गुलमहोर की कली

महोल्ला केंद्र के संचालको से साथ नेचर जर्नलिंग का प्रयोग

Mihir Pathak
LearningWala STUDIO
10 min readJun 1, 2022

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सबसे पहली बार मेने जब nature journaling के बारे में सुना तब एसा लगा था की ये तो कलाकारों वाली बात है । अपने काम की चीज़ नहीं है । फिर Instagram के कुछ पेज देखे , कुछ Podcast सुने तो थोड़ी हिम्मत आयी के भाई ये तो बड़ी मज़ेदार गतिविधि है एक बार कर के देखनी चाहिए ।

Podcast : https://open.spotify.com/episode/3bb1mDxWP98FxSF3eLLtWn?si=24160e86662540fb

मेने तुरंत कुछ दोस्तों को Podcast की लिंक भेजी और कहा की एक बार यह करके देखन है । मन में एसा था की कोई वर्कशोप या कोर्स होता जिस में ये सीखने को मिलता और फिर प्रयास करते तो ज़्यादा अच्छा रहता पर होशंगाबाद जैसी जगह में एसे वर्कशोप होने की संभावना कम थी ।

मैं उन दिनो दूसरे कुछ साथीयो के साथ मिलकर महोल्ला लर्निंग एक्टिविटी सेंटर के संचालको के साथ एक नाटक कार्यशाला का आयोजन कर रहा था । मैने सोचा क्यों ना इसी कार्यशाला में nature journaling का प्रयोग किया जाए ।

हमने सब तैयारी कर ली । पेंसिल , रंग , काग़ज़ — सब तैयार था ।

हमने सब को सुबह ७ बजे गार्डन में आने के लिए आमंत्रित किया । कुछ लोग आधि नींद में थे तो कुछ नहाधो कर तैयार हो के आए थे ।

“आज की गतिविधि में हम प्रकृति के साथ और अपने आप के साथ थोड़ा समय बिताने वाले है । आप केम्पस की कोई भी जगह जा सकते हो । थोड़ा शांत बैठने की कोशिश करना । आपके आसपास क्या हो रहा है वह महसूस करने की कोशिश करना ।

आप को कोई भी पत्ता उठाना है , उसको ध्यान से देखना है और काग़ज़ में बनाने की कोशिश करनी है । आपने जो बारिकियाँ देखी है वह पेंसिल और रंगो के माध्यम से बनाने की कोशिश करनी है । ये कोई चित्र की परीक्षा नहि है तो आप को बेस्ट चित्र बनाने की ज़रूरत नहि है पर जो दिख रहा है वो सामने रख कर बनाने का प्रयास करना है ।”

इस के साथ साथ कुछ लिखने की कोशिश भी कर सकते है :

  • I notice (आपने क्या देखा ? क्या अवलोकन किया ?)
  • I wonder (मुझे क्या चीज़ नयी लगी ? मेरे मन में क्या सवाल आते है ?)
  • It reminds me of (इसको देख के मुझे क्या याद आता है )

इतनी बड़ी सूचना के बाद हमने कार्यक्रम शुरू किया । सबने काग़ज़ — पेंसिल उठाए और अपनी अपनी जगह ले ली । हम में से किसिने भी बीच में किसी को हस्तक्षेप नहि किया । लगभग ४५ मिनिट के बाद हमने सबको वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू की ।

सब वापस गोले में आ गए । हम थोड़ी देर शांति से बैठे । सब सेटल हुए फिर हमने बात शुरू की

“कैसा लग रहा है सब को ? क्या कोई अपनी फ़ीलिंग बताना चाहेगा ?”

कुछ लोगों ने बताया की ये अनुभव उनके लिए नया था । शांत बैठना , चिड़ियों की आवाज़ सुनाई दे रही थी , एकदम हरियाली के बीच बस अपने आप के साथ समय बिताना , पत्तों को इतने ध्यान से देखना — ये सब नया था ।

“आपने क्या नोटिस किया पत्तों में ? कोई बताना चाहेगा?”

  • आज से पहेले हमने पत्तों को देखा था पर इतने ध्यान से नहि देख पाए थे । पत्तों में बहोत सी बारीक चीजें है जो आज नज़र आइ ।
  • पत्तों में जलाकर रचना होती है । उनकी नशे / सिराए दिखती है जो उभरी हुई होती है ।
  • पत्तों की ऊपरी सतह चिकनी और नीचे की सतह खुरदुरी होती है
  • पत्तों के आकर में सिमेट्री दिखती है
  • पत्तों में बीच में रेखा होती है उसमें से दूसरी रेखाएँ निकलती है
  • पत्तों के रंग — सूखे हुए पत्तों का रंग , बहोत सारे सेड्स
  • मोगरे के पत्ते को सूंघने से यह पत्ता मोगरे का है एसा पता नहीं चलता
  • एक पत्ते में कितनी सिराए होती है मेने गिनने की कोशिश की
  • गुलाब के पत्ते की दोनो सतह चिकनी होती है और पीछे की और बीच में एक मोटी लाइन होती है।

“पत्तों का अवलोकन करते हुए आपके मन में क्या सवाल आए ?”

