मीर की दिल्ली से रुख़्सती

Shraddha Upadhyay
IndiaMag
Published in
3 min readAug 9, 2019

मीर का दिल्ली छोड़कर लखनऊ जाना दिल्ली के इतिहास के सबसे मार्मिक दृश्यों में से एक है. यह वही दिल्ली है जहाँ दीवानगी के नशे में मीर हाथों में संग लेकर फिरा करता था, जहाँ मीर की रेख़्ता को हमज़बाँ मिले, वही शहर-ए-दिल्ली जहाँ की हवाओं में उसके अश’आरों की महक थी. ऐसे शहर को छोड़ने के ख़याल से दिल भर-भर आता है. मीर का जहान-ए-ताज़ा तिल-तिल मर रहा है, घर रौंद दिए गए हैं, सभी जाने-पहचाने चेहरे गायब हैं और शाहजहानाबाद की गलियाँ खून से नहा गई हैं. इन सब के बीच मीर खड़ा है अकेला-हारा, उसको धोखा दुनिया ने दिया है. मीर ने तय किया कि इस ख़राबा-ए-शाहजहानाबाद का कभी रुख नहीं करेगा. कोई तो रोक ले मीर को! मीर, कूचा-ए-दिलबर (अकबराबाद) से तुम यूँ भी जुदा हो, अब तो हर जगह परागंदः रोज़ी, परागंदः दिल है और फिर तुम अपनी पनाहगाह दिल्ली को छोड़ते हो. विध्वंस के धुएँ के बीच मीर रुख्सत हो रहा है लेकर लुटा हुआ दिल, छोड़कर लुटी हुई दिल्ली. दिल्ली मीर के दिल से रुख्सत नहीं हुई. लखनऊ उसको रास न आया और उसके लिए दिल्ली का समय ही औराक़-ए-मुसव्वर रहा. जैसा कि उसने लिखा है:

दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे

जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई

मीर के वक़्त की दिल्ली वैसे भी निदर्शी थी, न बादशाहों को सुख था न आवाम को चैन. फिर भी यह शहर दिल ही दिल है. कौन है जो चाहता है चैन की रोटी और हर दिन पर कालिख़ पोतती रात. क्यों जिस्म पर बेकसी की परत चढ़ाकर जिया जाए? खैर मीर के कलाम ने जो गहराइयाँ पाईं, वो दिल्ली की ही देन है. लखनऊ में वे ज़मीन पर ही चला, अपने आसमान को दिल्ली में छोड़कर. इस दर्द को उसने बड़ी ख़ूबसूरती से अपने शेरों में काढ़ा है, मिसाल के तौर पर देखें:

फिर मैं सूरत-ए-अहवाल, हर इक को दिखाता याँ

मुरव्वत कहत है, आँखें नहीं कोई मिलाता याँ

ख़राबा दिल्ली का दहचंद बेहतर लखनऊ से था

वहीं मैं काश मर जाता, सरासीमा न आता

आबाद, उजड़ा लखनऊ चुग्दों से अब हुआ

मुश्किल है इस ख़राबे में आदम की बूद-ओ-बाश

बरसों से लखनऊ में इक़ामत है मुझको लेक

याँ के चलन से रखता हूँ, अज़्म-ए-सफ़र हनोज़

किस-किस अदा से रेख़्ते मैंने कहे वले

समझा न कोई मेरी ज़बाँ इस दयार में

दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे

जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई

आज भी मीर का नाम दिल्ली के साथ स्वतः ही आ जाता है. मीर ने चाहे उम्र गुज़ारी हो जहाँ, दीवानगी उसने दिल्ली में पाई थी. यूँ दिल्ली की किसी सियाह शाम में कभी अगर यूँ ही दिल डूबे तो समझ लीजिएगा कि ये मीर का दर्द है:

जैसे हसरत लिये जाता है जहाँ से कोई

आह यूँ कूचः-ए-दिलबर से सफ़र हमने किया

Picture Credits - mukherjee.net.in

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