फिदेल कास्त्रो

Shubham Dixit
IndiaMag
Published in
7 min readFeb 13, 2017

Santiago de Cuba

Nov 6 1940

Mr Franklin Roosvelt, President of the United States.

My good friend Roosvelt I don’t know very English, but I know as much as write to you. I like to hear the radio, and I am very happy, because I heard in it, that you will be President for a new (periodo). I am twelve years old. I am a boy but I think very much but I do not think that I am writing to the President of the United States. If you like, give me a ten dollars bill green american, in the letter, because never, I have not seen a ten dollars bill green american and I would like to have one of them.

My address is:

Sr Fidel Castro

Colegio de Dolores

Santiago de Cuba

Oriente Cuba

I don’t know very English but I know very much Spanish and I suppose you don’t know very Spanish but you know very English because you are American but I am not American.

(Thank you very much)

Good by. Your friend,

[Signed]

Fidel Castro

If you want iron to make your sheaps ships I will show to you the bigest (minas) of iron of the land. They are in Mayari Oriente Cuba.

एक कहावत सुनी थी ‘पूत के पाँव पालने में ही पहचाने जाते हैं’, इस कहावत को बड़ी बारीकी से महसूस किया बीते दिनों । क्या आप महज 12 साल की उम्र में किसी गैर मुल्क; या छोड़िए अपने ही मुल्क के प्रेसिडेंट को ख़त लिखने के बारे में सोच सकते थे ? कुछ का जवाब शायद हाँ हो, पर जब अपना ज़ेहन खंगाला तो मुझे मायूसी ही हाथ लगी । जो ख़त अभी अपने पढ़ा, ये ख़त एक बच्चे ने लिखा था । एक छोटी सी फरमाइश के साथ… एक छोटी सी दस डॉलर के बिल की फरमाइश जो उसने कभी नहीं देखा था । लेकिन बदलते वक्त के साथ क्या कुछ नहीं बदलता… क्या कभी कोई सोच सकता था जिन हाथों ने कभी दस डॉलर के लिए जिस देश के प्रेसिडेंट को ख़त लिखा था और बदले में अपने देश की लोहे की सबसे बड़ी खान दिखाने का वादा तक कर डाला, आगे जाकर वही लड़का ताउम्र उसी देश से ‘लोहा लेता’ रहेगा । आज हम आपकी मुलाक़ात ऐसे ही क्रांतिकारी से कराने जा रहे हैं ।

13 अगस्त 1926 को जन्मे फिदेल कास्त्रो क्यूबा की क्रान्ति के जनक और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम सचिव थे । कास्त्रो एक जन्मजात वक्ता, एक क्रांतिकारी, एक नायक और क्यूबा में कम्यूनिज़्म के संस्थापक थे । कास्त्रो के राजनितिक जीवन की शुरुआत फुल्गेशियो बतिस्ता के शासन की खिलाफ़त के साथ की थी, जिसे अमेरिका से पूरा समर्थन प्राप्त था । कास्त्रो ने बतिस्ता का विरोध संयुक्त क्यूबा के राष्ट्रहित में राजनितिक और कॉर्पोरेट के प्रभाव के आलोचक के रूप में शुरू किया । जिसके आगे आज भी कोई देश सर उठाने की जुर्रत नहीं करता उस महाशक्ति अमेरिका को कास्त्रो आधी सदी तक चुनौती देते रहे । इस दौरान अमेरिका के 11 राष्ट्रपति सत्ता में आकर चले गये लेकिन कास्त्रो सत्ता में बने रहे । 90 वर्ष की उम्र में 26 नवम्बर 2016 शनिवार को उनका निधन हो गया ।

