताब शायद मुझे इसलिए भा गई, क्योंकि यह यात्रावृत्त से कही अधिक है. मुझे यात्राएँ करना बेहद पसंद है, और यात्राओं के अनुभव मुझे इंसान के कई पहलु दिखाते है. इस यात्रावृत्त ने मुझे इतिहास के एक बहुत ही चर्चित नायक के व्यक्तित्व की निर्माण-प्रक्रिया में झाँकने का मौका दिया. महज १५० पन्नों की यह किताब कई मुद्दों पर तगड़े और करारे प्रहार करती है और एक महानायक की खुद से समाज तक की यात्रा का जीवंत चित्रण करती है.