  • पत्तों का रंग बदलना , झड़ जाना ये सब कैसे एकदम ऋतु के हिसाब से , समय पर होता होगा ?
  • पत्तों का हर रंग क्लोरोफ़िल के कारण होता है तो दूसरे रंग के पत्तों में क्या क्लोरोफ़िल नहि होगा ?
  • हरे रंग वाली जगह पे पत्ते अपना खाना बनाते है तो जब पत्ता लाल, पीला या बैगनी अलग अलग रंग का हो जाता है तब वो खाना कैसे बनता है ?

“पत्तों का अवलोकन कर के आपको क्या याद आया?”

  • मुझे विज्ञान का प्रकाश संश्लेषण वाला चेप्टर याद आया
  • मुझे अपने बचपन की याद आ गई , हमारे आगन के जाम का पेड़ था और हम इस के पत्तों की सिटी बनाते थे ।
  • हम बचपन में इस पेड़ पर चढ़ के खेल खेलते थे ।
  • मुझे मेरे कोलेज के दिन याद आ गए । में राह देखती थी की कब ये पत्ता फिरसे रंगबेरंगी होगा ।
  • मुझे बांबु के पत्ते देख कर आंध्र प्रदेश में बनते बांबु चिकन की याद आ गई
  • मुझे पत्ते का टेक्स्चर देख कर अपनी दादी के हाथ याद आए
  • मेरे घर पे आम का पेड़ है गर्मीयो के मौसम में हमारा सारा परिवार आम के पेड़ के नीचे सो जाता है ।

यह गतिविधि फ़ेसिलिटेट करते हुए मुझे कैसा लगा ?

यह गतिविधि में मैं दोहरे रोल में था । मैं गतिविधि फ़ेसिलिटेट भी कर रहा था और गतिविधि का हिस्सा भी था । मैंने जब गतिविधि शुरू की तब शुरुआत में कुछ अवलोकन करने का मन नहीं हुआ । काफ़ी देर तक एसे ही पेड़ की नीचे बैठा रहा । इतना सकून लग रहा था की पूछो मत । मंद मंद हवाए , कोयल की आवाज़ और पेड़ की छाँव ।

कुछ देर के बाद मैने एक पीपल का पत्ता उठाया और देखने लगा । सब की तरह मुझे भी उसकी जलाकर रचना आकर्षित कर गई । में और ध्यान से देखने लगा । मन में चित्र बनाने की बड़ी जल्दी हो रही थी । अवलोकन करने में मन ही नहीं लग रहा था ।

मैने पत्ते के किनारे पर उंगली घुमाई और फिर चित्र बनाना शुरू किया । पत्ते का बाह्य आकर तो बना लिया पर अंदर की जाकर रचना और शिराए इतनी बारीक थी की मुझे पेंसिल से बनाने में मुश्किल हो रही थी । थोड़े प्रयासों के बाद मुझे ऐसा लगने लगा की में जो देख पा रहा हूँ वो बनाना शायद नामुनकिन है ।

पूरी प्रक्रिया के दौरान में वही पर था । अवलोकन करता और उन अवलोकनो को काग़ज़ पर उतरता ।मुझे पीपल के पत्ते को देख कर मेरे बचपन के दिन याद आए जब हमारे घर के पास के हनुमान मंदिर के आंगन में बड़ा सा पीपल का और बरगद पेड़ था । हम वहाँ राम कथा के समय ज़ाया करते थे ।

पत्ते को देख कर मुझे भी विज्ञान के लॉजिक वाले सवाल ही आए । इस पत्ते का रंग अलग कैसे है । अगर इस का रंग अलग है तो ये खाना कैसे बनाता होगा ? ये पूरा घटनाक्रम कैसे चलता है ।

इस गतिविधि को फ़ेसिलिटेट करते हुए मुझे लोगों के रिस्पांस सुनने में बड़ा आनंद आया ।शुरुआत में ज्यादातर लोग अवलोकन छोड़ के पेड़ पौधों के बारे में अपने विचार या चीजों से जुड़ी जानकारी बताने लगते है । की इस पत्ते का उपयोग क्या है ? कौन सी पूजा में या दवा बनाने के लिए उपयोग किया जाता है वगैरह

एक दो लोगों को लगा की पत्ते का चित्र बनाना है तो अपने मन से कल्पना कर के वे चित्र बनाने लगे ।

परंतु इस गतिविधि का उद्देश्य यह बिलकुल भी नहि है की आप अपनी कल्पना से अच्छे से अच्छा चित्र बनाए । यह उद्देश्य है की आप चीजों का बारीक अवलोकन करे और जो देखा है वह बताने की कोशिश करें ।