उपनिवेश होना किसी भी देश नीव में दीमक लगने सा है । ये धीरे-धीरे उस देश की जड़ों को खोखला कर देता है और उसे पंगू बना देता है । क्यूबा की क्रांति का मूल भारत की ही तरह उसके औपनिवेशिक अतीत में छुपा है । लैटिन अमेरिका के अधिकतर देश 1810- 25 के बीच स्पेनी और पुर्तगाली उपनिवेशवाद से आज़ादी हासिल कर चुके थे । लेकिन क्यूबा 1898 तक स्पेन का उपनिवेश बना रहा । और यह अमेरिकी महाद्वीप में सबसे अंत में आज़ाद होने वाला देश था । अंततः इसे जोसे मार्ती के नेतृत्व में हुए दूसरे स्वतंत्रता संग्राम (1895–98) में आज़ादी तो हासिल हुई, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों का सत्ता पर कब्ज़ा नहीं हुआ । क्यूबा रणनीतिक दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण था । इसके अलावा यहाँ होने वाली गन्ने की खेती पर भी अमेरिका की नजर थी । इसलिए अमेरिका ने यहाँ की राजनीति में खुल कर दिलचस्पी ली और अपने हित साधने के लिए तैयार शासकों को समर्थन दिया । इस प्रक्रिया में क्यूबा की स्थिति ऐसी हो गयी जैसे एक औपनिवेशिक शासक की जगह दूसरा औपनिवेशिक शासक आ गया हो । इस घटनाक्रम का परिणाम यह निकला कि क्यूबा का राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन अमेरिका के प्रभाव और नियंत्रण के विरुद्ध संघर्ष बन गया ।

क्यूबा में तत्कालीन शासक फुल्गेरिया बतिस्ता के खिलाफ 1953 में विफल विद्रोह के बाद कास्त्रो कैद किये गये । मकसद हथियारों को जब्त करना था लेकिन योजना विफल हो गयी और क्रांतिकारी मारे गये । सत्ता के समझौते के बाद 19 माह की जेल के बाद कास्त्रो को 1955 को रिहा कर दिया गया । उधर बातिस्ता अपने विद्रोहियों को निपटा रहा था । ऐसे में गिरफ्तारी से बचने के लिए कास्त्रो क्यूबा छोड़ मेक्सिको चले गये ।

फिदेल कास्त्रो ने 1956 में एक असफल क्रांति और 1959 में एक सफल हिंसक क्रांति का नेतृत्व किया जिसमें उन्होंने अमेरिकी समर्थित तानाशाह बातिस्ता के भ्रष्ट तथा अराजक शासन को उखाड़ फेंका ।

कास्त्रो ने पश्चिमी जगत के सर्वप्रथम साम्यवादी देश की स्थापना की और समाजवाद के साथ एक अधिनायकवादी, दमनात्मक और निष्ठुर शासन की स्थापना की । क्यूबा की नेशनल असेम्बली में 1976 में फिदेल कास्त्रो को राष्ट्रपति चुना । चे ग्वेरा को उद्योग मंत्री बनाया गया था । उन्होंने क्यूबा के ससस्त्र बलों कमांडर-इन-चीफ का पद भी अपने पास ही रखा ।

कास्त्रो ने विपक्षी दलों के नेताओं को या तो जेलों में ठूंस दिया या मृत्युदंड दे दिया । प्रेस पर अंकुश लगाया और बोलने की आज़ादी छीन ली गई । सत्ता पर कब्जा करते ही सारे अमेरिकी निवेश व उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया । अमेरिका की नाक के ठीक नीचे बैठा यह देश उसमें दम करता रहा और अमेरिका तिलमिलाने के अलावा कुछ नहीं कर सका सिवाय आर्थिक पाबन्दियाँ लगाने के । आइजनहावर, निक्सन, फोर्ड, बुश और क्लिंटन जैसे कई धुरंधर राष्ट्रपति आए और चले गए किंतु फिदेल कास्त्रो की नाक में कोई नकेल नहीं डाल सका । अमेरिका के प्रकोप से बचने के लिए फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ से मित्रता की ।

