स्वप्नप्रेम (Love in My Dreams)
यह तो होना ही था,
स्वपन में हुए प्रेम को हक़ीक़त में कौन ढूंढता है
कभी देखा है तुमने चाँद की बाली पहनी प्रेमिका को
या फिर जिसके वक्षों से नदिया सा प्रेम बहता हो!
पत्थर से रेत पर उकेरे जज़्बात की ज़िन्दगी
सिर्फ लहर के आने तक की होती है;
ये सब जानते हुए भी मैंने क्षितिज पे डूबते सूरज को
अपनी उँगलियों में पिरोना चाहा!
स्वप्न से ज़ेहन में न जाने वो कब उतर गयी
रात का अँधेरा मुझे दिन के उजाले सा लगने लगा
प्रेम इतना अगाढ़ हुआ था
की आँखों से नींद उतरने नहीं देता था!
उसकी हंसी मेरे कानो में गूंजने लगी
मानो जैसे सावन की बदली ने प्यासे को जीवन दे दिया
वो व्याकुलता दूर होने लगी
मेरे देह की पीड़ा स्वप्न में ही सही दूर होने लगी!
नशा अफीम का होता तो उतर जाता
ये जो इश्क़ की ख़ुमारी है
न जीने देती है और न मरने
अच्छा होता की स्वपन में हुए इश्क़ को स्वपन में ही दफना देता!
हथेली पे सरसों पैदा करना आसान है
पर स्वप्न में जो घर कर जाए
उसे कोई निकाले भी तो कहाँ से
अम्मा ने ताबीज़, झाड़ा सब कराया पर तेरे प्रेम के आगे सब बेअसर
अब तो अल्लाह मियां का आसरा है उन्हें!
कल तुम फिर आयीं थी
पर कम्बख्त ये अमावस भी कल ही होनी थी
पल्ले रोज की बारिश ने मेरी हांड की लकड़ियों की मशाल भी बुझा दी
वो तो गनीमत हो मसान का, प्रेम में जलती रूह में तेरा दीदार हो गया!
पर अब क्या करें
सोना बंद कर दें या फिर जीना छोड़ दें
पर उस दिवस्वप्न का क्या जो रूह ने देखा
कुछ इबारतें, ईमारत टूट जाने के बाद भी सलामत रहती हैं!
क़ातिल मचान पे चढ़ा है,
स्वप्न में ही सही प्रेम सीढ़ी चढ़ा है,
अंजाम तो अभी बाकी है उसका
मुझे तो ज़मीन मिल गयी, उसे आसमां नहीं मिला है!
Note: For Translation, Please contact Me :)