अवलोकन करने का कौशल सीखना इतना आसान नहीं है । पहले पहले तो पत्ते में सिराएं और जालीदार रचनाएँ ही नजर आती है । या कोई नए रंग आँखों में बस जाते है । पर धीरे धीरे जब ये तुरंत ध्यान खिच लेने वाली चीजें तल पर बैठ जाएगी तब असली अवलोकन शुरू होगा । थोड़ी बोरियत होगी । इतनी देर तक अकेले, मोबाइल के बिना, किसी के साथ बोले बिना बैठना भी एक कौशल है । जो धीरे धीरे आएगा ।

जब हम कुछ देखते है तब हमारा मन तुरन्त हमारे सामने चीजों से जुड़ी जानकारी प्रस्तुत करने लगता है।पत्तों के साथ जुड़े अवलोकनो को साझा करते वक्त उससे जुड़ी जानकारी को बाजू में रखना और जो इंद्रियो से देखा, महसूस किया उसी को साझा करना यह भी एक टास्क है । शायद पत्तों को जैसा है वैसा देखने से लेकर जीवन जैसा है वैसा देखने तक का लम्बा सफ़र हमें तय करना है ।

इस गतिविधि को करते करते कुछ लोगों को ऐसा लगा होगा की ये क्या फालतू की चीज है ? इस में क्या सीखने को मिलेगा? इस में तो कुछ लोजिक ही नहि है । देख के चित्र ही तो बनाना है , इस की जगह फोटो खींच लो । मुझे लगता है की किसी चीज़ को कोई कारण के बिना, जैसा है वैसा देखना, एक सौंदर्य दृष्टि के साथ देखना ये हमारे जीवन में हमने डिस्कवर किए आनंद प्राप्ति के रास्तों में बढ़ोतरी करने का अनोखा तरीका है ।

जब मैने पूछा की आपको ये गतिविधि करते वक्त क्या सवाल आए तो ज्यादातर साथियों के पास सवाल नहीं थे । जिनके पास थे वह एकदम विज्ञान वाले सवाल थे । पर में आशा कर रहा था की कुछ ‘sense of wonder’ वाले सवाल आए । जैसे की रंग, आकर, गंध, टेक्स्चर हर परिमाण के बारे में एक अनोखा आश्चर्य । सब चीजों में लॉजिक ढूँढने की जगह एक वंडर की भावना, एक अहोभाव की भावना लाना कितना रोचक होता होगा ना ?!

जब पत्तों से जुड़ी यादों के बारे में पूछा तो कुछ साथी पत्तों के जीवन चक्र को मानव के जीवन चक्र से जोड़ के देखने लगे । मुझे लगता है इस तरह से इस घटना को देखना सामान्य है । यह एक प्रचलित मेटाफर है । इस के पार जाना कुछ नया सोचना भी मजेदार होगा । कुछ साथीयो ने कविता लिखने की भी कोशिश की परंतु ज्यादातर साथियों ने अपने बचपन के किस्से सुनाए । जो बेहद रोचक लगे । पेड़ पौधों से जुड़े खेल, उससे जुड़ी यादें प्रकृति के साथ जुड़ा हमारा रिश्ता बया करती है ।

मैने जब यह गतिविधि प्लान की थी तब मेरे मन में यह उदेश्य थे :

  • प्रकृति की कोई भी चीज़ का अवलोकन करते हुए उसका चित्र बनाते वक्त वर्तमान में रह पाना
  • अवलोकन करने का कौशल सीखना
  • प्रकृति के तत्वों की सौंदर्यता अपने अंदर उतारना
  • अपने आप के साथ समय बिताना
  • जो आसपास घट रहा है उस पर ध्यान देना और संवेदनशील बनना

यह गतिविधि सब के लिए किसी ना किसी तरह एक नया अनुभव ले कर आयी । संवेदनशीलता , सौदर्य देखने की दृष्टि , अवलोकन का कौशल यह उदेश्य हमारी शिक्षा व्यवस्था में कही खो से गए है । इस तरह की गतिविधीयो के माध्यम से इन उदेश्यो पर नज़दीक से काम करने का अवसर मिलता है । जब साथीयो ने पेड़ — पौधों से जुड़ी अपनी बचपन की यादें सुनाई तो मेरा दिल भर आया । नेचर के साथ का कनेक्शन एसे ही तो मज़बूत होता है ।

आज कलाइमेट चेंज और ग्लोबल वोर्मिंग जैसी वैश्विक समस्याओं से हम झुँझ रहे है तब नेचर के साथ हमारा जुड़ाव और संवेदनशीलता ही हमें अर्थपूर्ण एक्शन लेने के लिए प्रेरित करेंगे ।

मुझे लगता है हमें बच्चे और बड़े सबके साथ यह गतिविधि करनी चाहिए । और सिर्फ़ एक बार कर के छोड़ देना एसा नहि पर इस को एक आदत बनाना चाहिए । यह गतिविधि कोई भी कुदरती चीजों के साथ हो सकती है ।

आप आपने बच्चों के साथ नेचर जर्नलिंग कैसे शुरू कर सकते है ? उसके लिए कुछ टिप्स एंड लिंक्स यहाँ संझा कर रह हूँ ।

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