एक समय ऐसा भी आया जब कास्त्रो ने अपने देश में अमेरिका को लक्ष्य बनाकर परमाणु मिसाइलें तैनात करवा लीं । परमाणु युद्ध का खतरा भांप कर सोवियत संघ ने ये मिसाइलें वापस हटा ली क्योंकि फिदेल कास्त्रो इनका बटन दबाने के लिए उतावले होने लगे थे और विश्व को तीसरे विश्व युद्ध के दरवाज़े पर ला खड़ा किया था । मिसाइलें हटाने से पूर्व तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति को क्यूबा पर हमला न करने का सार्वजानिक वादा भी करना पड़ा । दावा किया जाता है की अमेरिका की खुफ़िया एजेंसी ने 600 से ज्यादा बार फिदेल कास्त्रो की हत्या का षडयंत्र किया किन्तु हर बार असफलता ही हाथ लगी । क्यूबा की राजधानी हवाना में आप जगह जगह लिखा पाएंगें ‘समाजवाद या मौत’ । अपने घंटों तक चलने वाले भाषणों के लिए प्रसिद्ध फिदेल कास्त्रो का एक प्रमुख कथन था ‘कई लोग समाजवाद की आलोचना करते हैं पर मुझे कोई उस देश का नाम बताएँ जहाँ पूंजीवाद सफल रहा है ।’

जनतंत्र के समर्थकों को आश्चर्य होगा कि जब एक बार फिदेल कास्त्रो ने देश की जनता को शिक्षित करने की ठानी तो इतना बड़ा अभियान चलाया कि केवल एक साल में देश के 95 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को शिक्षित कर दिया ।आज भी लेटिन अमेरिका के किसी देश में इस देश से ज्यादा शिक्षित दर नहीं । अशिक्षितों को शिक्षित करने के लिए लाखों कार्यकर्ता देश के कोने-कोने में पहुँच गए, फिर वह चाहे शहर का मजदूर हो, किसान हो, मछुआरा हो या जेल का कैदी, सभी को शिक्षित कर दिया । क्यूबा में स्वास्थ्य सेवाएँ सरकारी हैं और बेहतरीन हैं । किसी भी देश की स्वास्थ्य सेवाओं को परखने का उचित आधार होता है उस देश की शिशु मृत्यु दर देखना जिसका पैमाना प्रति हजार है । क्यूबा का करीब सात है जो अमेरिका से भी थोड़ा बेहतर है, वहीं भारत की शिशु मृत्यु 46 है । यानी क्यूबा की स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर भारत से कई गुना बेहतर है । मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा यही दो कारण हैं क्यूबा में फिदेल कास्त्रो के लोकप्रिय होने का ।

सन 2008 में आंतो की सर्जरी के बाद भाई राउल क्रस्तो को पद से संबधित अपने रोजमर्रा के काम सौंप दिए और आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा दे दिया । फिदेल के विपरीत राउल ने अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से हाथ मिलाने की घोषणा करके आश्चर्यचकित कर दिया । अमेरिका की ओर से लगाये गये आर्थिक प्रतिबंधो को 45 साल झेलने वाले क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने आइजनहावर से लेकर ओबामा तक 11 US राष्ट्रपति हुए । जॉर्ज बुश के शासनकाल में उन्हें सबसे ज्यादा विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन अमेरिका हावी नही हो पाया । 88 साल में पहली बार अमेरिकी राष्टपति ओबामा ने क्यूबा का दौरा किया ।

अगर हम गौर करें तो पाएँगे कि कास्त्रो और सोवियत संघ के जोसेफ स्टेलिन की बहुत सी बातें एक समान ही हैं । उदाहरणार्थ दोनों ही गरीब घर से ताल्लुक रखते थे , दोनों ही मार्क्स के सिद्धान्त से प्रभावित थे, दोनों को पहली असफल क्रांति के परिणाम स्वरूप दोनों देश छोड़ना पड़ा और दोनों ने ही अपनी दूसरी क्रांति में सफलता प्राप्त की ।

आधी दुनिया के लिए फिदेल कास्त्रो एक तानाशाह और क्रूर शासक थे, वहीं अधिकांश क्यूबा वासिओं में लोकप्रिय भी थे । यह तो भविष्य बताएगा कि वे तानाशाह थे या शहंशाह किन्तु संसार के इतिहास के पन्नों पर उनका नाम अमिट अक्षरों में अंकित तो हो ही चुका है ।

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